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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

क्या दलित हिँदू है ?

दलित शब्द का अर्थ चाहे जो भी हो लेकिन सत्य ये है दलित अपने आप को हिँदुतत्व पर लगा पैँबद मानते है और उनकी मंशा अपने को श्रेष्ठ दिखाने की लगती है पर सत्य ये है दलित भी पूर्ण ब्राहमण का ही रूप है सिर्फ फर्क ये है की वो उच्च कुल मेँ पैदा नही हुआ संस्कार विहिन रहते हुये खुद को दलित घोषित कर लिया जिसे ब्राहमण वादियो को शोषण का अधिकार मिल गया और दलितो की स्थिति बदत्तर हो गई ये हिँदुतत्व के लिये दुभाग्यपूर्ण बात थी और हिँदुतत्व का दलित वर्ग अपने सम्मान के लिये धर्मान्तरण की ओर चल पड़ा जिसका बौद्ध इस्लाम और ईसाईयो ने प्रलोभनो से स्वागत किया लेकिन जिन दलितो की आत्मा मे हिँदुतत्व का मोह शेष था वो बौद्ध बन गये क्योकी वे अपना स्थान खोना नही चहाते थे और जो प्रलोभन के झांसे मे आये वो या तो मुस्लमान बन गये या ईसाई ये सब हिँदुतत्व के ठेकेदारो के सामने हुआ और अब भी निँरतर हो रहा है दलित ही धर्मातंरण कि ओर जा रहा है ये शोचनिय स्थिती हर हिँदु संगठन सिर्फ देख रहा है कोई कदम नही उठाता आज भी अदिवासी और दलित बस्तियो मे हिँदुतत्व आचरण नही है आज भी केवल अंधविश्वास का घोर अंधेरा है जिसका लाभा ईसाई मिशनरी उठा रहे है आज दलित उत्थान की सख्त आवशयकता है ज्योतिबा फुले ठक्कर बाप्पा और जैसे विचारक ही दलितो को हिँदुतत्व की और लौटा सकते है आरक्षण की खीर से दलितो का भला नही हो सकता जब तक सम्मान कि मिठास ना घोली जाये अपने को दलितो का मसीहा कहने वाले राजनैतिक दल केवल दलितो के वोट कि दरकार रखते है दलित के उत्थान को आगे नही रखते दलितो को अगर सम्मान चाहिये तो हर दलित को अपने को पहले अपने आप को हिँदू बनाना हो गा अगर दलित ऐसे ही धर्मातरण करते रहे तो निशचित हिँदुतत्व का चौथा स्तंभ शूद्र कहते है ध्वस्त हो जायेगा ...जय राष्ट्रवाद

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

रे मानव रे

जग के झंझावात और समय लगाता घात मानव निष्ठुर बैठा देखे दिन और रात . वासना के ओढ लबादा लालच का कुंभ लिये अपने को दाबा खुद को मानव बतलाने वाला क्यो दिखता मुझको दानव . समय पर होकर सवार जो घोड़ा बिन लगाम का लगा है आज मानव साधने देखे क्या होता अंजाम . विद्यापति बन बैठा पर अज्ञानता का अंधेरा लादे रहा किस्मत तो वजीर निकली वो प्यादा बना रहा . जीवन को ठिठोली समझ जीता रहा बेकर्म . काल के द्वार पँहुचा निकले मन से मर्म .तर्क देना आदत थी क्योकी खुद को मानव समझता था ईश्वर की सत्ता को एक आपदा समझता था. मर कर मानव समझ पाया की ईश्वर होता है जीवन वर्यथ गया ये सोच कर हर मानव मानव के लिये रोता है .

हिँदुतत्व ही श्रेष्ठ है

सेकुलरवादी कायरो से क्या डरना जो खुद अपने को धर्मनिरपेक्ष कहते है और अपने ही धर्म की जय कहने से डरते है ये अपने को हिँदू कहलवाने मे संकोच करते है ऐसे हिँदुवादियो को क्या पता की हिँदुतत्व की व्याख्या क्या है ये तो गोल टोपी धार शून्य को मानने वाले लोगो को ही सच्चा धार्मिक और 1400 साल पुराने धर्म जिसकी नीँव का पता नही जात का पता नही उसे ही सच्चा धर्म मानते है हिँदू तो एक मारने काटने वाली कौम है और मुस्लिम भाईचारा फैलाते है और मुस्लिम तो यह मानते है गैर हिँदू या तो अल्लाह को माने नही तो उसे मिटा दो इसके उलट हिँदुतत्व कहता है वसुधैव कुंटुबकम इस्लाम कहता है जकात का हकदार सिर्फ गरिब मुस्लमान है और हिँदुतत्व कहता है अगर दांये हाथ से दान करो तो बाये को पता नही चलना चाहिये मतलब मानव सेवा सर्वोपरि है हिँदुतत्व कर्म प्रधान है बुरे कर्म की सजा अवशय मिलती है जबकी इस्लाम कहता है अल्लाह से तौबा कर लो सारे गुनाह माफ हिँदुतत्व के सिद्धानत प्राकृतिक और सरल है जबकी मुस्लिम एक दिमागी उपज और सार हीन सा लगता है जिसमे महिमा मंडन के अलावा कुछ भी नही हिँदुतत्व मे ऐकेशवर वाद है जिसे आस्था ने अपने अनुसार विभक्त किया है इस्लाम मे अल्लाह और पैँगबर को ही प्रचारित किया है हिँदुतत्व पशुबलि का समर्थन नही करता ना ही वेद इसकी आज्ञा देते है इस्लाम मेँ कुर्बानी का आदेश दिया गया है सबसे बड़ी बात इस्लाम मे अपने परिवार मे ही विवाह और संभोग करना पाप नही लेकिन हिँदुतत्व मे ये गौ हत्या से कम नही हिँदुततव के इन विशिष्ट गुणो के कारण ही श्रेष्ठ हैँ..

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

श्रीमद गीता पर विवाद क्यो

हिँदुतत्व का मूल है वेद जो कब लिखे गये ये अज्ञात है जिसे ईशवरिय रचना कहा जाये तो सत्य ही होगा और वेद वाणी प्राकृतिक और वैज्ञानिक रुप प्रमाणित है भले मुस्लिम या ईसाई वेदो पर विश्वास न करे लेकिन सत्य यही है वेद ही कुरान बाईबिल आदि धर्मग्रंथो का पितामह है और वैसा ही गीता के बारे मे कहा जाता है वेद अगर जीवन का सिँद्धान्त बताते है तो गीता कर्म धर्म और मोक्ष प्राप्ति की और ले जाती है ये बात पूर्ण सत्य है क्योकी गीता के शब्दो की काट कोई अन्य धर्म नही कर पाया शायद यहि कारण है की ईसाई और मुस्लिम हिँदुतत्व से घृणा करते है और ईष्या भी करते क्यो की वे अपने धर्म मे प्रमाणिकता नही पाते और बौखला कर हिँदुतत्व को झूठा साबित करने की कोशिश करते है अभी हाल ही मेँ रूस मे जो गीता को लेकर विवाद हुआ वह यही सिद्ध करता है ओर गीता ज्ञान को आंतक का ज्ञान बतलाने वाला एक ईसाई ही है जिसने गीता को अदालत मे घसीटा गीता पर कोई उंगली उठाये ये कैसे हो सकता है क्योकी गीता तो मानव को धर्म ओर कर्म की ओर ले जाती है हिँसा और मानव विरोधी कार्य तो ज्यादा तर मुस्लिम और ईसाइ कर रहे है लेकिन कोई इन पर उंगली नही उठाता आंतकवाद और धर्मातरण जैसे अमानवीय कृत्य के वावजूद ये विश्रव मे सम्मानित है और ये हिँदुतत्व पर लगातार चोट किये जा रहे है कभी देवताओ का अपमान तो कभी गुरूओ का कभी पंरपराओ का अब तो ये इतने निर्भिक हो गये की हमारी प्रेरणा श्रीमद गीता पर भी टिपप्णी करने लगे आखिर ये मुस्लिम और इसाई क्या अपना समूल नाश चहाते है क्योकी हिँदुतत्व अब जाग चुका है

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

धर्मातरण का विषैला माहौल और अंखड भारत की कल्पना

भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहने वाली सेकुलरी बिरादरी धर्मान्तरण जैसी गंदी और मलिन गंदगी को साफ करने की वकालत कभी नही करती क्योकी ज्यादा तर धर्मातरण हिँदु का ही होता है कभी मुस्लिम या ईसाई को हिँदुतत्व का दामन थामे नही देखा ये बात सेकुलरवादी जानते है और दुख इस बात का है अपने को सेकुलर बताने वाले हिँदु ही है और मुस्लिम और ईसाई कट्टर धार्मिक होने पर भी अपने को राष्ट्रभक्त और मानवता वादी सिद्ध करते है और सम्मानजनक स्थान पाते है और अगर जागरूक हिँदू इन छदमवेशीयो पर उंगली उठाता है तो उसे सांप्रदायिक घोषित करने का प्रयोग शुरू हो जाता है और उन्हे साप्रदायिक कहने वाला अधिकांश हिँदू ही होता है जो अपने को हिँदू नही बल्की हिँदू से भी श्रेष्ठ जाति(सेकुलर) बताता है और वह राष्ट्रभक्त बन जाता है और जागरूक हिँदू राजनैतिक षंडयत्र का शिकार हो जाता है ओर उसकी आवाज काले करागार मे गुम हो जाती है धर्मातंरण का विष फैलाने वाले पहले प्रलोभन की रेवड़ी बाटते है फिर धर्मातारण का विष एक ना एक दिन समुचे हिँदुतत्व का नाश कर देगा और जो धर्मातरण करने वालो के साथ दे रहे है एक दिन स्वम इस विष के प्रभाव से बच नही पायेगे ...संविधान का मखौल उड़ाते मुल्ला और ईसाई निर्भिकता से धर्मातरण किये जा रहे है और सरकार या कोई हिँदु संगठन चुप बैठा देख रहा है संसद मे कभी धर्मातरण पर कोई ठोस कानून या बहस क्यो नही हुई ये शर्मनाक है देश मे बहुसंख्यक हिँदुओ की भावनाऐ संसद के पटल पर नही रखी जाती क्योकी ये हिँदुओ को भारतिय कम हिँसाकरने वाली जाति मानते है और इनका उद्देश हिँदुतत्व का मटिया मेट कर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना दिखता है और ये सच है क्योकी इन्हे हिँदु संस्कृति की हर बात देश विरोधी लगती है और अल्पसख्यको की सुविधा हेतु कानून बनाना देशहित कार्य लगता है ये दोमुंही नागनाथो को मार डालना ही उचित है क्योकी अंखड भारत हिँदु राष्ट्र का निमार्ण तब ही संभव है जब हर हिँदु राष्ट्रवादी हो और हर राष्ट्रवादी हिँदू ....जय राष्ट्रवाद

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

हिँदुतत्व और बाबागीरि का जलवा

इस लेख का उद्देशय आस्था को चोट पँहुचाना नही है और ना ही किसी व्यक्ती पर टिपप्णी फिर भी अगर आपको ठेस लगे तो क्षमा करे....... हिँदू धर्म कि नींव वेदो और ऋषि मुनियो के ज्ञान से उत्पन्न पुराणो और ग्रंथो पर टिकी है लेकिन ये आज के आधुनिक हिँदुतत्व धारी जो अपने को मानवतावादी और सेकुलर वादी कहलाने वाली जमात अंधी हो कर हिँदुतत्व को टटोलने के लिये यहाँ वहाँ प्रेतो की तरह भटकरही है आज खुद को टीका लगा कर हिँदू कहलाने वाले ज्ञान प्राप्ति के लिये बाबाओ की दुकान पर भीड़ लगाये रहते है ये हिँदुतत्व के लिये शर्मनाक बात है अभी कुछ सालो मे बाबाओ के प्रति जो लोगो कि आस्था उमड़ी है अगर रज भर भी पौराणिक और सनातन संस्कृति कि और विचार करते तो आज हिँदूतत्व यूँ अकेला ना पड़ता लेकिन आज तो हम लोगो को बाबागिरी से फुरसत नही है भले हमे गायत्री मंत्र अपने बच्चो को ना सिका पाये लेकिन फँला फँला बाबा के दरबार मे जरूर ले जाते है निर्मल बाबा आशाराम बापू पडोखर सरकार सत्य सांई जैसे क्षदमवेशी अपने को ईशवर कि भाँति प्रसारित कर रहे है इनका धर्म के प्रति कोई उदारता नही है लाखो रूपये का दान लेकर भी ये हिँदूतत्व का कुछ भला नही कर पाये केवल भ्रम ही फैला रहे है लेकिन कुछ बाबा और ट्रस्ट पूरी इमानदारी से हिँदुतत्व और मानवसेवा कर रहे है बाबा रामदेव जैसे योगि से कुछ सीख लेना चाहिये लेकिन ये बात हम अंधभक्तो को नही सुहाती क्योकी बाबा रामदेव धन वृद्धी उपाय या कोई चमत्कार नही दिखाते आज हिँदुत्तव को बाबा नही क्रांति संत चाहीये मेरा उन सभी बाबाओ से जो अपनी दुकान चला रहे है अनुरोध है कृपया आप वेद और सनातन संस्कृति का प्रचार करे तो हिँदुतत्व और समाज का कल्याण हो गा आईये अपनी आखे खोल कर आत्मा की आवाज सुने जो कह रही है तुम हिँदु हो कर्म प्रधान बनो क्यो की कर्म ही जीवन की दिशा और दशा तय करते है कोई बाबा आपका भविष्यतय नही करते.....जय अंखड भारत

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

आधुनिक भारत नही स्वाबलंबन भारत बनाओ


आधुनिक जीवन शैली मे हम विलासिता के आदी हो गये या यूँ कहे गुलाम हो गये स्वांलबन से आलसी हो गये अब हम कर्म प्रधान न हो कर केवल कर्महीन पशु हो गये घर से लेकर दफ्तर तक एक गिलास पानी के लिये मोहताज हो गये घर मे बूढी माँ से पानी मांगते है और दफ्तर मे चपरासी से अपने कपड़े खुद नही धोते अपने सारे छोटे बड़े काम अर्दलीयो से करबाते है ये क्या हो गया मनुपुत्रो को जो मानवीय गुणो को पश्चित की दमक मे जला बैठा क्या ये वही नर प्रजाति है जो आदिकाल मेँ देवताओ सा श्रेष्ठ था जिसके लिये स्वंम गंगा अवतरित हुई क्या ये वही मानव है जिसको नारायण के श्रीमुख से गीतामृत मिला क्या ये वही मानव है जिसे करूणा और दया के वरदान मिले भारत की पावन भूमि का मानव अब पैशाचिकता पर उतर आया देर तक सोना गरिष्ठ भोजन आत्याधिक भोग विलास माता पिता की अवज्ञा परस्त्री गमन आदि कुकर्म करने वाला मानव अपने को जब भारतीय कहता है तो लगता है वह माँ का चरित्र हनन कर रहा हो आज की यही स्थिती है जो आधुनिकता की च्युंगम चबाये जा रहे है क्या भारत को इन पर भरोसा करना चाहिये आधुनिक कठपुतलो से सनातन संस्कृति की उत्थान की आपेक्षा करना मतलब विष को दूध समझ कर पीना क्योकी आधुनिकता के पुजारीयो मेँ केवल भांड संस्कृति ही जन्म ले सकती है और उनकी नारिया वेश्या और नचनिया जिनके होनहार कपूत सैकड़ो कुरीतियो को अंगीकार करते हुये नर्क के द्वार खटखटा रहे है उन्हे नर्क का रास्ता बताने वाले स्वंम उनके पालक है जो कभी सनातन आर्य थे अपने बच्चो को आप किस दिशा मे ढकेल रहे है आधुनिकता के जंजाल से निकल कर भारतिय संस्कृति को अपनाइये भारत को इंडिया नही अंखड भारत बनाईये अपने आप को स्वाबलबन किजिये क्योकी हम दुसरो के बोझ उठाते है खुद बोझ नही बनते .....जय राष्ट्रवाद

आरक्षण की खीर मत बाँटो


संविधान रचेयता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा संविधान मे वर्णित आरक्षण नीती का उद्देश उन दबे कुचले दलित समाज के उत्थान के लिये था ना कि आरक्षण को खीर बाँटना लेकिन राजनेताओ न आरक्षण को वोट तक पहुँचने की सीढी मान लिया ये भारत के लिये शर्मसार करने वाली बात है क्योकी आरक्षण का लाभ अब भी दलितो की झोली मे नही है अभी भी दलित नरकीय और अशिक्षा के अंधेरो मे भटक रहे है आज भी दलितो के बच्चे न शिक्षा पा रहे है और ना रोजगार न बीपीएल कार्ड है और न जाति का प्रमाण ऐसे मे इनके लिये आरक्षण ढोपर शंख है लेकिन सरकार अंधी हो गई है अभी यूपी मे मायावती ने मुस्लिमो को आरक्षण की बात कही और केन्द्रिय मंत्रि सलमान खुर्शीद भी मुस्लिम के आरक्षण के पक्ष मे बयान दे रहे है एक वर्ग के प्रति आस्था दिखाने का मतलब साफ है पिछड़ी दलित अदिवासी या फिर कोई गैर हिँदू गरीब से उँचा मुस्लिम समाज है और कोई नही ये मुस्लिम तुष्टिकरण का संकेत है जो कांग्रेस राजनीति युद्ध मे ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल करती है और हिँदूतत्व की भावनाऐ आहत करती है और जब गुर्जर आंदोलन की बात आती है तो उसे दबा दिया जाता है यहाँ तक की बरसो से 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल संसद मे लंबित है ये बाते उठाना शायद मूर्खता पूर्ण लगती है कांग्रेस राज मे आज भारत मे आरक्षण उस खीर की तरह हो गई है बाँट दो भले ही फीकि क्यो ना हो भारत मे अब आरक्षण नीति मे भारी फेरबदल की अवशयकता है जाति गत और धार्मिक आरक्षण देश की अंखडता को चकनाचूर कर सकती है अगर आरक्षण देना ही है तो उसे मिलना चाहिये जिसे आवशयक हो चाहे दलित हो या ब्रहामण क्योकी देश को आरक्षण मे रंगे धूर्त सियार नही बल्कि सफेद हंस चाहिये जो भारत को विश्व मे पहचान दे सके...जय भारत जय राष्ट्रवाद

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

फेसबुक खतरनाक या दिग्गी

लोकतंत्र को अपना बाप कहने वाले नेता खुद लोकतंत्र पर तमाचा जड़ रहे है लिखने की स्वतंत्रा पर लगाम लगाने कि कवायद शुरू की जा रही है मीडिया को गुलाम बना ही चुके है अब सामाजिक नेटवर्क पर जो इनकी पोल पट्टी खोल रहे है उनकी बारी है कपिल सिब्बल को राजनेताओ के सड़े फेस की चिँता नही है चिँता तो फेसबुक पर उन पोस्ट की है जिसमे सिर्फ इमानदारी है मीडिया की चापलूसता नही है फेसबुक पर जो भी लिखा जाता है वो भड़ास है उस वयवस्था पर जो मन मे पीड़ा भर देती है भले कुछ मनचलो के लिये फेसबुक प्रेम का अड्डा हो लेकिन बुद्धिजीवियो की भी कमी नही है बस ये आपकी इच्छा है आप फेसबुक का किस तरह उपयोग करेगे फेसबुक मंच पर हम बेझिझक वो बात कह देते है जो हमारे मन मे दबी होती है हमारी बात मे कितनी सार्थकता है ये पंसद और टिपप्णी के जरिये तुंरत पता चल जाती है लेकिन ये बात कपिल सिब्बल को खटक रही है की सारे के सारे कांग्रेस राहुल और सोनिया की छिछालेदार कर रहे है और हम तमाशा देख रहै है शायद यही सोच कर कपिल सिब्बल ने ये कदम उठाया होगा लेकिन शायद कपिल भूल गये दिगविजय जैसा घाघ आदमी के कंमेट के सामने हम फेसबुकिये छोटे है लेकिन पढे लिखे कपिल जानते है देखन मे छोटे लगे घांव कर गंभीर इस कारण फेसबुक पर लगाम लगाने की तैयारी कर ली अब मुद्दा फेसबुक बन गया मंहगाई जाय भाड़ मे कालाधन जाय चूल्हे मे लोकपाल बहाओ गटर मे संसद तो तुम्हारी बपौति है कांग्रेस बेवजह नये नये विवाद जन्म देकर मूल मुद्दो को ध्यान से हटाने का प्रयास कर रही है फेसबुक के पीछे पड़ने से अच्छा है दिगविजय को कंट्रोल करो क्यो की फेसबुक से ज्यादा वो घातक है

सोमवार, 28 नवंबर 2011

अमानत मे खयानत लेलो जमानत


आज खुशी का दिन है उन कुकर और शूकरो के लिये जो भ्रष्टाचार की कीचड़ मेँ सने है जो समाज और संसद मे बेईमानी की बदबू फैला कर हँसते गाते तिहाड़ से छूटने की बाट देख रहे है और शायद कुछ दिनो बाद आपको ये गंदे बदबूदार समाज मे झक सफेदी मे घूमते मिल जाये तो आप लोकतंत्र को गाली मत दिजियेगा ये तो होना ही था कल सुखराम को जमानत मिल गई और आज कणीमोझी को और अन्ना के अंध भक्त जनलोकपाल का फटा ढोल पीटते रह रह गये और इनसे न ई पीढी ने धुर्र नेता गिरि का मंतर अमानत मे खयानत और उपर से मिल जाये जमानत तो आप समझ ले धुर्र नेता हो गया सीख लिया असल मे लोकतंत्र सिर्फ संविधान का एक शब्द भर है ब्लकी असल मे ये लोक यंत्र है जिसको चलाने का ठेका नेताजी का है लोकयंत्र मे कब तेल डालना है और कब टूल डाउन करना है ये उनके इशारो पर ही होता है कल तक भ्रष्टाचार मिटाओ चिल्लाने वाले सुखराम और कनिमोझी की जमानत को लेकर चुप खड़ा है क्यो की लोकयंत्र का टूल डाउन है अमानत मे जो भी खयानत करता है जमानत पा ही जाता है सुखराम जयललिता लालूप्रसाद शिबू सोरेन अमरसिँह और सत्यम के राजू ये सब अमानत के खयानति है इन सबको जब जमानत मिल सकती है तो राजा को भी मिल ही जायेगी अगर लोकयंत्र की मेहरबानी हुई तो मीडिया की तो चांदी हो गई हफ्ते भर का ब्रेकिँग कोटा मिल गया जमानत पाने वालो का नखशिख वर्णन करते नही थकेगे ये कैसी ओछी बात है जो हमे लूटने को तैयार है हम खुद चावी दे रहे है मै तो कहता हु देश मे अब जनलोकपाल आये या न आये किँतु समाज एक मजबूत एकता का ठोँकपाल तो बन ही जाये जो लोकतंत्र को यंत्र की भाँति इस्तेमाल करते है उन्हे सबक सिखाये ताकी अमानत मे खयानत करने वाले शराफत सीख जाये देश को भ्रष्टाचारियो से बचाये अब लोकतंत्र की शक्ति अजमाये ये अचूक ब्रहम्स्त्र है खाली नही जायेगा एक बार संधान कर के देखो देश सचमुच सोने कि चिड़िया बन जायेगा....जय राष्ट्रवाद

शनिवार, 26 नवंबर 2011

मोहल्ले कि दुकान और वालमार्ट लाट साहाब


आप ताली बजाइये क्योकीँ आप एसी मै बैठ कर धूल धक्खड़ नही खाते आप भी मुस्कुराइये नकली रंग से पुते होँठो से जो किटि पार्टी की शान है रोने का हक सिर्फ देश ने किसानो मजदूरो हाथठेला धारको और गली मोहल्ले मे छोटी परचून की दुकान चलाने वाले को है अब वालमार्ट आने वाला है सरकार ने 51 फीसदी एडीआई को मंजूरी दे दी अब आपके मोहल्ले मे रामू दादा की दुकान नही राबर्ट अंकल का आलिशान लुभाता स्टोर होगा सामान भी सस्ता मिलेगा लेकिन पाँच रूपये की शक्कर दस रूपये का तेल वहाँ नही मिलेगा तब रामूकाका की दुकान याद आयेगी मोहल्ले की दुकान सर्वसत्ता थी कोई बैर नही रखता था वरना उधार का टोटा हो जायेगा इसलिये मोहल्ले का दुकानदार किसी रिशतेदार से कम नही था सुख दुख मे मोहल्ले की दुकान साथ देती थी लेकिन वालमार्ट मोहल्ले की दुकान की अर्थी का सामान लेकर आने वाला है भारत दंगो का भी देश है और एकता का भी मोहल्ले कि दुकान एकता का प्रतिक है दंगे मे कर्फ्य से घरो मे दुबके लोगो के घर राशनपानी बिना किसी जाति या धर्म के बेखौफ पँहुच जाता था अब वालमार्ट आ गया है अगर कफ्यू लगा तो भुखे रहना होगा क्योकि मोहल्ले कि दुकान वालमार्ट नीति लील गई गरीब आदमी कि दुकान लुट गई रंग बिरँगी संतरे कि गोली अब नही मिलेगी मिलेगी तो मंहगे रैपर मे लिपटी नाजुक चाकलेट जो गरीब का पेट और जेब दोनो खराब करेगी वालमार्ट आने वाला है अब रात की मटरगशति वो ठीठोली वो उन्माद घरो मे दुबक जायेगे या फिर उच्चआंकाक्षाओ की पूर्ति करने के बाबत जेब काटेगे जब जेब मे माल होगा तब ही तो वालमार्ट जायेगे मजे उड़ायेगे क्योकि और कोई विकल्प नही है वालमार्ट धौँस जमाने आ रहा है अपने अपने मोहल्ले कि छोटी दुकाने समेट लो कही ऐसा ना हो वालमार्ट तुम्हे भी अपना गुलाम बना ले आखिर अंग्रेजो पर भरोस कर के हमारे बाप दादाओ ने देख लिया पर हम अंग्रेजो पर भरोसा नही कर सकते ...जय राष्ट्रवाद

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

एक थप्पड़ की चोट संसद हिला सकती हे


अहिँसा के देश मे हिँसा उचित नही और हिँसा को मानवता राक्षसी प्रवृत्ती मानती और इस बात पर हर धर्म प्रमाणिकरण का ठप्पा लगता है और मैँ भी हिँसा का समर्थन नही करता पर मै आत्म रक्षा मे उठे हाथ को रोकने का विरोध भी नही कर सकता और ना ही उस थप्पड़ का विरोध करता हु जो देश को समस्याओ मे उलझाये हुये है क्यो की आत्म रक्षा और देशरक्षा एक दृसरे के समांनातर है इस लिये थप्पड़ की गूँज जरूरी है चाहे थप्पड़ हाथ से पड़े या वाणी से ओर चाहे कलम कटारी से द्रेशद्रोहीयो को शाररीक तो नही आत्मिक घाव तो कर ही सकते है और आज एक थप्पड़ की गूँज संसद हिला सकती है जो इस थप्पड़ का विरोध कर रहे है वो नँपुसक दैव दैव आलसी पुकारा प्रवृत्ति रखते है अपने को सदाचारी कंबल मे ढँके हुये है क्योकी गांधीवाद का ज्वर से पीड़ित है और क्रांती के कुनैन से परहेज करते है ये गांधीवाद की बिमारी के विषाणु से बीमार राजनैतिक समाज को एक भरपूर चांटे का डोज चाहीये लेकिन राजनैतिक टट्टृ पर सवार सर्मथको का विरोध प्रदर्शन के मायने है की ये भी चाँटे खाने लायक है अब देश मेँ जूता थप्पड़ ही राजनैतिक पंगुता को सुधार सकता है और सिर्फ नेता को ही थप्पड़ मारने से काम नही चलेगा थप्पड़ के अधिकार मीडिया प्रशासन और वे बुद्धिजीबी जो समाजवादी रंगे सियार है थप्पड़ की गूँज हर उसको सुनाओ जो देश के अहितैषी है क्योकी लोकतंत्र के पास वोट का अधिकार भी है और चोट का भी पर अब आपको तर करना देश की दशा देख कर क्या आप तैयार है समस्याओ के जन्म दाताओ को थप्पड़ मारने के लिये या चुपचाप थप्पड़ खाने के लिये फैसला आपका क्योकी गाल आपका है .....जय राष्ट्रवाद

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

भारतीय संस्कृति के लिये घातक सनी लियोन


भारतीय सभ्यता कितनी पुरानी और अमूल्य है सारे विश्व ने हमसे ही सीखा लेकिन हम अपनी सभ्यता संस्कृति को पैरो तले रोँद कर पश्चिम की और चलते गये ये आधुनिकता के नाम पर हम भारतीय भारतीय ना रह सके लंपट हरामखोर और लालची हो गये पथभ्रष्रटता का ताजा उदाहरण यह है की कर्लस चैनल पर बिगबास रियलिटी शो मे सनी लियोन आ रही है ये सनी लियोन कौन है मुझे कोई मतलब नही लेकिन युवा उत्सुकता के साथ इँतेजार कर रहा है भारत मे वैसे ही समस्याओ का जखीरा है गरीब आटे दाल की जुगत मे भिड़ा है समाजवादी कशति मे सवार लोकतंत्र सहमा बैठा है क्योकी कशति मे भ्रष्टाचार का छेद है लेकिन हमारी युवा पीढि को सनी लियोन के जलवे देखना है आप का बच्चा जब सनी लियोन के बारे मे पूछेगा तो आप क्या जबाब दे पायेगे आखिर सनी लियोन को भारत मे बुलाने का क्या अर्थ है केवल देश का अर्थ बरबाद हो रहा है मीडिया की स्वत्रता का ये परिणाम अब घातक है ये हमारी चुप्पी हमारे भविष्य को अंधकार मे ले जा सकती है भारतीय मीडिया को इसका विरोध करना चाहिये लेकिन वो भी अपने दर्शको की पंसद के आगे विवश है रामायण महाभारत चाणक्य जैसे पोराणिक और ऐतिहासक विषय छोड़ कर काम विषयो को थोपना मानसिकता को विकृत करना है आईये हम एक ऐसा भारत बनाये जो सुंदर हो संस्कारवान हो क्योकी लंपट बनाने का कारखाना भारत मे खुल चुका है

सोमवार, 21 नवंबर 2011

देश को मत तोड़ो


उत्तर प्रदेश की माया सरकार सत्ता की इतनी भूखी हो गई की अपने प्रदेश को ही खंड खंड करने पर तुली है ओर विश्वास प्रस्ताव भी पारित कर दिया क्या देश को तोड़ कर विकास किया जा सकता हे देश पर आर्थिक बोझ लादने के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा ये राजनीती की जड़े गहरी करने की साजिश लगती हे अगर चार नए राज्यों का गठन हो जाता हे तो किसी एक राज्य पर माया सरकार काबिज़ हो ही जाएगी राज्यों का विकास न कर के उन्हें तोडना देशद्रोह से कम नहीं लेकिन भ्रष्टाचार के लिए सडको पर उतरने वाला युवा इस मुद्दे को लेकर चुप क्यों हे अगर इसे ही देश टूटता रहा तो अखंड भारत का सपना कभी पूरा न होगा और क्षेत्रवाद को बढावा मिलेगा भारतीय एकता में क्षेत्रवाद एक गंभीर समस्या हे अगर नए राज्य बनाना जरूरी हे तो सरकार को जनमत करना चाहिए क्यों की लोकतंत्र सबसे ऊँचा हे लेकिन सत्ता के पुजारी लोकत्रंत की कब्र खोदने पर तुले है अगर राज्यो का निमार्ण जरुरी है तो संस्कृति विरासत को बचाने के लिये नये राज्य बनाना उचित है बुँदेल खंड गोँडवाना तेंलागना जैसे राज्यो की मांग को लेकर कभी केँन्द्र गंभीर नही हुआ और बंद औ आंदोलन की मार से राज्य पीड़ित है जबकी ये माँगे जायज और जन समर्थित है इसके विपरित जो माया सरकार जो चार राज्यो के गठन का सपना देख रही है वो जनता की माँग नही सत्ता लोलुपता का विकृत चेहरा है क्योकी अगर माया सरकार चहाती तो चार राज्यो की बजाये सिर्फ बुंदेलखंड की बात करती तो उनकी ईमानदारी दिखती लेकिन वे ऐसा नही कर रही अगर इस तरह राज्यो की माँग उठती रही तो भविष्य मे सक्षम राज्य स्वतंत्र राष्ट्र के लिये गृह युद्ध के लिये बाध्य हो सकते है इस लिये राजनीतिज्ञो को क्षेत्रवाद की भावना को त्याग कर राष्टवाद को अपनाना चाहिये खंड खड टूटते भारत को अंखड भारत कैसे निमार्ण हो इस पर विचार और एकता संगठित करना चाहिये ...जय भारत

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

हिँदुत्तव- एक सदभार विचार धारा


भारत मे सेकुलर वादियो की अंधी सोच हिँदुतत्व को एक वर्ग मे बाँटती है जिसका आधार सांप्रदायिकता पर होता है मतलब हिँदुतत्व एक लड़ाकू और नागरिको मै वैमनस्य फैलाने वाला धर्म है और सेकुलरवादियो का एक मत यह भी है ईसाई और मुस्लिम ही शांतिप्रिय कौम है और उसे सहानुभूति की जरूरत है सेकुलरवादियो की यह सोच भारत के संविधान मे दर्ज धर्मनिरपेक्षता वाक्य को मिथ्या सिद्ध करती है आज भी हिँदुतत्व को ये सेकुलर वादी जान नही पाये हिँदुतत्व आस्था और विज्ञान के पलड़ो पर टिका है बिलकुम समतल आस्था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण हिँदुतत्व जीवन शैली मैँ ही मिलता है और किसी धर्म मेँ नही वंसुधैव कुंटुबकम की पंक्ति इसका ठोस प्रमाण है इस्लाम को शांती और भाईचारा का प्रतिक बताने वाले ये भूल गये सर्वे भंवन्तु सुंखिनः इस्लाम के उदय से कई वर्ष पहले लिखा गया है और फिर भी सेकुलर वादी हिँदुतत्व पर उंगली उठाते है हिँदुतत्व पंरपरा पर गौर करे तो वैज्ञानिक तथ्य पूरे उतरते है माथे पर तिलक लगाना सूर्य को जल चढाना व्रत आदी भी मैँ भी विज्ञान पूरी तरह सहमत है सुबह योग भी विज्ञान ही है आर्युवेद विज्ञान ही है पंच गव्य की महिमा को विज्ञान स्वीकारता है इतने गुण हिँदुतत्व मे है फिर भी हिँदुतत्व कमजोर पढ़ता है ईसाइ और मुस्लिम अपनी डीँग हाँककर धर्मातरण कर ही रहे है और सेकुलरवादि इस लिये चुप है आखिर ये सत्ता की चाबी है इनको नाराज मत करो ऐसे नंपुसको के कारण हिँदुतत्व की आज ये गति है जिस डाल पे बैठे उसे ही काट रहे है और कुछ मक्कार धर्मातरण करते जा रहै है ये स्थिती बदलना जरूरी है जागरूकता की कमी के चलते हिँदु हिँदुतत्व से दूर हो गया है ऐसे मे अंखड भारत की बाते बेमानी है सेकुलरवादियो को सच्ची धर्मनिरपेक्षता निभाना चाहिये और सनातन संस्कृति मे ही सच्ची धर्म निरपेक्षता है जय माँ भारती

सोमवार, 14 नवंबर 2011

कामगार बच्चे और बालदिवस


आज बालदिवस है केवल उनके लिये जो मंहगे अंग्रेजी स्कूल मे पढते है साफ और मंहगी पतलून टाई पहनते है आज उनका बालदिवस है जो पिज्जा बर्गर कोला पीते है जिनके घरो मे खिलौने दो घड़ी जिवित रहते है और नये आ जाते है बाल दिवस कुछ के लिये काला दिवस भी है लेकिन ये बात वो नही समझते जो योजनाओ के दिये जलाते है और तेल डालना भूल जाते है कुपोषण से दुर्बल बचपन मे बालदिवस खोजने की कोशिश नही की कभी पटाखो की बारूदी हवा मे सर्घष बचपन पर चढी धूल झाड़ने की कोशिश नही की मिटटी गारे मे सने बालपन को जरा करीब से देखो उसके मन मे भी लालसाये जीवित है शिक्षा के अधिकार क्या है ये दो जून की रोटी की जुगाड़ मे ही वयस्त है इनका गुड डे मील सूखी रोटी है योजनाओ की थाली भले सरकार सजा लेँ किँतु योजन पकवान को भोगने का अधिकार इन कामकार बाल मजदूरो का अधिकार नही बन सका ये योजना आयोग की विफलता है और कुछ समाजवादी समाज सेवको की जो अपनी झूठी समाज सेवा कर प्रतिष्ठा की चाह रखते हुये कार्य करते है आज भी हमे सड़को पर बूट पालिश या गुब्बारा बेचते मासूमो की आँखो मे यही प्रशन दिखता है की टाईधारी मे और हम मे क्या फर्क है आखिर योजनाऐ हमारे पास क्यो नही आती भारत निमार्ण विज्ञापन और यथार्थ मेँ बड़ा फर्क है ये राजनेताओ और समाजसेवियो को समझना चाहिये बच्चो को बेशक हम देश का भविष्य कहे लेकिन इस भविष्य को अंधेरे मे जाते हुये देखते रहते है एन जी ओ एंव नागरिको को कामकार बच्चो का स्तर सुधारने मे तत्परता से आगे आना चाहिये ताकी वे भी बालदिवस मना सके तभी अंखड भारत का निर्माण संभव है

रविवार, 13 नवंबर 2011

ये कैसी देशसेवा

आज का युवा अपने कैरियर और उच्च आंकाक्षा के मोह मे देशसेवा की परिभाषा को भूल चुका है और देशसेवा के मायने उसने बदल डाले है आज का युवा चहाता है किसी मल्टीनेशनल कंपनी मेँ उँची तनख्हा हो उँचा पद हो और समाज मे वो स्टैर्न्डड जीवन शैली जिये जो ऐसे विचारो से पोषित होगा उसके लिये देशसेवा एक चुनौति भरा कार्य होगा क्योकी देशसेवा के लिये आपको वातनुकुलित डिब्बेनुमा कमरे मे बैठ कर देशसेवा नही की जा सकती देशसेवा की भावना तब ही आती है जब आप मिट्टी मे सने हो और पसीने मे लथपथ मतलब कर्मशील हो कई युवा सरकारी सेवा मे है कहते है मैँ देशसेवा कर रहा हुँ ये उनकी कैसी देशसेवा है जिनकी जड़ो मे भ्रष्टाचार की खरपतवार फल फूल रही यह उसकी देशसेवा ना हो कर स्वमसेवा है देशसेवा तब होती जब वे अपना काम पूरी इमानदारी और नियमनुसार करते तो ये कैसे देशसेवक एक स्लोगन मैँ हमेशा थाने मे पढता रहता हुँ देशभक्ति जनसेवा लेकिन ये बात पुलिस पर झूठी बैठती है या यू कहे वे देशभक्ति नही स्वमशक्ति जानलेवा क्योकी पुलिस विभाग से अपराधी कम नागरिक ज्यादा डरते है थाने मे नोटो का बोलबाला है कितनी शर्म की बात है इनके लिये क्यो की नागरिक इन्हे कुत्ता ठुल्ला जैसी श्रेणीयो मे रखते है क्या ऐसा विभाग देशसेवा कर रहा है लेकिन लोकतंत्र चुप है वो इनसे उलझना नही चहाता अब आपको सरकारी अस्पताल लिये चलता हुँ जहाँ डाँक्टर तब तक नही आते जब तक भीड़ ना हो वार्ड वाय से लेकर स्वीपर तक अपने को यहा सर्वोसवा मानता है जीवनरक्षक उपकरणो पर धूल चढी है दवाओ का सुराग नही मिल रहा कुल मिलाकर अस्पताल खुद आपातकालीन स्थिती मे है और कलयुग का भगवान पूरा वेतन इमानदारी से ले कर देशसेवा कर रहे है ये मक्कार जब ऐसी देशसेवा करेगे तो देश गर्त मे ही जायेगा आप क्या कहते है ..जय अंखड भारत

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

तेरा प्यार

मुझे प्यार नही आता साथ निभाना आता है तेरी इन आंखो मे छुपा भगवान नजर आता है तू समझ ना मुझको दिवाना मेरी बातो मे इकरार नजर आता है दो घड़ी मुझको जान ले ओ सनम उसमे तेरा क्या जाता है न तेरी मोहब्बत के काबिल हम पर उम्र के इस दौर का क्या करे हम तुम पे प्यार आ ही जाता है मुझे तेरी बेवफाई की तलब है क्योकि जिँदगी भर यादो मे रहेगी ये सोच कर तेरी आंखो मे शबनम उतर आता है तुमको डराता ये जमाना मेरा कसूर क्या है जब तक दीदार ए सुरत ना हो इबादत मे मजा कहाँ आता है तेरे यौवन का मोह भी फीका है जो ज्जबात तेरे दिल मे है तेरी हंसी और मौन ही दिल घायल कर जाता है कब्र की आस मै बैठे है अब तलक आंखे बस यही ढूँढती है पता नही कब तेरा प्यार मेरी कब्र पर फूल बन कर आता है

बुधवार, 9 नवंबर 2011

आस्था और मौत भूल किसकी

शांतिकुँज हरिद्वार के गायत्री परिवार के आयोजन मे मृत आत्माओ को श्रद्धाजंली
आस्था एक ऐसी भावना है जो हर दिमागदार प्राणी मे होती है ओर आस्था निष्ठावान और अंधी भी हो जाती है और अगर आस्था निष्ठावान है तो ईशवर को ज्यादा देर नही लगेगी इशवर खुद आपकी आस्था के प्रति नतमस्तक हो जायेगे किँतु अगर आप अंधी आस्था का बोझ लेकर भक्ति मार्ग पर जायेगे तो यम भी तैयार है इसका उदाहरण हम धार्मिक स्थलो मे हुई भगदड़ मे काल के ग्रास बने लोगो को देख कर तो यही स्द्धि होता है अब आप बताये क्या ईशवर को विषेश पर्व या तिथी ता दिन मे ही याद किया जाये जो आस्था आपको 365 दिन इशवर मे होनी चाहिये वो आप एक ही दिन उड़ेल देते है जबकी ये आस्था नही होड़ बाजी है पहले नमबर पर आने की कौन पहले दर्शन करेगा कौन पहले प्रसाद लेगा यही भावनाऐ भगदड़ अफवाहे और अवयवस्था को जन्म देती है आयोजक भी जानते है ऐसी स्थिती बनेगी फिर भी कोई ठोस कदम नही उठाते और अंधी आस्था के आगे प्रशासन भी असहाय पड़ जाता है चाहे शबरीमाला मंदिर मे मौतो का खेल हुआ हो या कृपालू महाराज के आयोजन मे अंधी आस्था ओर अफवाहो ने सैकड़ो लोगो को लील लिया कपड़े बर्तन भोजन बाँटने जैसे सामाजिक कार्य भी इस भगदड़ को निमंत्रण देते है लेकिन इस भगदड़ की नैतिक जिम्मेदारी ना तो आयोजक लेते है और ना ही प्रशासन और जाँच ऐँजेसी बिठा दि जाती है लेकिन इसके वावजूद ऐसी दुखद घटनाये हो ही जाति है और आरोप किस पर लगाये प्रशन अधूरा रह जाये हिँदु संगठनो को इसके लिये आगे आना चाहिये और वयवस्था संवसेवको के हाथो मे देना चाहिये संघ और बँजरग दल जैसे संगठनो को ऐसे आयोजनो मेँ भागीदारी करना चाहिये ताकी आगे से ये घटनाये ना हो और भक्तो को भी होड़बाज छोड़ कर नियमनुसार आयोजन मे रहना चाहिये आईये एक अंखड भारत का निमार्ण करे और अपने मन मे सोये हिँदुतत्व और सनातन आत्मा को जगाये .

रविवार, 6 नवंबर 2011

मालेगाँव के नौ आरोपियो की जमानत - मुस्लिम तुष्टिकरण

जब मालेगाँव विस्फोट मे
गिरफ्तारियाँ हुई तो सेकुलर
मीडिया और सेकुलरी कुत्ते भोँक भोँक
कर हिँदुतत्व को आंतकवाद चिल्ला रहे
थे जब आज सबूतो के आभाव मे
9 गद्दारो को जमानत मिल गई
ये इस और इशारा करती है कांग्रेस अभी भी मुस्लिम तुष्टिकरण को हवा देकर हिँदुतत्व को हानी पहुँचा रही है और नंपुसक मीडिया भी इन सेकुलर वादियो का साथ दे रही है और जानबूझकर प्रज्ञा और अन्य संघ कार्यकर्ताओ को दोषी बनाने मे तुली हुई है यहाँ तक की न्यंयावयवस्था पर भी सेकुलरवादि हावी होते दिख रहे है 4
साल तक मूर्ख बनाती एटीएस और सीबीआई ने ना तो कोई प्रज्ञा व अन्य के खिलाफ कोई ठोस गवाह या कोई सबूत सामने रखे है और ना ही प्रज्ञा और अन्य की सहायता के लिये कोई आगे आया यहाँ तक की अभी तक प्रज्ञा और अन्य को कोई सुविधाये भी नही दी जा रही ऐसा हाल रहा तो हिँदूआंतकवाद तो जन्म नही लेगा किँतु हिँदू क्राँति अवश्य हो जायेगी...देश के गद्दारो
धिक्कार है..जय अंखड भारत
अंधी जनता को धिक्कार सेकुलरीवाद
ियो को

शनिवार, 5 नवंबर 2011

सेकुलरवादियो का नया दाँव - हिँदू आंतकवाद

मुझे भारत पर गर्व है और हर भारतीय पर भी लेकिन उतनी ही नफरत करता हूँ जो नक्सलवाद बोडो उल्फा और उन लोगो से जो हिँदुतत्व को भी इन घिनौने कीचड़ मे घसीटने का प्रयास कर रहे है जिन्हे हिँदू और हिँदुतत्व की परिभाषा ही नही मालूम जो सेकुलर का दिया लेकर हिँदूतत्तव का प्रकाश दबाने की चेष्ठा कर रहे है मालेगाँव और अजमेर विस्फोट मे साध्वी प्रज्ञा एंव अन्य जिन पर आरोप मढा गया उसका तथ्य शून्य है सीबीआई अंधेरे मे तीर चला रही है ना तो सीबीआई के पास कोई ठोस गवाह है और ना कोई एसा साक्ष्य जो प्रज्ञा पर आरोप सिद्ध कर सके और ना ही सीबीआई ने प्रेसवार्त कर कभी इस केस पर प्रकाश डाला मीडिया ने भी अपना चापलूस धर्म निभाते हुये वही तथ्य जनमानस के सामने रखे जैसा सरकार ने चाहा अगर प्रज्ञा के खिलाफ ठोस सबूत है तो सजा मिलनी चाहिये किँतू प्रज्ञा एंव अन्य आरोपियो पर सौतेला व्यवहार ये सिद्ध करता है आँतकवाद को आप ही विस्तार कर रहे है जिस तरह कसाब अफजल जैसे राक्षसो को सुविधाये ओर रक्षा उपलब्ध करवा रही है जबकि कसाब और अफजल के विरूद्ध सबूतो का पूरा पुलिदां है फिर भी अभी तक चैन से जेल मे रोटियाँ तोड़ रहा है प्रज्ञा और अन्य जेलो मे बंद नरकीय जीवन जी रहे है लेकिन समाज चुप बैठा है मीडिया चुप बैठा है लोकतंत्र का गुणगान करने वाला चुप बैठा है ऐ कैसा लोकतंत्र है जो आंतकवाद का जिवित रखता है ये कैसा नंपुसक मीडिया है जो भेदभाव करता है अगर हिँदुतत्व आंतकवादी होता तो कब का भारत अंखड हिँदू राष्ट्र 1947 मे ही बन गया होता हिँदूत्तव आंतकवाद के साथ जोड़ कर सेकुलरवादी हिँदुओ मे फूट डालने का काम कर रहै ताकी फिर से बाबर या तैमूर जैसा भारत को लूट सके सार ये हे सेकुलरवादियो के इस दांव को हमको समझना चाहिये और हिँदू एकता शक्ति को सशक्त बनाना चाहिये.....जय अंखड भारत

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अंखड भारत की बात करने वाले हर हिँदू को प्रणाम और गर्व से अपने को हिँदू कहने वाले चुँनिदा भेदियो से एक चुभता सवाल किस गर्व से अपने को हिँदू कहते हो जब्कि तुम्हार पवित्र हिँदुतत्व मे सेकुलरी और पंथवादी आत्माओ का वास हो चुका है तुम सिर्फ नाम मात्र के हिँदू हो तुमने अपनी सनातन धर्म और पंरपरा को बेच डाला है और अपना एक नया अस्तित्व गढ लिया है तुम आर्य समाजी बन बैठे और वेदो पर एकाधिकार कर बैठे और आस्था को पैरो तले कुचल दिया और हिँदुत्तव कौ बाँट दिया फिर हमे हमे तुम से कोई बैर नही अरे ब्रह्मसमाजियो तुम भी आर्य समाजियो के भाई ही हो फिर भी तुमसे बैर नही लेकिन पीड़ा दायक बात ये है तुमने महापुरूषो को भी जातिकत बंधनो मे बाँध कर हिँदुतत्व की जड़े खोदने का काम कर दिखाया और हिँदु पिछड़े पन का शिकार हो गया कोई कबीरपंथी बन बैठा कोई शैव कोई वैष्णव कोई जैन कोई राधास्वामी कोई रविदासी कोई डेरा सच्चा सौदा कोई पीर फकिर का अनुयायी बन गया और हिँदुतत्व को घायल करता अपने अपने पंथ की चाकरी करने लगा जिसका फायदा सेकुलरी कौम उठा कर तुमको हिँदुतत्व और भारतिय संस्कृति से दूर ले जा रही और गर्व से अपने को हिँदू कहते है हिँदुतत्व को दृढता के लिये किसी पंथ की जरूरत नही जरूरत है बल्की राम कृष्ण परशूराम कबीर नानक दयानंद विवेकानंद जैसे धर्मप्रकाशक चाहिये तब हि हिँदुतत्व संगठित और संदृढ हो कर अंखड भारत का निमार्ण करेगा ....जय अंखड भारत

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

तमाशा आदमी

जिँदगी एक तमाशा फिर भी जो देखे ताली ना बजाये कभी हंस कर कभी रो कर मन को बहलाये किस्मत के आगे रोये वो सदा कोशिश की चाबी कही रख कर भूल जाये जलता रहे वो बिना आग के जो खुशिया पड़ोसी पल भर देख आये कभी छीन लेता गुलाबो की महक को फिर भी वो दामन मे काँटे ही भर लाये दिये सा जला वो दुसरो के लिये पर दोस्ती की थी आंधी से पल भर मे बुझा जाये खरीदता था बाजार मे गम बहुत लेकिन मोल खुशी का वो ना चुका पाये ताँकता रहा दरिया को प्यास से बैचेन हवस का मारा प्यास भी ना बुझा पाये

रविवार, 30 अक्टूबर 2011

गोड़से गांधी और गुलाम मानसिकता


आइये हम अपनी आंखो पर चढे सेकुलरवादी चशमे की जरा धूल साफ करे और यह देखे गांधी गोड़से से बड़े कैसे हो गये जब्की गांधी ने तो हमेशा ये कहा पिटते रहो अपने अधिकारो कि भीख माँगते रहो स्वाभिमान और अनुशासन का पाठ तो एक स्वंयसेवक ही पढा सकता है कोई राजनैतिक ठग( गांधी) नही लेकिन ये हमारी अंधता थी जिसने गोड़से जी को इतिहास को बदरंगी स्हाई से ऐसा लिखा की इतिहास पुरूष कि जगह प्रथम आंतकवादी का तमगा मिला और गांधी को महात्मा का एक ऐसा महात्मा जो सेकुलरी पर्दे की ओट कर हिँदुत्तव और अंखड भारत विचार धारा की जड़े खोद रहा था ओर मुस्लिम तुष्टीकरण का पौधा रौप रहा था जिसके छाँव तले नेहरू खानदान की रोटी चलती रहै गोड़से जी काग्रेस का अनुभव कर चुके थे और गांधीवाद का सम्मोहन तोड़ चुके थे इसलिये गोड़से जी द्वारा गांधी कि हत्या एक अभिशाप नही वरदान था भारत के लिये पहला ये कि भारत को तोड़ने की किमत सिर्फ मौत है चाहे राष्ट्रपिता ही क्यो ना हो दूसरा मुस्लिम को एहसास हो जाये अंखड भारत का मिशन जारी है लेकिन उस जमाने के इतिहास कारो और पत्रकारो ने संघ को कमजोर कड़ी माना और संघ पर ज्यादा टीका टिप्पणी नही की कांग्रेस को इतना महिमामंडित किया गया की गरीब आदमी कि दोनो आंखो मे कांग्रेस और गांधी के सिवाय कुछ दिखता नही था तो अंखड भारत क्या समझता उसी प्रकार गोड़से जी की जीवनी कार्य एंव हिँदुत्तव इतिहास कारो ने दबा दिया और वो लिखा जो सेकुलर चहाते थे और स्थिति ये है अब गोड़से आंतकवादी ओर गांधी हीरो आज का युवा यही समझता है अंखड भारत क्या है इसका अर्थ भी इनको मालूम ना होगा अब गोड़सेवादी पाठ्यक्रम लाना ही होगा अपने मन मे दबे हिँदुत्तव को जगाना होगा

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

ये कैसा मेरा भारत महान

मेरा भारत महान ये सच है लेकिन सिर्फ मन
कि भावनाओ मे यथार्थ धुंधला और बदसूरत
है ये समाज भी जानता है और
समाजवादी भी समाज
को रोटी कि चिँता है
समाजवादी को रोटी छिनने की और ये
समाजवादी कुनबा और कोई नही लोकतंत्र
का जना सपूत है जो कपूतता पर उतर
आया और कानून प्रशासन को घर की रखैल
बना कर रख लिये सीधे शब्दो मे बेटा बाप
को बेटा कहने लगा और बाप आंदोलन
की लाठी से धमकाने की कोशिश मे खुद
पिटने लगा ये मेरा भारत है जहाँ गरीब
कानून के जूते से डरता है लेकिन यही कानून
सफेदपोश नेताजी के जूते भी साफ करता है
कभी दूध की नदियाँ उफान पर
होती थी पर अब सिर्फ कुपोषण के दलदल
ही है जिसमे गरीबो के दुँधमुहे बच्चे
ही गिरा करते है कोठीयो के लाट साहब
नही एम्स जैसे अस्पताल भले आई एस ओ
प्रमाण पत्र धारी हो लेकिन गरीबो के
लिये मुर्दाघर ही है(वी सी राय केस )
लेकिन नेता समाज के लिये एक आरामदायक
जगह क्या ये वही सोने कि चिड़िया है
जहाँ दिन भर कंधे पर मिट्टी ढोने के बाद
सिर्फ रोटी ही मिलती है
बच्चो का भविष्य नही मिलेगा भी कैसे
फामूर्ला वन रेस जैसे पूँजीपतीयो
की जी हूजूरी आयोजन करने वालो को इनसे
क्या वास्ता मूलभूत सुविधाये टेढी खीर है
ये आम आदमी समझ चुका है ओर चुप चाप सहन
कर तमाशा देख रहा है फिर चुनाव
आयेगा और मत डाल आयेगा और
सो जायेगा यही नियति है मेरे भारत
महान की

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

आओ यूँ दीपावली मनाये

आओ दीपावली मनाये और उस तिमिर का सर्वनाश करे जो देश को अंधेरो मे धकेल कर अपना अधिकार जमाने कि कोशिश मे लगे है आज इतना प्रकाश कर दे आंतकवाद नक्सलवाद जातिवाद नस्लवाद अपनी परछाई तक ना पहचान पाये आओ ऐसी दीवाली मनाऐ आओ दरिद्रनारायण को भी याद करे और उसके घर का पता हम लक्ष्मी को बताये जो हमारी तिजोरियो मे बंद है ताकि वो भी विदुयत की लड़िया भले ना सजा सके किँतु एक दिया तो जला सके हम बेशक पकवानो का भोग ले लेकिन उसे भी दीपावली पर दो जून कि रोटी के लिये सघर्ष ना करना पड़े आओ ऐसी दीवाली मनाये आंतकवाद को जड़ से उखाड़ फेंके नक्सलवाद का सर फोड़ दे जातिवाद को फाँसी पर चढा दे मंहगाई का गला घोँट दे राजनैतिक लुटेरो की वैभवता लूट ले ओर आपसी वैमनस्य कि होली जला दे आओ ऐसी दिवाली मनाये अंधेरे जहाँ दम तोड़ दे अभिमान अपना रूप छोड़ दे आओ ऐसी दीवाली मनाये हर घर पर भगवा पताका हो सनातन धर्म का आश्रय हो युवाओ मे संस्कार हो अंखड भारत का संकल्प हो आओ ऐसी दीवाली मनाये हर तरफ प्रकाश हो रास हो उल्हास हो जंयचदो का सर्वनाश हो राम राज्य का राज हो सुरक्षित और संपन्न समाज हो आओ ऐसी दिवाली मनाये अमावस्य हो भले आत्मा प्रकाशमान हो आओ ऐसी दीवाली मनाये .....इति श्री..,... किशना जी एंव मैँ देश द्रोही ब्लाग की और से आप सभी इष्ट मित्रो एंव परिवार जनो कुंटुब को दीपपर्व की कोटि कोटि शुभकामानायेँ आपका जीवन निँरतर सूर्य सा प्रकाशित हो .......जय राष्ट्रवाद

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

हिँदुत्तव विकृति दूर करो

विकृति कैसी भी हो बुरी ही लगती है चाहै वयक्ति सर्वगुण संपन्न ही क्यो ना हो अगर उसमे शारिरिक या मानसिक विकृति आ गई तो दूसरे के मन मे उसके गुण नही विकृति दोष ही नजर आयेगे लेकिन उस विकृति के निवारण की जिम्मेदारी किसकी है उस वयक्ति की जिस मे वो विकृति है या उस समाज की जो उससे सहानुभूति भर रखता है ये प्रशन आपके और मेरे लिये नही है वरन आज की हिँदुत्तव के लिये है जिसे हिँदू समाज ने विकृत कर दिया और ये विकृति कई वर्षो से चमगादड़ कि तरह चिपकी हिँदुत्तव का खून चूस रही है वर्षो से अंधविश्रवास जातिप्रथा वैश्णव शैव एंव धार्मिकता पर ब्राहमणो का एकाधिकार वेदो को बांध कर रखना और एक दूसरे मे अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने जैसी भयावाह विकृतिया अब भी हिँदुत्तव पर कब्जा किये है और हिँदू एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने मे ही लगा है और यही कारण है हिँदुत्तव पर सेकुलरवादी हावी हो रहे है आज भी अंधिकाश हिँदू वेदो के नाम ही जानता है धर्मग्रंथो को खंगालना कोई नही चहाता जातिवाद की खाई जिसके एक और दलित खड़ा है अदिवासी खड़ा है और दूसरी और खुद को र्स्वण कहने वाले जो उन्हे अपनी ओर बुलाने मेँ हिचक रहे है तो दूसरी और मिशनरी और इस्लाम के नुंमाइदे करूणा का अमृत समान जहर बाँट रहे है और हम हंस रहे अंधविश्रवास की पट्टी बाँध कर धर्म की खिल्ली उड़ा कर इन धर्मपरिर्वतन कारियो का मनोबल बढा रहे है अगर आप हिँदुत्तव विकृति को दूर करना चहाते है तो पहले सनातन संस्कृति को अंगीकार करना होगा सनातन धर्म ही हिँदुत्तव का मूलाधार है और हर एक के जीवन का आधार भी यही बने तब ही हिँदुत्तव की विकृति दूर होगी और अंखड भारत का निमार्ण होगा जय राष्ट्रवाद जय सनातन धर्म

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

लोकतंत्र का मत हथियार

भारत लोकतांत्रिक देश है जहा मत एक हथियार है जिसके सहारे हि राजनैतिक युद्ध मे विजय पाई जा सकती है और ये हथियार छुप कर ही आघात करता है कौन कटेगा ये मत का अधिकार वाला भी नही जानता बस चला भर देता है अब किसका ठिकरा फूटे ये किसे सत्ता सुंदरी का सुख उसके कर्मो और दंबगता तय करती है मत हथियार अचूक और पीड़ादाई है और अंधा भी जो रंक को भी राजा बना देता है लेकिन अब मत को आप हथियार नही कह सकते इसे मजबूरी कहे तो ठीक होगा क्योकी ये अब गांधी छाप नोटो की हवा से बहक जाता है सस्ती दारू मे घुलनशील है संसद के दलालो की कठपुतली बन जाता है लोकतंत्र का छिनालापन हर कोई देखता है ओर मुँह फेर कर सो जाता है मँहगाई के जमाने मे मत आम जरूरत की चीजो से सस्ता है हर गरीब के पास मिलता है फर्जी भी मिलता है सस्ता भी मिलता है बशर्ते लुभावने वादे होना चाहिये मत एक बार ही पड़ता है लेकिन दंश पाँच साल सहना पड़ता है पाँच साल मे कितने ही मतो की फसल तैयार हो जाती है अगर पुरानो ने मत नही दिया तो क्या नये लौँडे तो बहक ही जायेगे ओर फिर पाँच साल देश को खायेगे तुम जियो या मरो हम तो अपनी तोँद बढायेगे तुम्हारे बच्चे कुपोषण से मरे हमारे बच्चे तो पिज्जा ही खायेगे आप साल दर साल यूँ ही मत डालते जायेगे और हम भरोसा तोड़ते जायेगे- जय राष्ट्रवाद

हिँदू संगठनो का संकीर्ण दायरा

संकीर्ण दायरो मे हिँदू संगठन - भारत आदिकाल से सनातन संस्कृति और आर्यो की भूमि रही है आज जिन्हे हिँदू कहते है वे आर्य ही है जो वेद वाक्य और आस्था को सर्वोपरि मानते है लेकिन जब जब आर्यभूमी पर विदेशी हमलावर और उनकी संस्कृति ने धावा बोला तब तब सनातन धर्म खंडित हुआ और नये पंथ का विकास और हिँदू बंट गये चाण्क्य ने अंखड भारत का जो स्वपन देखा वो पूरा भी हुआ लेकिन फिर भी विदेशी संस्कृति के आक्रमण नही रूके उस समय के हिँदू और आज के हिँदू मे आज भी समानता है तब भी सोया था अब भी सोया है यूँ तो भारत मे कई हिँदु संगठन मौजूद है लेकिन कई हिँदुऔ की आंख कि किरकिरी बने है ऐसा क्यो इस पर कोई विचार नही करता इसका मुख्य कारण है हिँदू संगठनो का संकीर्ण होना हिँदू संगठन ज्यादातर राम जन्म भूमि अंखड भारत वेलेनटाईन डे का विरोध तक ही सीमित रह गया है संघ तो अपनी पूरी शक्ति के साथ सामाजिक कार्य एंव देश कार्य मे पूरी तरह इमानदार होने वावजूद आज भी हाई सोसाईटी के बुद्धी जीवी अपने बच्चो को संघ से दूर रखते है ओर ना कोई आज किसी को बंजरगी बनना है ना शिव सैनिक ये स्थति पैदा किसने की ये हमारे सामने प्रशन है और इसका उत्तर है चेतना अब हिँदू संगठनो को अपना कार्यक्षेत्र विस्तृत करना होगा और हिँदुतत्व की बुनियादी बाते हर हिँदू परिवार को समझानी होगी वेद एंव सनातन संस्कृति को समाज मे स्थापित करना होगा इसके लिये हर हिँदू संगठन हर साप्ताह सार्वजनिक रूप से हिँदू संस्कृति पर व्याखयान और संगठन का उद्देश और कार्य शैली सरलता से समझाये और युवाओ से जुड़ने को प्रोत्साहित करे और जो लोग हिँदू संगठनो मे राजनीति प्रयोग के लिये शामिल होते है उनको सदमार्ग पर लाये आज अगर हिँदू संगठन अपना जनाधार नही बढायेगे तो अंखड भारत का निमार्ण कैसे होगा आइये हम एक अंखड भारत के निमार्ण के लिये संकल्प बद्ध हो जर राष्ट्रवाद

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

अब कोई प्रंशात भूषण ना बने

आज कुछ कड़वा लिँखूगा हो सकता है लोग मुझे फासीवादी कहे लेकिन फिर भी लिँखूगा क्यो की लिखने कि आजादी मिलि है मैँ आज सेकुलरी रंगे सियारो पर शब्दो के तीर चलाउगा कल एक देशभक्त ने एक देश द्रोही को पीटा मीडिया और कुछ राजनीति के दल्लो को बैठे ठाले अपने को समाजवादी चोला पहन कर गांधीवाद का प्रचार करने का मौका मिल गया मुझे लगता है कशमीर को भारत नही मानते सेकुलरवादी जब प्रँशात भूषण ने कशमीर पर बयान दिया तो ना मीडिया ने उसे गलत कहा और ना ही कोई राजनैतिक विचार धारा ने विरोध किया और ना हिँ अन्ना के अंध भक्तो न कुल मिला कर ये क्या माने क्योकि मौन का अर्थ मन से स्वीकृति ही होती है मैँ फेसबुक पर जुड़े एक साल भी नही हुआ लेकिन मैँने इस मंच पर जो देशभक्ति देखी वो असल मे वो गुबार है युवाओ का जो भारत के देशद्रोही पर फूट पढता है कल प्रंशात भूषण को पीटने वाले तेजेन्दर बगघा विष्णु गुप्ता एक राम सेना के कार्यकर्ता थे और फेसबुक पर भी काफी सक्रिय और क्राँतिकार विचार रखते है उन्हे गुंडा कहना देशभक्ति का अपमान करना है क्यो की प्रंशात जी का बयान अल्पसंख्यको खुशी देने वाला थे क्यो की अन्ना टीम को अल्पसख्यको का हमदर्द बनना है लेकिन किसी ने भी प्रँशात जी का विरोध नही किया ओर परिणाम आपके सामने है अब कोई भी ऐसा बयान देने से पहले विचार करेगा

सोमवार, 10 अक्टूबर 2011


आंख नम है उस शख्स के लिये जिसे गजल जहाँ का सूरज कहना गलत ना होगा और ये याद आया चिट्ठि ना कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गये एक दर्द मे मिठास घोलने की कला जगजीत जी की आवाज मे बखूबी थी एक और उनकी गजल ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी लेलो भले छीन लो मुझसे मेरी मगर मुझको लौटा दो वो कागज कि कशति वो बारिष का पानी इस गीत मे जब इनके सुर पड़े तो ये जीँवत हो उठा और हर एक को अपना बचपन याद आ गया जँहा फिल्म लाइन दिखावटी समझी जाती रही है वहाँ इस शख्स ने यथार्थ गढ दिया और देश ही नही अपितु विदेशियो को भी भारतिय संगीत का गुलाम बना दिया ये कभी भुलाया ना जायेगा उस गीत की तरह होँठो से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो क्या हिँदू क्या मुसलमान क्या सिख क्या धर्म सबको सम्मान ही दिया हे राम भी गाया और सतनाम श्री वाहे गुरू भी और तो और उसने वो बात भी कही जो उसकी देशभक्ति उजागर करती है जगजीत जी ने एक बार कहा था पाकिस्तानी गायको को भारत नही आना चाहीये लेकिन दरियादिली भी क्या खूब आड़े वक्त मे भी गजलकारो का साथ दिया ऐसे दरियादिल गजल सम्राट को मेरा कोटी कोटी नमन आशा करता हु विधाता से अगला जन्म भी भारत भूमि पर ही हो देश को इंतेजार रहेगा अलविदा संगीत के सूर्य

शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

हम आर्यवीर


लिये पताका भगवा रंग की आर्यवीर हम आये है भारत माँ सोये सपूतो तुम्हे जगाने आये है सोये मन मे वीर शिवा और राणा प्रताप अगड़ाइ ले ऐसा रण रच डालो देशद्रोही दुहाइ दे ये पथ पथरीला और कंट से पटा हुआ रौँद डालो जयचंदो का सिर जिनकी करनी से शीश हिँदुतत्व का झुका हुआ खंड खंड ना हो पाये भारत अंखड दीप ही जलता रहे माँ भारती की गोदी मे सदा सदभाव पलता रहे तेज करो तलवारे अपनी पर सिर अपनो का ना कटने पाये आंख उठे जिसकी देश धर्म पे जिवित वो ना बच पाये सत्य अंहिसा हो मन मे तन से तेजोमय बने रहो हो संस्काय सनातन वाले ना धर्म की कभी अवज्ञा हो राष्ट्र सर्व है हिँदुत्तव सर्वत्र यही कामना करता चल पंथ नही हिँदुत्तव देश का जीवन पद्धति ऐसा सबको बतलाता चल सेकुलर के नाग विषैले जब जहर समाज मे घोले हिँदु को आंतकी कहते आओ इनका सिर तोड़े अब तो जीवन अर्पण कर दो हे समय की माँग यही भारत के झंडे तले फिर सिँधु बहे

सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

मैँ निकला हूँ

आज जिँदगी को जानने निकला हुँ आज मैँ को पहचानने निकला है अनुभवो का आइना साथ लिया है लोगो को आज यथार्थ दिखाने निकला हुँ पाप मेरे पुण्य मेरे बोझ बन गये कर्म और धर्म साथ मेरे हो गये तकदीर को फैसला सुनाने निकला हुँ रास्ते के कंट कंकड़ मोह माया बन गये ज्ञान का ले बुहारा फेरने निकला हू अब डरू क्यो मैँ मैँ से हम को मैने पहचान लिया अंह की लाश लेकर दफनाने निकला हू हँस रहे है लोग वो जो रोते नही कभी कछुये से जी रहे है आदमी वो आदमी को इंसान बनाने निकला हु गर आदमी इंसान बन जाये फिर खुदा का क्यो ले नाम भीड़ मे गुम उस भगवान को ढूँढने निकला हूँ

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

समय मानव और कर्म

कल
का भरोसा जो करे समझो वो काल से
डरे वर्तमान की लाठी पकड़ जो चले
काल उससे डरे मत उलझ तू जीवन के जंजाल मे एक धोखा है ये जीवन मृत्यु अटल है जोड़ा बहुत तोड़ा बहुत अब तो संभल जा तेरे लिये इक कफन ही बहूत है पुण्य के सलिल मे पाप का आज तर्पण कर दो दिनो के यौवन के बाद बाट जोहता तेरा जर संभल कर चल कौन जाने कैसा होगा तेरा कल साथ तेरे जो खड़े वे तो पुतले छाया के लोभी लालची वर है तेरी माया के दीन दुखियो मे ढूंढ जरा नारायण को जो लिया था चुका दे उस सृष्टि कर्ता के ऋण को भाग मत उस तिमिर से जो विषमता से बना आग कि लपटो मे सिक स्वर्ण कुंदन बना लड़ ले आज समय से जीत जा ये रण जाग जा वरना मृत्यु कर लेगी वरण

गुरुवार, 29 सितंबर 2011

एक कोशिश गजल लिखने कीएक कोशिश गजल लिखने की

जी रहे है उस आस मे जब अंधेरा साथ छोड़ देगा जब चलेगे उजाले की और जमाना साथ छोड़ देगा मंजिलो की तलाश मे दूर बहुत निकल आया हुँ मै करता नही कभी कशति पर भरोसा क्योकी किनारा साथ छोड़ देगा अब शिकायत क्या करे हम वो खुद गुनाहागार थे दिखा कर रोशनी मोहबब्त की फिर अंधेरो मे छोड़ देगा गम की दहलीज पर रख कदम वक्त से लड़ने लगे आज भले वो साथ मेरे कल भँवर मे छोड़ देगा लड़ रहे थे दो मुसाफिर बस एक इमान पर जो कराता था सुलह इनमे खुद घरौँदे तोड़ देगा

सोमवार, 26 सितंबर 2011

उजाले की ओर

उजाले की ओर
चला हूँ आतीत के अंधेरे भी साथ है रात
तो काली है पर तारे मेरे साथ है कोई
भले कहे कुछ रोशनी ले लो पर मुझे
मालूम है कल पूनम की रात है
डरता नही हुँ विपत्तियो के प्रेतो से
मेरा संकल्प अब भी मेरे साथ ह छोड़ने को आतुर है मेरा अनुभव साथी किस्मत की अब ये औकात मेरे मानस को आँख दिखाती पूजता था अब तलक जिन पत्थरो को वो पत्थर ही बने रहे लेकिन सौतन श्रद्धा अब भी मन से नही जाती कुछ हँस रहे है देख कर जो वासना के पति है माया जिनके खोखले दिलो मे बरसो से डटी है मैरे साथ हो लो जीवन का रस मिलेगा पर याद रख आखिर दोजख मे ही जलना पड़ेगा ये देख कर ही आँख मेरी बंद है और चला जा रहा हुँ नये उदय की और कहीँ मिली मानवता तो कहुगा ढूँढ ले नया ठौर

बुधवार, 21 सितंबर 2011

गरीबदास का दर्द

पेट पीठ से लगा हुआ और मिट्टी मे सना हुआ है श्रम से कुंदन सा तपा हुआ है और लाचारी के आगे झुका हुआ है दरिद्र नरायण ना म रखा है यथार्थ है दरिद्रता और नारायण रूठा हुआ है काला चेहरा तन काला है बाँट रहा अमृत लेकिन मिलती उसको हाला है कर्तवयनिष्ठ हो कर विकास यही उसने ठाना है एहसान फरामोश पूँजीवादी उप कैसा जमाना है सरकारी आँकड़े सा जीवन और समर्पण सुविधाओ का केवल आंडबर निर्वस्त्र लुटा पिट शोषित कुपोषित फिर भी कैसे जीवित ये भला निरक्षर उन ज्ञानी से जो इन्हे बैकबड कहते है पर भूल जाते है इनके इशारो से ही विकास के पहिये चलते है इनका सच सच नही लगता सरकार का धोखा लगता है भारत मे गरीब जिँदगी मे नही फाइलो मे तरक्की करता है गरीबी मिटाओ ये नारा बेमानी है प्रजापालक की आँखो मे ना शर्म है ना पानी है

मंगलवार, 20 सितंबर 2011

भारत वर्ष की जन्मगाथा ऐतिहासिक कम पौराणिक ज्यादा है और सनातन संस्कृति जिसे हिँदुत्तव कहना उचित होगा क्योकी ये सभी संस्कृतियो मे श्रेष्ठ और तर्क रहित धर्म है यह बात सौ फीसदी सैँद्धातिक होने पर भी 1400 साल पुराना कट्टरता की कालिख मे पुता हिँसावादी धर्म उंगली उठाने की चेष्ठा करता है जिसके धर्म का मूल मँत्र अल्लाह निराकार है अरे ये मे मंत्र जपने वालो जरा इस मंत्र को टटोलो ये हमारे धर्म की ही है देन है रूद्रष्टक मे पहली पंक्ति कहै नमामीशमिशान निवार्णरूप विँभु व्यापकम ब्रह्म वेद संवरूप निराकार ओंकार मूंल तूरियम गिरा ग्यान गोतितमिँशम गिँरिशम इस श्रलोक का ही तुम पाँच बार जाप करते है लेकिन फिर भी कहते हो हिँदू काफिर कौम है ये नमक हरामी का उदाहरण नही है भले ही आज इस्लाम फल फूल रहा हो लेकिन ये सच है इसकी जड़े हिँदुत्त से ही जुड़ी है पंरतु तुम अंधे धर्म और अंधे सिँध्दात के पीछे ही चले जा रहे हो जो तुम्हे अंधकारमय हिँसक जीवन की और लेजा रहा है तुम जितने भी धार्मिक कर्मकांड करते हो वे प्राकृति के विपरित ही होते है तो फिर तुम इस्लाम को सच्चा और पवित्र धर्म कैसे कह सकते हो क्योकी तुम हिँसक और क्रूर कर्म करते हो बहुविवाह करते हो ये विपरित कर्म क्या तुम्हे जन्नत मे जगह दे पायेगे आँतकवाद और देशद्रोही हरकतो से तुम वैसे ही सनातन धर्म और भारत से विश्वास खो चुके हो और अब ये तुमको तय करना है सनातन के सिँधान्त पर चल कर इस्लाम का पालन करना है या आँतक फैला कर इस्लाम को बदनाम तुम चाहे जो करो पंरतु ये याद रखो सनातन धर्म तुमहे माफ कर ही देगा गजनी को माफ कर सकते है तुम तो फिर भी सौतेले भाई हो जय राष्ट्रवाद

सोमवार, 19 सितंबर 2011

आज मै दुखी हो गया एक टोपी कि वजह से जो टोपी लाज कहलाती थी वो शर्म का कारण बन गई और टोपी एक वर्ग विशेष कि इज्जत बन गई और विशेष वर्ग गुर्रा कर देखने लगा ओर बुरा ये हुआ किसी गांधी बाबा की विरासत पर पलने वाले कांग्रेसी साँप भी उस टोपी के लिये फुँफकार मार रहे है जो उन्होने कभी नही पहनी क्यो की पहले से खद्दर की टोपी पहनते आ रहे मोदी जी ने कोई गुनाह नही किया क्योकी वो खद्दर की नही अनुशासन की काली टोपी पहनते है और उस पर दाग लगना मुशकिल है शायद इसलिये कांग्रेस और ज्यादा दुखी हो गई नरेन्द्र मोदी का टोपी कांड तो एक बहाना है असली काम कांग्रेस को गुजरात मे आसन जमाना है और हमारे मुस्लिम भाई तो भोँदू है कट्टरता की पट्टी जो बाँध रखी है ये तो इस्लाम को देश से उपर मानता है अपनी नमकहरामी के चलते वंदेमातर को गाने मे शर्म महसूस करता है अब जब मोदी ने टोपी नही स्वीकारी तो बुरा मान गया अरे मुस्लिम बंधू शाल तो मोदी ने लेली तुम्हारा मान तो रखा अरे तुम खुद सोचो अगर हम मुस्लिम विरोधी होते तो आज तुम इतने आजाद ना होते पाकस्तान से ज्यादा खुश रखते है आपको आप फिर भी हमे सांप्रदायिक की सुई चुभोते हो और कांग्रेस के तलवे चाटते हो अरे ये कांग्रेस अपने सगे बाप की नही तो तुम्हारा और देश का क्या भला करेगी मोदी की टोपी पर तो खूब चिल्ला रहे हो जरा कांग्रेस पर भी भड़ास निकालो जो टोपी पहना कर अपना उल्लू सीधा कर रही है जागो भारत के मुस्लमानो वरना एक दिन तुमसे ये भारत माता कहेगी किस हक से यहाँ रह रहे हो

रविवार, 18 सितंबर 2011

भिखारी

भूत तो हम भूल चुके है भविष्य की हम सोचे क्यो जीना है अभी पूरी जिँदगी फिर दुखो से निराश क्यो चाहे हालात हमे बेबस कर दे या मातम को घर मे धर दे लाचारी से भले पड़े पाला चाहे किस्मत पर लगा हो ताला हम तो रहते फिर भी मस्त मौला ना हमारा ठौर ठिकाना सारे जग को अपना घर जाना निर्भीक निडर रहते हरदम कभी दावत कभी फाँके पड़ना नही शिकायत उस दाता से डर लगता है धन दौलत कि बातो से क्षण भंगुर सा जीवन अपना काम हमारा मानवता की माला जपना हाथ कटोरा लेकर घूमे फक्कड़ता के मद मे झूमे जग कहे पागल और भिखारी दूर रखे सब रिश्तेदारी कहने को हम है एक भिक्षुक खुले रखे हे अपने चक्षु खाली आये खाली जायेगे केवल दाता के गुण गायेगे हमे देख कर तुम जीना सीखो अपने सदगुण जीवन मे लिखो

शनिवार, 17 सितंबर 2011

फेसबुक के युवाओ के लिये एक संदेश

फेसबुक पर भी टी आर पी का कीड़ा लग गया शायद तभी ग्रुप पे ग्रुप बनाये जा रहै है और दोस्तो को जोड़ने का अनुरोध किया जा रहा है ग्रुप मे सदस्य संख्या को लेकर खीचतान मची है जो देश को सवारने और समाज सुधार की बाते करते है वे ये सब छोड़ कर एकता समूह क्यो नही बनाते अब मुठ्ठी बाँधने का समय आ गया है आओ हम सब एक हो जाये हमारे विचार एक हो जाये आओ भारत का निमार्ण करे एक क्रांति का आह्वान करे अंखड भारत का निमार्ण कर जय राष्ट्रवाद
मैँ ना कांग्रेस को जानता हू ना भाजपा को लेकिन नंरेन्द्र मोदी को पहचानता हुँ जो कांग्रेस कि नजरो मे सिर्फ एक दंगाई है लेकिन गुजरात की जनता ने उन्हे गुजरात का दंबग बना दिया गुंजरात मे पिछले दशक जो साँप्रदायिक स्हाई से जो अध्धाय लिखा वो आज बेबुनियाद है विकास पथ पर दौड़ते गुजरात मे गुजरात भले ही भूल चुका है लेकिन कुछ कट्टरपंथी मुस्लमानो और गुजरात मे अपनी राजनितिक जमीन खोति कांग्रेस अब भी गोधरा कांड को जलता चूल्हा मानकर तवा चढाने को तैयार है जब्की सुप्रीम कोर्ट पानी डाल चुकि है अब चाहे कांग्रेस बुझे चूल्हे मे अनशनी फूँक मारे लेकिन आग नही जलेगी क्योकी गुजरात को एक दिशा देने वाला दीपक भी सदभाव का उजाला लेकर बैठा है और यह एक फाँस कि तरह काँग्रेस को चुभ रहा है पर पता नही शंकरसिँह बाघेला रूपी काँटा फाँस निकाल पाता है या नही अगर देखा जाय तो नरेन्द्र मोदी इमानदार है क्यो की गोधर काँड के बाद भी पूर्ण बहुमत ये सिद्ध करता है की काँग्रेस भरोसे मँद नही भुज के भूँकप मे गुजरात मिट गया लेकिन मोदी कि इच्छाशक्ति ने और गुजरात को विकसित कर दिया जब्कि कांग्रेस की झोली मे गुजरात के लिये कोई उपल्बधी नही है आज जब सदभाव को लेकर उपवास किया जा रहा है तो काँग्रेस मीडिया का सहारा लेकर इस अनशन को ढोँग और जनता को छल बता रही है लगता है मीडिया भी बिक ग ई है तभी तो सांप्रदायिक हिँसा विधेयक का समर्थन कर रही ही है और मोदी जी सदभाव के लिये अनशन अब जनता कि बारी जनता बताये कौन सच्चा कौन झूठा

मंगलवार, 13 सितंबर 2011


सिँतबर आ गया और शासकिय कार्यालय तैयार है हिँदी दिवस मनाने के लिये या आप ये भी कह सकते है ये श्रद्धाँजली दिवस हैँ क्योकी कांन्वेट दड़बो मे पढते गले मे टा ई लटकाये आज के अ सभ्य समाज हिँदी दिवस जानते ही नही उनके लिये तो अंलग सगी है और हिँदी एक विषय मात्र भर है आज हिँदी का स्तर अंग्रेजी के नीचे है और हम गर्व से कहते है यह हमारी राष्ट्रभाषा है क्या सिर्फ हिँदी पखवाड़ा मना कर या हिँदी दिवस को याद कर हिँदी को मुकाम दिलवा पायेगे हरगिज नही क्योकि हिँदी हमारी आत्मा मे नही बसी है बल्की वह हमारे चेहरे पर पाउडर जैसी पुति हुई है जो विदेशीयो के सामने आपको सम्मान दिलाती है आप भारत का प्रतिनिधित्तव करते है लेकिन अपनी हिँदी को भूल जाते है वैसे तो हम विकास रुपी ढोल खूब पीट रहे है लेकिन शर्म इस बात पर भी आना चाहिये की संयुक्त राष्ट्रसंघ मे हिँदी को सम्मान नही दिला सके आज वेलेनटाईन डे मदर डे और ना जाने कितने डे युवा मनाता है लेकिन हिँदी की गरिमा क्या है महिमा क्या है साहित्य क्या है ये कभी जानने कि चेष्टा करता क्योकी हिँदी आत्मा मे नही है हम आज अपनी जड़े खोदने पर तुले है क्यो कि हम शिक्षा के नाम पर अंग्रेजीयत अपनाते जा रहे है हर सरकारी काम हिँदी मे होना चाहिये लेकिन अफसर को हिँदी नही आती हद तो जब होती है कोई विदेश मँत्रि भारत आते है तो प्रेस वार्ता भी अंग्रेजी मे ही होती है अगर हिँदी का ये हाल रहा तो हिँदी का मरण हमलोगो के द्वारा हो जायेगा फिर अंग्रेजी हम पर हंसेगी और भारत माता कहेगी हिँदी मेरी बहना रुठ ग ई जो थी भारत क गहना जय हिँद

सोमवार, 12 सितंबर 2011

जाकिर का अंधा इस्लाम प्रेम


मैँने मुस्लिम विद्वान जाकिर नाईक कि काफी तकरीरे सुनी है ओर आपने भी सुनी होगी वे जिस तरह इस्लाम को महिमामंडित करते है तो हरकोई आर्कषित हो जाता है जाकिर जो कहते है वो कुरान और हदीस पर आधारित होता है अब ये कितने असरदार है ये हमे तब लगता है जब कोई आंतकि गुट कही विस्फोट कर देता है और इस्लाम के प्रति हमारा भ्रम टूट जाता है लेकिन बात यहाँ खत्म नही होती जब जाकिर हिँदू धर्म की तुलना कर इस्लाम और हिँदू धर्म मे समानता बताते है तो लगता है उसे नीचा दिखा कर उसमे छिपी इस्लाम विपिरत बाते द्वारा हिँदूऔ के मन मे अपने धर्म के प्रति शंका और इस्लाम का प्रति आस्था के भाव पैदा कर देते है ऐसा लगता है जैसे हिँदू धर्म की पोथिया चाट कर आये है आस्था से पढ कर नही आये जाकिर हिन्दू धर्म कि मान्यताओ कि काट इस्लाम मे तर्क के साथ पेश करते है चाहे गौ हत्या हो या मूर्ति पूजा या फिर हमारे अवतार जबकि हिँदू धर्म सभी धर्मो का पितामाह है लेकिन जाकिर कहते है मुसलमानो अपने बाप को बाप मत कहो (हिँदू धर्म काफिर है) आज जितनी भी आंतकि घटानाये होती है अंधिकाश मुस्लिम वर्ग पर हि शामिल होता हे लेकिन जाकिर इन पर भी यह सफाई देता है कुछ मुस्लमान आंतकी है लेकिन दूसरे धर्म इनसे कहीँ ज्यादा आतकीँ है ये कथन इस्लामिक आंतकके पक्ष को और मजबूत करता है जब्की जाकिर को इस्लामिक आंतकवाद का खुल कर विरोध करना चाहिये जाकिर इस्लाम का झंडे तले शायद सबको खड़ा करने की सोच रहे है और भारत मे इस्लामिक राष्ट्र कि नीँव को रखने का प्रयास कर रहे है पीस टीवी पर इनके कार्यक्रमो पर रोक ल गना चाहिये जय भारत मात.

रविवार, 11 सितंबर 2011


आप को अब सिर झुका कर कहना होगा की मेँ हिँदू बहुसंख्यक हुँ क्यो की आप को भी आँतकी घोषित करने का प्रयास किया जायेगा साप्रदायिक हिँसा विधेयक कानून की आड़ मै जो आपको सीधे तौर पर कहता है बहुसंख्यक हिँदू हिँ दंगा फैलाता है ये कैसा कानून है जो सनातन पंरपरा मै आँतक का पैबंद लगाने पर आमादा है सिर्फ इसलिये कि जो अल्पसंख्यको का आंतकि घटनाओ मे लिप्त है उन्हे सहानभूति का मरहम लगाया जाये क्यो कि जिस तरह अल्प संख्यक आबादी बढ रही है ये इंगित करती हैआने वाला समय इनका हि होगा अल्पसंख्क वोट बैँक हि सत्ता का समीकरण तय करेगा इस लिये राष्ट्रिय सुरक्षा समिती ये छदम कानून कि सिफारिश करती नजर आ रही है चूँकि कांग्रेस पूर्ण बहुमत मे है और समय भी है इस लिये इस विधेयक को पास होने मे कोई मुशकिल नही होगी अगर ये बिल आ पास हो जाता है तो ये हिँदुओ के लिये आत्मघाति सिद्ध होगा और अल्प संख्यक और संरक्षित हो कर बे खौफ आँतकी घटना करेगे अगर इतिहास खंगाला जाये तो ऐसा प्रमाण नही मिलेगा की किसी हिँदू ने गैर हिँदू को सताया हो या फिर उसके धर्म स्थल को तोड़ा हो या उनकी माँ बहनो का बलात्कार किया हो ब्लकि हिँदू स्वभिमान के लिये लड़ता है लेकिन मुसलमान हमेशा भारत को कमजोर करता रहा है और आज भी जितनी भी आँतकि घटना हुई वे पूरि तरह प्रमाणित है की ये इस्लाम को मानने वाले ही कर रहे है अभी कुछ दिनो पहले केजरीवाल जैसे छंछूदरो ने भ्रष्टाचार पर खूब प्रशसा बटोरी और खूब जनशक्ति का प्रदर्शन करवाया लेकिन जब ये विधेयक कि बात आई तो कोई भी विरोध के लिये आगे नही आरहा और जो मुसलमान अपने को हिँदूस्तानी कहता है वो आज चुप क्यो है कही उसकि इस चुप्पी के पीछे कही नये पाकिस्तान की कल्पना तो नही आओ इस पर विचार करे जय भारत .

सोमवार, 5 सितंबर 2011

अल्पसंख्यक नही देशभक्त बनो


अंखड भारत कि कल्पना कोई आज की नही है वर्षो पुरानी कवायद है जब जब किसी विदेशी ने भारत पर अपनी संस्कृति और शासन को थोपने का प्रयास किया तब तब क्राँति हुई और अधिकाश सफल भी हुई पंरतु विदेशी चले तो गये किँतु भारत को खंड खंड और संस्कृति को विकृत कर गये ब्रिटिश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ये भारत पर कुछ ऐसे कानून थोप गये जिसने हिँदुतत्व ओर भारत को पंगु बना दिया और कांग्रेस ने तो हिँदु को एक दंगा फैलाने वाली जाति करार दे दिया और मुस्लिमो को पूर्ण धार्मिक आजादी ही नही धार्मिक काननू तक दे दिये और एक विष्शिट दर्जा अल्पसंख्यक देखर निँरकुश और दंबग बना दिया और मुस्लिम अपने गर्व से हम भारतिय है कहते है और अपने धर्म का प्रचार और प्रसार करते है और अंखड भारत के मुद्दे पर अपने को अलग रखते है ये कैसी राष्ट्रभक्ति है जो देश को धर्म से नीचे खड़ा करती है दरअसल मुस्लिम अपने को पहले धामिर्क फिर नागरिक मानते है और ये समझते है ये अपना देश नही है अगर ये सही नही है तो मुस्लिम संगठन कशमीर और आंतकवाद पर अपनी राय सपष्ट क्यो नही करते आतकवाद के नाम पर दारुल फतवा क्यो नही देता अगर मुस्लिम देश भक्त ही होता तो अपने को समान नागरिक संहिता का सर्मथन करता और अंखड भारत के निमार्ण मे आगे आता अगर इसके कारण को तलाशा जाये तो इन सबका मूल जिन्ना और गांधीजी की राजनैतिक कौशलता है अगर गांधी जी चहाते तो पाक्सितान की नीँव नही पड़ती और ना ही हिँदुतत्व आज राजनिति का बंदी होता जिन्ना जो भारतिय मुसलमानो मे मुस्लिम राष्ट्र का बीज बोकर चले गये ओर हमारे राजनेताओ ने खाद पानी दे कर एक वृक्ष बना दिया और हिँदु को साप्रदायिक खरपतवार साबित कर दिया क्या आप अब भी नही जागेगे अगर अंखड भारत का निर्माण करना है तो पहले अल्पसंख्यक नही एक देश भक्त बनना होगा जय अंखड भारत

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

आज मैँ आपको लिये चलता हु आधुनिक साहित्य के उस युग मेँ जहाँ बेतरबीर का आलम है और कितने लेखको ने बुकर जैसे क ई नामी पुरूस्कार लेकर अंग्रेजो के लिचरेचरी दरवाजे पर भीखारी बन कर नाम कमा रहे है हमे शर्म भी नहि आती हमारे साहित्यिक पूर्वज प्रेँमचंद भारतेंदु और जयशंकर जी जैसे स्वाभिमानी लेखक थे जो समाज के लिये हि लिखते थे कोई बुकर के लिये नही ये कैसा न्याय है मातृभाषा के प्रति जहाँ हिँदी साहित्य का विकास नही हो पा रहा और आप अंग्रेजी मे कलम घिस कर धन और प्रसिद्धी के पीछे भाग रहे हो अरूधती राय विक्रम सेठ चेतन भगत ये अब हमारे नये साहित्यिक अवतार है इन लोगो का जीवन विलासता पूर्ण है ये क्या भारतीय समाज मे अच्छा साहित्य दे पायेगे अंग्रेजी अच्छी भाषा है लेकिन जन भाषा के प्रति उदासीनता ठीक नही क्यो की आप लोग युवा है आपके विचार युवाओ को अच्छे लगते है इसलिये आपको इन्हे अच्छा साहित्य देना होगा और आज भारत का अच्छा साहित्य हिँदी मे ही लिखा जा सकता है आज क ई युवा तो हिँदी साहित्यकार को भूल ही चुके है और तो और उनकि कालजयी रचनाऐ उन्हे बासी लगती है लेकिन उनको आपके नाम और रचनाऍ सहित पूरा वयक्तिव पता है आप जैसे भारतिय अंग्रेजी साहित्य कार साहित्य गोष्ठीयो मे कम फैशन शो ऑर फिल्मी दुनिया मे ज्यादा नजर आते है ऐसे आधुनिक अंग्रेजी बंदर क्या हिँदी की सेवा कर पायेगे आप लिखो खूब लिखो लेकिन हिँदी को अंग्रेजी के सम्मुख छोटा मत करो अगर आप हिँदी साहित्य को विश्व मे वो सम्मान दिला सको जो आज अंग्रेजी का है तो आपका लिखना धन्य है आगे आपकी मर्जी जय हिँद

बुधवार, 31 अगस्त 2011

मैँ जब भी अखबार पढता हूँ एक बात मुझे कचोटती है जब सेक्स विज्ञापन देखता हुँ की आज हम किस दिशा मे जा रहै है पूरे अखबार मे मसाज पार्लर एसर्काट सर्विस फोन सेक्स और न जाने क्या क्या बेहूदे विज्ञापन बड़ा अफसोस है तकनीकि का हम दुरपयोग कर रहे है हद तो तब है हमारा समाज चुप बेठा है और सरकार इस पर कोई प्रतिक्रिया नही करती और ना हि इनके चंगुल मे फसाँ कोई शर्म के
कहते है गौ माता मे 36 करोड़ देवता विराजते है यह सही है क्यो की गौ माता आस्था ही नहि समध्धी का भी प्रतिक है पर आज ये हमारी माता का अस्तितव अपने बूढे माँ बाप जैसा हो गया है घर मे रखना तो चहाते है पर सेवा नही गाँवो मे तो गौ माता का सम्मान बरकरार है लेकिन शहरी क्षेत्रो मे दयनीय स्थिती है यहाँ गौ माता व्यपार की मशीन हो ग ई है खूब दूध बेचो माल कमाओ इतना ठीक है लेकिन मरियल को कत्लखाने बेचो ये कौन सा सदाचार है गौ हत्या मे सने इन हाथो को कानून क्यो नही काटता लेकिन हम गाय पर क्या राजनीति करे ये अधिकार तो धर्म के ठेकेदारो का है आप रोज रोटी बनाते है लेकिन पहला ग्रास गाय को देना चाहिये इसके विपरित आप पहला निवाला अपने प्रिय विदेशी कुत्ते को बड़े प्यार से खिलाते है जब आप ऐसा करेगे तो आपके विचार भी कुत्ते जैसे ही होगे आप अपने को आधुनिक कहते हो लेकिन इस आधुनिकरण का क्या लाभ जब हम अपनी आस्था ही ना बचा पाये देश मे क ई गौमाता के भक्त छाति पीट रहे है क ई तो ईमानदार है और कुछ लालची कागजो मे गौशाला बनवा कर चारा खा रहे है और अपने को हिँदु कह कर हिँदु मर्याता को कंलकित कर रहे है अब तो हर भारतिय को ये सोचना होगा क्या हम सही कर रहे है

सोमवार, 29 अगस्त 2011

जागो मेरे हिँदू

हमारे देश की आबादी मेँ 80% लोग अपने को हिँदू कहते है और कुछ हिँदू विरोधी या यू कहे सेकुलरी लेबल माथे पे लगाये हिदूत्तव की बाते करते है लेकिन अगर मूंल्याकन करे तो हम हिँदुत्तव पर खरे नही उतरेगे क्या तिलग लगाने मात्र से अपने को हिँदू मान ले या फिर मंदिर मे जा कर दान देकर या अपना रौब दिखा कर अपने को हिँदू कहे जय श्री राम के ओजपूर्ण नारे लगा कर हुड़दंग करना हि हिँदुत्तव है आज अगर हम अपने को हिँदु कह रहे है वह झूठ है क्यो की हिँदू की परिभाष संस्कार हम तो भूल ही चुके है साथ ही हमारी आने वाली पीढी अपने को हिँदू कहलाने मे शर्म महसूस करे तो आप किसे दोषी मानेगे ये एक गंभीर समस्या है इसलिये एक अंखड हिँदु राष्ट्र की आवशकता है लेकिन कुछ सत्ता लोलुपता के चलते इस मुद्दे पर जबान नही खोलते और ना हि कोई सामाजिक संघठन कोई ठोस कदम उठा रहा है मुझे दुख इस बात का है हम ना वो संस्कार अपने युवाओ को दे नही पा रहै जो हमे वेदो से मिले है हमने वेदो को एक किताब भर मान लिया है क्या हम एसा कर के हिदुत्तव को गर्त की और ले जा रहे है आंडबरो से घिरा हिँदू सिर्फ अपना हि हित साधने मे लगा है जातिवाद और रूड़ीवादी परपरांओ मे उलझ कर हिँदु एकता को कमजोर कर रहा है आज आधुनिकता की आड़ मे अपने विचार से विमुख हम केवल अपनी संस्कृति का मजाक उड़ाने मे मस्त है मै उन सेकुलरो को आह्वान करता हू जाग जाओ और नहि तो हमे फिर को ई गजनी या अंग्रेज गुलाम बना कर भारत की पावन भूमि को इंगलिस्तान या को ई पाक्सितान बना डालेगे अगर सम्मान से जीना है तो वेदो और भारतिय सनातन धव्जा थाम कर आगे आओ भारत माता बुला रही है जय भारत

शनिवार, 27 अगस्त 2011

आजकल युवा वर्ग को लोकतँत्र कि बहुत चिँता है और अन्नाटीम के आँदोलन मे युवा बहूसख्या मे जनता कि भागीदारी देख कर लगता है ये लोकतंत्र के मसीहा है अब प्रशन ये है क्या जनता सच मे लोकतंत्र का मतलब समझती है या सिर्फ एक भेड़चाल है अगर संविधान की माने तो वह लोकतंत्र रूपी ढांचे को जन कानून सरकार और मीडिया रूपी खंबो पर टिका मानता है और यही कारण है विश्व मे हमारी लोकतंत्र प्रणाली का कोई सानी नही लेकिन आज लोकतंत्र के ये चारो खंबे जीर्णता की कगार पर खड़े दिखते है क्योकी जनता कानून सरकार और मीडिया अपने को होड़वादी मानने लगे है आज देश की जो परिस्थितीया है उस पर इन चारो को गंभीर होना चाहिये भारतिय जन मानस को सिर्फ दो काम ही आते है समर्थन करना या विरोध करना और इसके बाद वह यह समझता है अपना काम हो गया अब कानून को करना चाहिये कानून नौकरशाही और रिशवत खोरी के दलदल मे इस कदर फँसा है की स्वंम को एक मजबूत नया कानूनी रस्सी चाहिये तीसरा खंबा है सरकार इसका स्तर तो काफी गिर चुका है नित नये घोटाले और जन हित नीतियाँ उस पर से विश्वास उठा रही है और विपक्ष सहित ज7अ का आक्रोश झेल रही है इसे सबसे ज्यादा कमजोर कह सकते है अब मीडिया का पक्ष देखे तो वह उतनी दोषी नही जितना कानून और सरकार लेकिन मीडिया आज समाज का सेतु कम अपनी साख बनाने मे ज्यादा जागरूक है आज वो पत्रकारिता नही ब्रेकिग न्युज मे विश्वास करती है समस्या सुलझाने कि बजाये उसे तब तक थामे रखती है जब तक उसे भरपूर टी आर पी ना मिले क्या पत्रकारिता का यही कर्तव्य है अगर देश मे ये चारो खंबो को मजबूत नही किया गया तो हमारी अगली पीढी लोकतंत्र मे कैसे विश्वास कर पायेगी अगर जनता जाग जाये तो ये तीनो कभी सो नही सकते जय भारत

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

दिँ 24 अगस्त को एक खबर छपी छतरपुर के एक गाँव मे एक गरिब किसान नरपत यादव का लकड़ीयो के अभाव मे दाह संस्कार टायर जला कर किया ये कैसी विँडबना है की संपन्न भारत मे इस तरह कि घटना कोई अच्छा संदेश नही देती इस घटना ने समाज और प्रशासन दोनो पर प्रशन चिह्न लगा दिया है और उन समाजसेवी संगठनो के प्रति हीनता प्रगट करता है जो चंदा तो बखूबी लेती है किँतु पूरी तरह जागरूकता के साथ काम नही करती ये प्रशासन इस लापरवाही पर आर्थिक सहायता की मिट्टी डाल कर अलग हट जाता है एसे क ई उदाहरण हमारे सामने आचुके है आज संवेदनाऐ एक औपचारिक बन कर रह ग ई है योजनाऐ बहुत है सरकार के पास और भलीभाँति पालन भी हो रहा है लेकिन फिर भी कभी ना कभी ऐसी दुखद घटनाऍ हो जाती है सरकार ना उसकि जबाबदारी लेती है और नाही दूर करने का प्रयास करती है किसानो की आत्म हत्या कुपोषण से मृत्यू प्रसव मृत्यु आदी घटनाऐ भी भारी तादाद मे होती है जब्की महिला एंव बाल विकास को इसके लिये जिम्मेदार बनाया है इन घटनाऔ के पीछे हमारा नौकरशाह तंत्र भी उतना ही दोषी है जितनी सरकार और समाज नौकरशाही के चलते क ई योजनाऐ लोगो तक नही पहुच पाती और नौकरशाह पैसा तक डकार जाती है अब तो लगता है सबकी संवेदनाऐ मर चुकि है केवल एक दिन अंधेरे गर्त मे गिरना बाकी है
पहले मै भारत की उस वीरप्रसुता नारी को प्रणाम करता हूँ जिसने लज्जा और मर्यादा को अपने साथ आँगिकार कर देश को महासपूत दिये अब मै उस आधुनिक नारी को तिँलाजली देता हु जो नारी समाज को पश्चिमी संस्कृति मे धकेलने मे प्रयास रत है आज वो इतनि मार्डन हो ग ई है कि वो सुँदरी कम काम सुंदरी ज्यादा हो ग ई है और भारतिय संस्कृति का बदन उघाड़ने के लिये आतुर है और हमारा महिला आयोग उनका सर्मथन करता है आज कल एक मोर्चे की बड़ी चर्चा है बेशर्मी मोर्चा जो कनाडा के टोँरटो से निकल कर हमारे भारत मे कब आ गया ये पता ही नही चला ओर नारी जगत ने अनुसरण मी कर लिया और भारतिय समाज मे अपने अधिकर का ढिँढोरा पीटते हुये एक न ई विचार धार को जन्म दिया जो नारी को और अधिक उन्मुक्त और बे शर्म बना रहा है ये आधुनिक कामकन्याये नारी को कौन सी दिशा दे रही है आज नारी को किसी बेशर्मी मोर्चे की नही बल्कि उस मोर्चे कि अवश्तकता है जो उन्है भारतीय पंरपरा के साथ अपने मूलभूत अधिकार और स्थिती को सुधारने की अवशयकता है आज भी मध्यम और निम्न वर्गीय महिलाऐ शोषण ओर अधिकारो से वँचित है और दहेज हत्या जैसे वीभत्स पीड़ा झेल रही है इसके विपरित आधुनिक कन्याओ का बेशर्मी मोर्चा क्या सँकेत देता है और क ई NGO बेशर्मी मोर्चे को नारी कि जागरूकता बता रहै है आज भारत कि नारी को संविधान ने जो बराबर का हक दिया है उसका उपयोग कम दुरपयोग ज्यादा हो रहा आज भारत कि नारी को सम्मान तभी मिलेगा जब वह आधुनिकता के साथ साथ भारतीय परँपरा के साथ चलेगी जय हिँद

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

भारत के स्वंतत्रा संग्राम मेँ हमारे कुछ राष्ट्रवादि लोगो ने एक सनातनी हिँदु राष्ट्र कि कल्पना कि थी और अधिकाश इस का समर्थन भी करते थे किँतु कुछ सेकुलर वादि लोगो ने सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य मे अंग्रेजो से मिल कर हिन्दु राष्ट्र वादियो को ना सिर्फ समाज से बाहर का रास्ता दिखा दिया अपितु इतिहास मे भी उन्हे गुमनामी के अंधेरो मे धकेल कर अपने को सच्चा देशभक्त घोषित कर दिया हेडगेवार सावरकर मदन लाल ढीँगरा जैसे महापुरुषो को मृत्युपोँरात भी सम्मान ना दे सके आज भी हमारी पीढी इनके संर्घषमय जीवन से अंजान है खादी धारियो कि इस बेईमानी का हमने कभी विरोध नही किया यहाँ तक कि इन वीरो ने हिन्दु राष्ट्र कि कल्पना के साथ अपने प्राण दे दिये लेकिन हम हिँदु विघटित होते रहे जाति और श्रेष्ठता मेँ बँट कर हम टूटते चले गये और साथ हि एक हिन्दु राष्ट्र की नीँव जो अभी कमजोर ही थी उसको ध्वस्त कर एक क ई कमरो वाली सेकुलर इमारत खड़ी कर दि और सेकुलर हिन्दुत्तव को नीचा दिखाने लगा इस इमारत मे हिँदुत्तव का झंडा लिये कुछ ऐसे भी है जो सिर्फ चंदा लेने और हिन्दु को उग्र कर भड़काने जैसा कार्य ही कर रहे है लेकिन हिँदुऔ की एकता के विषय मे ये कुछ नही करते आज दूसरे धर्म के लोग हमारे धर्म मे विश्वास नही करते इसका प्रमुख कारण है हमारे वे हिन्दु संगठन जो राम मंदिर और हिन्दु राष्ट्र मुद्दो मे भी हित तलाश रहे है आज हर हिन्दू को जागना ही पडेगा और उसे एकता मे ही रहना होगा भारत मे रहने वाला हर वयक्ति हिँदु है चाहे वो किसी भी धर्म को मानता हो यह उसे स्वीकारना होगा और वो ये जान ले हिन्दु धर्म ही सनातन परपँरा है एक उतकृष्ट विचारधारा है अगर हम अब भी नही जागे तो हिँदु राष्ट्र कि कल्पना तो दूर बाबर और गजनी फिर से देश लूटने आयेगे तो आप क्या करेगे जंय हिँद

बुधवार, 24 अगस्त 2011


ये लेख किसी धर्म भावना को ठेस पहुचाना नही है ये लेख उस दिशा की और अवगत कराना है जो राष्ट्र भक्ति कि बात करते है लेकिन राष्ट्र निमार्ण मे कोई भूमिका नही निभा रहे है कहने को देवबंद इस्लामी शिक्षा का केँद्र है और विश्व मे उसका अपना नाम है लेकिन उसका नकारात्मक पहलू है वेबजह फतवे जारी करना जो की मुस्लिमो कि राष्ट्र भावना मे शंका पैदा करते है उसका ये कहना कि हम मुस्लिमो को वंदेमातर नही गाना चाहिये औरना ही भारत माता कि जय जब्कि मुस्लिम पँडित जाकिर नाइक ने कभी मुस्लिम को ये नही कहा है लेकिन देवबंद को एक सच्चे भारतीय मुस्लमान को वंदेमातरम कहने मे क्या आपत्ती है अब दूसरा पहलू है राम मंदिर के विषय को लेकर जब हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया जो की न्यायसंगत था और जजो के पैनल मे भी एक मुस्लिम जज थे उनके दिये गये फैसले पर उन्होने कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नही दी और ना ही फैसले को उचित बताया जब्कि देवबंद का ये फर्ज था कि वो सारे मुस्लिम समाज को समझाति कि फैसला सही है जिसका परिणाम ये है मामला सुप्रिम कोर्ट मेँ पहुँच गया अगर देवबंद मुस्लिम हितैषी होती तो बाबरि मस्जिद कमेटी को समझाती लेकिन उसने ऐसा ना कर के अपने को राजनीति से परे बता दिया तीसरा पहलू देवबंद राष्ट्रवादी मुस्लिमो मे भेद भाव रखता है और क ई विद्वानो को अपने पद से बे वजह हटा देता है देबबंद को अपना इतिहास नही भूलना चहिये देबबंद की भी आजादी कि लड़ाई मे योगदान था इसलिये देवबंद से आग्रहै भारत के मुसलमान को कट्टरता का नही देश भक्ति का पाठ पढाये जय हिँद

भगवा पर आँतकी रंग एक साजिश


हमारे तिँरगे मे तीन रंग है तीनो की अलग अलग महिमा गढी है संविधान ने केसरिया ( भगवा ) को त्याग और वीरता का प्रतीक बताया लेकिन भगवा हिन्दू कि आत्मा भी है ये कुछ सेकुलरवादी कीड़े भगवा पर आंतकवादी लेबल लगाने का प्रयास कर रहो जिसका सीधा अर्थ हिन्दू संस्कृति पर कालिख पोतना है जब्कि सफेद और हरे रंग को लेकर कभी अपना मुह नही खोला जो कि सबसे घृणित धर्मान्तरण और आँतकवाद फैलाने कार्यो मैँ लिप्त है लेकिन मुस्लिम समाज ने इस पर कभी प्रतिक्रिया नही दी इसका क्या ये अर्थ निकाले कि वो काफिर हि मानते है और भारत को अपनी मातृभूमि नही मानते है लेकिन ये सच नही है मस्लिम भाई अपने धर्म के प्रति कट्टर जरूर है किँतु देश भक्ति कि भावना उतनि प्रबल नही है जितनी अशफाक जी इंकबाल और बहादूरशाह जफर मे थी लेकिन मुस्लिम भाई इन्हे अपना आदर्श नही मानते इसका कारण हमारे हि वो लोग है जो हिँदू का तमगा लगा कर हिन्दू समाज को ओछा और साँप्रदायिक चेहरा पेश कर सिर्फ सत्ता पाने कि जुगत मै है और भगवा को आंतकि रंग देकर उसे भी उस श्रेणी मे खड़ा करने का प्रयास कर रहे है जहाँ आज पाक्सितान है इन कुटिल राजनेता ओ को देशभक्त कहलाने का कोई अधिकार नही है आज हर वर्ग को उठ कर आगे आकर एक सर्व गुण संपन्न राष्ट कि नीँव रखनी होगी और भारत को एक सनातन पंरपरा से युक्त हिँदु राष्ट्र निमार्ण कि भावना जागृत करनी होगी जर हिँद

सोमवार, 22 अगस्त 2011

कुछ सालो पहले एक फिल्म आई लगे रहो मुन्ना भाई जिसमे नायक दादागिरी छोड़ कर गांधीगिरी करता है गांधी सत्याग्रह करते थे और हम गांधी गिरी कर रहे है गांधी जी अनुशासन मे चलते थे और अनुशासन चलाते भी थे हम ना अनुशासन मे चलते है और किसी को चलने भी नही देते और गांधीगीरी करते है टेरिकाट की टोपी पहन कर जिसका मूल्य दस रूपये होगा यानी कि आज गाँधी जी के आदर्श दस रूपये मे खरीद सकते है गांधी जी निंदा नही करते थे आप निँदा किये बिना आगे बढ़ नही सकते आप फिर कैसे गांधी का अनुशरण कर रहै है एक टोपी लगाने भर से क्या आप गांधी के प्रतिबिँम्ब बन जाओगे उस गांधी से पूरी अंग्रेज सरकार डरती थी आपसे आपके मोहल्ले का थानेदार नही डरता क्यो बेवजह भीड़ मे शामिल होते हो
कुछ सालो पहले एक फिल्म आई लगे रहो मुन्ना भाई जिसमे नायक दादागिरी छोड़ कर गांधीगिरी करता है गांधी सत्याग्रह करते थे और हम गांधी गिरी कर रहे है गांधी जी अनुशासन मे चलते थे और अनुशासन चलाते भी थे हम ना अनुशासन मे चलते है और किसी को चलने भी नही देते और गांधीगीरी करते है टेरिकाट की टोपी पहन कर जिसका मूल्य दस रूपये होगा यानी कि आज गाँधी जी के आदर्श दस रूपये मे खरीद सकते है गांधी जी निंदा नही करते थे आप निँदा किये बिना आगे बढ़ नही सकते आप फिर कैसे गांधी का अनुशरण कर रहै है एक टोपी लगाने भर से क्या आप गांधी के प्रतिबिँम्ब बन जाओगे उस गांधी से पूरी अंग्रेज सरकार डरती थी आपसे आपके मोहल्ले का थानेदार नही डरता क्यो बेवजह भीड़ मे शामिल होते हो

रविवार, 21 अगस्त 2011


एक जन जागरण जो भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा हुआ और थमने का नाम नही ले रहा राम लीला मैदान मै मेले सी स्थिती है कोई गांधी टोपी बेच रहा है कोई जेब काट रहा है ये जन आंदोलन है कोई गांधीवादी है कोई सिविल सोसायटी का मुखौटा लगाये पूर्व प्रशासनिक अधिकारी जिनमे आज भी रंज भरा है की वह भ्रष्टाचार और अपनी बेदाग छवि के कारण उच्च पद ना पा सके और वे चहाते है जो हमारे साथ हुआ फिर किसी के साथ ना हो ये सिवील सोसायटी जन सुधार छोड़ कर जनतँत्र सुधार रही है और अन्ना जी का सहारा लेकर राजनितिक नीँव गढने का प्रयास कर रही है अन्ना तो गांधीवाद के प्रति पूरे ईमानदार है किरन बेदी ईमादार अफसर जो प्रशासन की भुक्तभोगी है कितु केजरीवाल भूषष हेगड़ कौन है ये आदोलित भीड़ नही जानती आज छठा दिन है अनशन का कितु केजरीवाल अड़े है सरकार को ना तो अल्टीमेटम दे रहे है और ना ही कोई सुझाव रख रहै अन्ना का वे ऐसा उपयोग कर रहे है जैसे किराये पर उन्हे लाया गया हो यह बात अंधभक्त जनता समझ नही पा रही भ्रष्टाचार से सभी मुक्ती चहाते है लेकिन देश के आगे सम्सयाओ का अंबार लगा है बड़े शर्म कि बात है की हम लोकपाल को 40 मे लागू नही करपाये जब्कि गैर कांग्रेसी सरकार भी थी और इमानदार भी चूक हम से ही हुइ है और इस प्रशन का उत्तर हमे ही तलाशना होगा

शनिवार, 20 अगस्त 2011

भ्रष्टाचार से दुखी जनता नेता संसद और उपर से जनलोकपाल को लेकर रोध प्रतिरोध एक बात चुभती है ये भ्रष्टाचार जनता को आज याद आ रहा है जब हमारे यहा सकल घरेलू उत्पाद बढा है जो विकास का सूचक माना जाता है क्या वाकई जनता भ्रष्टाचार से तंग है नही वो भ्रष्टाचार से तंग नही बल्कि उस कार्यप्रणाली से त्रस्त है जिसने भ्रष्टाचारी विषाणु प्रशासनिक सेवाओ मे छोड़े जिससे हर सरकारी विभाग पीड़ित हो गया भ्रष्टाचार के बिना अधिकारी बाबू पुलिसवाला चपरासी रह ही नही सकते और ये बात भारत का हर नागरिक 64 सालो से देखता आ रहा है

अन्ना गाँधीवादी नही देशभक्त


रालेगाँव सिद्धी एक ऐसा गाँव जो कभी पिछड़ेपन की दहलज पर बैठा अपने आप को कोस रहा था सरकारी योजनाओ से दूर ये गाँव बेहाल था ऐसे मे एक ऐसे शख्स ने राह दिखाई जिसने ना राजनिति पाठशाला मे पढाई की ओर ना हि कीसी NGO के आगे नाक रगड़ी वो स्वामबलन मे विश्वास रखता था और मानता था श्रम शक्ति प्रबल हो तो सबकुछ संभव है उसने युवा शक्ति और श्रम का एसा संयोग किया की विकास से कोसो दूर रालेगाँव विकास की परिभाषा बन गया और आज रालेगाँव आदर्श गाँवो मे गिना जाता है रालेगाँव का विकास ये दर्शाता है अन्ना एक कर्मशील वयक्तिव है आज राले गाँव हर मूलभूत सुविधाऍ है और आत्मनिर्भर है अच्छी खेती होती है और अन्य पिछड़े गाँवो की मदद करने का होसला रखता है ये अन्ना का ज्जबा हर सरकार ने देखा लेकिन सराहना तो दूर उससे सीख भी ना सके आज यही बूढा अन्ना भ्रष्टाचार की गंदगी साफ करने निकला है और लोग साथ दे रहे है लेकिन अन्ना के इस आंदोलन का कही राजनितिकरण ना हो जाये या फिर कही सरकार के दाँव पेच कही अन्ना टीम को हि ना कटघरे मे खड़ा कर दे ऐसी आशका क ई के मन मे है इसलिये अन्ना जी को गाँधी वादी ना बता कर देशभक्त कहना ज्यादा लाभदायक है क्योकी गांधीवाद कहलवाना मतलब कांग्रेस के मदद गार इसलिये अन्ना जी को मै देशभक्त कह रहा हू

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

गांधी जी का हिँदुवाद और कांग्रेस गांधी जी का हिँदुवाद और कांग्रेस

मैँ आज उस विषय को आप तक पहुचा रहा हू जो गांधीवादी पुच्छले संघ को फासीवादी और हिन्दुत्व को साप्रदायिक कह कर हमारी सनातनी रूपी परपंरा वृक्ष की डालिया काट रहे है जिस पर वे स्वंम भी बैठे है और समाजवाद का भोंपू लेकर चिल्ला चिल्ला कर लोगो को हम से बचने को कहते है मा गांधी की हत्या एक आक्रोश था जिसे सत्ता के लालची दलालो ने संघ के मत्थे मढ दिया और अगर गांधी जी की विचार धारा कांग्रेस समझे तो गांधी जी हिन्दुत्व की भावना रखते थे चूँकि आजादी की लड़ाई मे कांग्रेस मे जनसर्मथन उबाल पर था और परिस्थितयाँ काग्रेस के पक्ष मै थी इस लिये संघ से बापू और काग्रेस से किनारा कर लिया होगा लेकिन 1947 के बाद बापू का ये कहना कांग्रेस को खत्म कर दिया जाये ये उस और इंगित करता है बापू भी संघ की विचार धारा से सहमत थे लेकिन कांग्रेस ने सत्तालोलुपता के चलते गाँधी के उस विचार को नकार दिया बापू की हर सही गलत बात को सत्य मानने वाली काग्रेस ने उनके विचारो का आदर नही किया और मासूम जनता को अपने लिये राजी कर लिया ऐसी कांग्रेस के प्रति हम आज भी आस्था रखे है ये हर भारतीय को सोचना चाहिये

आजाद भारत गुलाम इंडिया

अब मै आजाद हु ये मै नही मेरा भारत कहता है लेकिन मै फिर भी गुलाम हु ये इंडिया कहता है मै गाँवो मेँ बसता हु बैलो की घंटीयो मे मन रमा है भूमिपुत्रो की हर श्वास मै हू मै आजाद हु पर क्या करु मेरा एक ओर नाम जिसको टाई धारी इंडिया कहते है वो अपने को दासता मे जीना पंसद करता है क्यो कि वह फटेहाल मेरे बच्चो को देख कर मुँह बिचकाता है मेरी भाषा मे बात करने वालो से कन्नी काटता है उसे गोरो की काली जबान पंसद है ये मेरा इंडिया है जो को एड अंग्रेजी शिक्षा पढता है अपने जिँदा बाप को मरा हुआ कहता है और अपने संस्कारो मे शर्म महसूस करता है और सदा इस आशा मे लगा रहता है पढाई के बाद गोरो की गुलामी करूगा ये मेरा गुलाम इंडिया है मै वो भारत हुँ जो अब झोपड़ पट्टी और मध्यम वर्गिय दड़बो मे रहता हु ओर ये इंडिया महल अटारी मै बैठा मेरा मजाक उड़ाता है और इंन्ही अटारियो मे रेव पार्टीयो के जश्न मे मद मे चूर धुँआ उड़ाता इंडिया अपने को 21 वी सदी का उगता सूरज बता रहा है ये इंडिया सचमुच गुलाम है लेकिन मै आजाद हु क्योकी मेरे लोकतंत्र यज्ञ की आहुति देने जब कोई कमजोर पिछड़ा जाता है तो मैरे प्रति आदर और अपने लिये उम्मीद लिये जाता है और फिर ये इंडिया उसकी उम्मीद के आगे ना लगा देता है क्यो की ये गोरो का इंडिया है खुली हवा 64 साल हो गये मुझे और इंडिया को लेकिन मैँ बिमार और थका सा हो गया हु ओर इंडिया यंग होता जा रहा है मेरे जीवन के सारे वंसत वेलेनटाईन डे ने छीन लिये है ओर मेरे सारे मित्र भी एक दिन के लिये सिमट कर रह गये है ये इंडिया मुझे कही का नही छोड़ेगा मेरा जो डंका विश्रव मै बजता था अब ये इंडिया फिर से गोरो को बेच देगा क्या तुम मुझको बचा लोगे
bk

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

अन्ना के पीछे मीडियावादी लोकतंत्र ओर जेपीअन्ना के पीछे मीडियावादी लोकतंत्र ओर जेपी

bkआज हर कोई गला फाड़ चीख रहा है भ्रष्टाचार मिटाओ जनलोकपाल लाओ ये लोकतंत्र की आवाज कतई नही है ये मीडिया वादी लोगो का वो जत्था है जो आंदोलन की आड़ मे सिर्फ अपना चेहरा प्रसारित करवा रहे है केवल मुठ्ठी भर लोग ही है जो देश का असली मर्म समझते है एक अन्ना के पीछे हो लेना आदोलन नही है बात तब बनती अन्ना का सबके साथ होना अन्ना का ये परहेज मुझे समझ नही आया अन्ना की रामदेव व गैर काग्रेसी दलो से दूरी का ये अभिप्राय भी माना जा सकता है की सिविल सोसायटी कही खुद राजनैतिक मंच ना बन जाये 65 वर्षो से हम जूझते ही आ रहे है अगर आकलन किया जाय तो भ्रष्टाचार ही नही नक्सलवाद कालाधन नौकरशाही लालफिता शाही ओर अन्य क ई विकट ओर भयानक समस्याऐ है लेकिन इस ओर ना लोक समाज झुका और ना ही कोई अन्ना और आज की परिस्थिति एसी है अधिकाश को पता ही नही जन लोकपाल बिल है क्या (ndtv india मै अभिज्ञान लोगो से जनलोकपाल क्या है पूछ रहे थे) ओर अन्ना के समर्थन कर रहे थे यह कैसा जन आंदोलन है मै जेपी और लोहिया के आंदोलनो को जन आंदोलन मान सकता है जो उन्होने किया अन्ना ने तिल भर भी नही कीया जेपी के आंदोलन ने लोकतंत्र की आँखो से वो विश्वास की पट्टी हटाई जो काँग्रेस ने आजादी के बाद बाँध दी थी जेपी के आदोलन की सफलता बिना मीडिया या बिना किसी सिविल सोसायटि ओर मुठ्ठी भर युवाओ कि ललकार ने सत्ता को पलट कर रख दिया आज के युवाओ का आदर्श अन्ना बन गये ओर जेपी को आपातकाल के बाद हम भूल गये और उन्हे हमने किताबो ओर बुतो मे दफन कर दिया आज के युवाओ को ये भी नही पता होगा ये जेपी कौन है आज जेपी होते तो आंदोलन सफल ही नही प्रभावशील भी होते अब तो लोकतत्र को जाग जाना चाहिये क्योकी समस्याऐ गंभीर सरकार तानाशाह ओर हम लाचार हो गये है जय भारत

बुधवार, 17 अगस्त 2011

ये कैसा लोकतत्र

bkआज लोकतंत्र की आरति उतारो लोकतंत्र का तिलक करो प्रशन मत करो केवल उसकी सुनो जो कहता है अब रूक ना सकेगा यह स्थिती आज पूरे देश मे बन ग ई है सरकार क्या करे क्या ना करे अन्ना आर पार करने उतरे है लेकिन सरकार भी फूँक फूँक कर कदम रख रही है रामलीला मैदान काँड को वह भूल चुकि है लेकिन एक प्रशन बाबा रामदेव का भी हम देखे काला धन वयवस्था परिवर्तन को लेकर उनका असफल और बेईज्जत भरा आदोलन को हम स्वीकार ना सके और बाबा को मैदान छोड़ना पढा जबकि इसके विपरित हम अन्ना के पीछे हो कर भूख प्यास त्याग दी ओर बुद्धिजीवी लोकतंत्र की आवाज बुँलद मान रहै अन्ना अनुभवी खिलाड़ी की भाँती सरकार से भिड़ने आये है उनकी फौज मै हर वो सैनिक है जो प्रशासन के रवैये को जानता है लेकिन इसके विपरित बाबा रामदेव का काला धन ओर अन्य मुद्दे लोकतँत्र के कमजोर रवैये की भेट चढ गये ओर बाबा खुद जाँच ऐँजेसी के शिँकजे मे फँस गये और हम चुप बैठ गये हमारा लोकतँत्र मीडियावादी बन कर रह गया है ह र वयक्ति अपने को मीडिया की सुर्खी बनाना चाहात है अगर अन्ना सचमुच मे भ्रष्टाचार के प्रति स्वेदनशील होते तो रामदेव और अन्ना एक मंच पर होते तो रामलीला मैदान का आँदोलन सफल होता ओर आज अन्ना को दोबारा अनशन ना करना पडता ये हमारा कैसा लोकतत्र है

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

देश विचार

जय भारत जय सनातन तुझको मेरा प्रणाम एक हो लक्ष्य एक हो हमारा ध्यान ना कुरूतियो का दल दल हो ना हो हम धर्मभीरु ना कोई मिथक आंडम्बर हो संस्कार और संयम के भूषण जातिप्रथा का हो दूर कुपोषण एक मानवता चिर परिचित हो तृष्णा मिटे हर मातृ भूमि की हरिता ओर सिँचित हो लज्जा हो नारी मे इतनी शोशित समाज ना कर पाये वीर प्रसूता बन आज तू महापुरूष को तु फिर जाये अपने अपने पथ चुन लेना जीवन का समय अब शेष नही सियार शासन आ गया सत्य का परिवेश नही विनती है कर्णधार देश के तुम ना मुह फेर लेना देशद्रोहियो के प्राण लेना देश की आन मे प्राण देना

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

कांन्वेट शिक्षा मतलब अंग्रोजो कि दलाली

bkआज एक खबर पढी स्कूली छात्राये शराब पीती पकडी ग ई ये एक खबर मात्र नही थी ये उस ओर इशारा है जहाँ हमारे बच्चो का भविष्य तिमिर युक्त और चरित्र विशाक्त बनाया जा रहा है और हम सिर उठा कर दर्प मे कहते है मेरा बच्चा मँहगे कांन्वेट स्कूल मै पढता है देश आजाद तो हो गया लेकिन हमे मानसिक गुलामी से मुक्ति कब मिलेगी क्या हमारी सरकारी शिक्षा इतनि निम्न है की हम इन इसाईत के कारखानो मे अपनी फसल तैयार कर रहे है बेशक कांन्वेट स्कूल शिक्षा को गंभीरता से लेते हो लेकिन वे हमारे बच्चो से वे संस्कार छीन लेते है जो उसे अपने परिवार और परिवेश से मिलते है ये कैसी हमारी लाचारी है आखिर इनके प्रति आकर्षण क्यो है क्या आप ये उम्मीद करते है आपका सुपुत्र आपको लात मार कर घर से निकाल दे या फिर आपके सामने कोई व्याभिचार करे लेकिन ये आपके साथ 100% हो सकता है क्योकी आप सिर्फ कांन्वेट मे पढा ही नही रहे बल्कि प श्चिमि संस्कृति की ओर धकेल रहे है कांन्वेट मे पढ कर बेशक अच्छा रोजगार मिले या ना मिले लेकिन फर्लट सेक्स नशा आगे रहने की चाह घंमड धोखा देने मे महारत हासिल हो जायेगी और हो सकता है तुम लालच मे आकर अपनी आत्मा बेच आओ इसाई बन जाओ तो फिर क्या मतलब एसी शिक्षा का जो चरित्र पर ही कालिख पोत दे क्या आखिर हम चुपचाप तमाशा क्यो देख रहे है इन मिशनरी स्कूलो का बहिष्कार क्यो नही करते अगर हम कांन्वेट स्कूलो का विरोध नही करेगे तो हम एक बार फिर दासता स्वीकारनी होगी और ये दासता अंग्रेजी राज से भयानक और आंतकी होगी तो आप अपने बच्चो को क्या बनायेगे देश का लाल या फिँरगीयो के दलाल इति श्री

सोमवार, 8 अगस्त 2011

मरता लोकतंत्र

bkआज देश के हालात देख कर लगता है हमे लोकतंत्र का गला घोँट देना चाहीये आखिर हमने लोकतंत्र को शून्य चेतन क्यो कर दिया उसे मर जाना चाहिये ताकी भ्रष्ट कांग्रेस के हाथो दोबारा ना लगे देश मे भ्रष्टाचार की सुनामी आ ग ई ओर सरकार नीँद मे बड़बड़ा रही है कोई इस अंधेर राज का विरोध करता नजर आता है तो उसे चोर बना दिया जाता है आज दिग्गज मंत्री तिहाड़ मे ऐश कर रहे है और सरकार इन्हे बचाने की जुगत मे लगी है अगर हम 60 वर्षो का काग्रेसी राज का इतिहास देखे तो निष्कर्ष निकलता है शास्त्री जी के अलावा कोई भी एसा नही जिस पर दाग ना लगा हो और शायद कीसी और दल ने इतना भ्रष्टाचार किया हो भा ज पा तो भ्रष्टाचार की अभी परिभाषा भी नही जानती हमारा अन्धा लोकतंत्र केवल सुनता है और देश को पहले गर्त मे ढकेलता है फिर आंदोलन रूपी डंडा पकड़ कर निकल पड़ता है क्या हम ऐसे लोकतंत्र पर विश्वास कर लेते हैअगर हमने 10 वर्ष भी (NDA और अन्य मिली जुली सरकारो को छोड़ कर) गैर काग्रेसी दल को दिये होते तो देश के हालात कुछ ओर होते आज हर एक के मन मे प्रशन है आज मंहगाइ आँतकवाद नक्सलवाद भ्रष्टाचार काला धन और ना जाने कितनी सम्सयाओ से हम जूझ रहे है 60 कुर्सी वापरने के बाद भी ये समस्या जस की तस है ये हमारे लोकतंत्र का मजाक है जो हम देश को एक अच्छी सरकार भी नही दे सकता ऐसे लोकतंत्र को दफना दिया जाय और न ई क्राँति का बिगुल फुँका जाये जय हिंद

रविवार, 7 अगस्त 2011

पश्चिमी संस्कृति का आदी युवा

आज जब आज चारो और देश मेँ ज्वलनशील मुद्दे है वही दूसरी ओर हमारे युवा ओ को पश्चिमी संस्कृति की हवा लग गई है मेरा मन उस अधिकार को गाली देने को करता है जो 18 के बाद युवाओ को खुल्ला सांड घोषित कर देता है आज ये युवा अपने को आधुनिक कह कर अपनी संस्कृति का चीर और अपने चरित्र का हरण पश्चिमी संस्कृति को करने दे रहे है क्या नारी क्या नर सभी अपने को हाई क्लास की आड़ मे अपने को कितना नीचे गीरा चुके है पब डेटिग फर्लट सिगरेट शराब और ना जाने क्या क्या आज नारी इतनी फैशनेबल हो ग ई है रेव पार्टी मे धुआ उडाति ये अपनी शान समझती है त्यागमूर्ति नारी पश्चिमि सभ्यता कि रखैल बन कर रह ग ई है और वे युवा जो प्रेमदिवस जैसे दिवसो पर अपना धन विदेशीयो को लुटाते है या मेकडोनल मे पिज्जा खाते है वे किसी बलातकारी से कम नही जो पश्चिमी संस्कृति के सामने हमे नंगा कर रहे है जो नारी पशिचम की राह मे चल कर सिगरेट पिये बियर कि चुस्किया ले वो भूल क्यो गई कि राम कृष्ण भगत आजाद को उसने हि जना है आज प्रेम तक की परिभाषा को इन युवाओ ने बदल डाला है प्रेम अब लिव इन रिले.बन गया है ऐसे युवाओ से देश का क्या भला होगा जो खुद गुलामी मानसिकता लिये जी रहे है विश्वगुरू भारत जिसने शून्य से कामकला तक का ज्ञान विश्व को दिया ओर अब बही पश्चिम हमारे हि ज्ञान को विकृत कर हमारे युवाओ को बाँट रहा है आधुनिकता की अंधी दुनिया मे हमारा युवा अपने संस्कार विचार सब खोता जा रहा है कहने को हमारे देश मेँ 80% लेकिन राष्ट्रवादी युवा गिनति के मिलेगे अगर आज युवा नही जागा तो आने वाली पीढी को एक बार फिर1857 दोहराना होगा इतिश्री

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

देश के ये विज्ञापन

bkमेनेजमेँट गुरूओ का जमाना है विज्ञापन का जमाना है कहते है एक अच्छा विज्ञापन हि किसी वस्तु के गुण धर्म का निरधारण करता है पर आज विज्ञापन लीली भौँडी और विकृत हो चुकी है की जैसे कोई C ग्रेड फिल्म है भारतिय साँस्कृति को रौँदने का काम करते इन विज्ञापनो के बीच कुछ ऐसे चुँनिदा विज्ञापन भी है जिन्होने देश के हित मे अपना योग दान किया टाटा चाय का विज्ञापन आज के भ्रष्टाचार को मिटाने को कहता है क्या तर्क है इस ने जो हमे भ्रष्टाचार से लड़ने को प्रेरित किया लेकिन हमने इसके उद्देशय को ना समझा और इसे साधारण विज्ञापन मान लिया एक विज्ञापन मोबाईल सेवा प्रदाता का है जो बताती है की एकता क्या है ये मात्र अपना सामान बेचना चाहते है जब आज कल चड्डी बनियान और ना जाने कौन कोन से विज्ञापनो मे नारी को नग्न पेश कर अपना मुनाफा बढा रहे है इस माहौल मे यह सिद्ध होता है की आज भी हमारे औद्धोगिक घरानो मे देशप्रेम जिवीत है लेकिन हमारे देश के राजनीति चाटुकारो को ये बात साबित करना होगा की उनमे देश हित का उन्माद कितना है अगर इन विज्ञापनो मे छिपे संदेशो को हमारे नेतगण और हमारे अबोध युवा समझ लेते तो आज भारत भ्रष्टाचार जातीवाद और साँप्रदायिकता के घेरे से बाहर निकल चुका होता आइये हम मनन करे जय भारत .

लोकपाल यानी सरकारी पिँजरा

bkलोकपाल बिल पेश हो चुका है सरकार की मोहर लगना शेष रह गया है अगर लोकपाल का प्रारुप जो सरकार के बुद्धिजिवीयो ने बनाया है वो एक सरकार मुक्त ना होकर सीबीआइ जैसा सरकारी पिँजरा बन कर रह जायेगा लोकपाल का उद्देशय भ्रष्टाचार पर नकेल कसना है लेकिन इसका प्रारूप ऐसा बनाया गया है जैसे सरकारी पिँजरा आज भ्रष्टाचार की जड़े हर विभाग मे मौजूद है और नौकर शाह और अफसरी जमात उसे भरपूर पानी दे रही है अगर लोकपाल का स्वरुप ना बदला गया तो देश मे भ्रष्टाचार एक जन्मसिद्ध अधिकार हो जायेगा भारत मे अगर सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार ओर कुवयव्सथा हमार पुलिस विभाग और राज्सव विभाग जिसमे अगर राजा हरिशचंद्र भी घुस जाये तो बिना घूस दिये काम करा ही नही सकता चपरासी से लेकर अफसर सभी घूसखोरी कालिख मे पुते है तो क्या ऐसा लोकपाल सक्षम है भ्रष्टाचार रोकने को जो खुद भ्रष्टाचारी सरकार की बैसाखी पर चलता हो क्या हमारी संसद मे बैठे लोग ये नही जानते या जो इस सरकारी लोकपाल का समर्थन करते हुये इतरा रहे है वे खुद भ्रष्ट है बड़ी दुखद बात है हम लोकतँत्र की बड़ी बड़ी बाते करते है और जूठा आँदोलन करते है अगर हम सचमुच गंभीर होते तो क्या हम एक अरब लोगो मे इतनी क्षमता नही की लोकपाल जैसी वयवस्था को अपने अनूरूप बना सके आज हम0एक अन्नाजी जैसे देश भक्तो की जरूरत के अलावा और ऐसे कई अन्ना केजरीवाल जैसे आंदोलन कारी चाहिये अगर हमारी आत्मा मे देश प्रेम की भावना जागृत है तो मेरे इस लेख पर अपनी राय दे जय भारत

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

काँग्रेस राज मरता लोकतँत्र

आजादी के 60 दशक बीत गये और हम आजाद नही हुये क्योकी कांग्रेस ने हमे गुलाम बना लिया उसका मोहजाल इतना विकट था की उसने दूसरे राजनीती विकल्प को जन्म लेने ही नही दिया हमारी मूर्खता है की हम ना कभी काँग्रेस को समझ पाये और ना ही कोई ठोस गैर काँग्रसी दल को निर्भीकता के साथ सत्तारूड़ कर सके मुझे तो ऐसे लोकतँत्र को जूता मारने को मन करता है मोरारजी की सरकार कितने दिन टिकि चंद्रशेखर दोबारा क्यो नही आये संयुक्त मोर्चे को तीन बार प्रधानमंत्री क्यो बदलना पड़ा अटल बिहारी वाजपेई को सरकार चलाने के लिये एड़ी चोटी का जोर क्यो लगाना पड़ा ये कुछ ऐसे कटुक सवाल है जिनका जबाब हमलोगो ने कभी नही ढूढा अब आपको कांग्रेस की काली करतूत बताता हुँ इंदरा गाँधी का आपातकाल जिसने हमारे लोकतँत्र को नीचा किया सुखराम पी वी नरसिम्हा राजीब गाँधी एंव उनके कुछ चमचे जो भष्टाचार की गंदगी मे सने हुये है लालू मुलायम जय ललिता ओर भी है ये सब जानकर भी हम काँग्रेस को पवित्र कहते है यदि ऐसा है तो लोकतत्रँ को गंदे गटर मे धकेल देना चाहिये ऐसे लोकतंत्र को मर जाना चाहिये bk
देश  हित के लिए दान 
        दीजिये 
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया 
1047194936

बुधवार, 3 अगस्त 2011

हिना कौन है

हिना भारत आई और हम उनकी अदा पर मर मिटे वो एक विदेशमंत्री कम फैशनेबल ज्यादा नजर आई उनके वयक्तितव मै राजनितिक कूटनीती न के बराबर थी वो भारत शायद मनोरंजन के लिये आई थी क्यो की वह कोइ ऐसा समझोता या बात न रख सकी जिसके लिये उन्हे याद रखा जाये और तो और वे पाकिस्तान को गुनाहगार मानने से भी परहेज करती है जिसे अमरिका तक दोषी मानता है वो भारत इसलिये नही आई की वे भारत के हितो की बात करेगी वरन वे अपनी राजनीतीक जीवन को परिपक्व बनाने आई थी ओर हमने अपना समय और धन लुटा दिया यहाँ तक की हमने उनमे श्रीमती भुट्टो की छवि तलाशनी शुरू कर दी लेकिन भुट्टो एक राष्ट्रवादी नेता थी ओर कुशल नेत्री थी इसके विपरीत हिना मे राजनीति समझ का आभाव दिखता है हिना कौन है 

सोमवार, 25 जुलाई 2011

दूरदर्शन के वो काले सफेद दिन

अब बात करता हुँ उस जमाने कि जब हम छोटे थे उन दिनो की याद अब भी यू सँजो रखी है जैसे कोई अपना आतीत याद रखता है वो दिन याद है जब दूरदर्शन था था इसलिये कह रहा क्योकी आज केबल युग मेँ उसे पूछने वाला कौन है युवाओ ने तो उसे श्रद्धाजंली दे दी है उन्हे तो याद ही नही वे तो बिँदास टीवी एम टीवी के दिवाने है जिनके कार्यक्रमो मे एक बीप होती है जिसमे गाली छुपाई जाती है बेचारा दूरदर्शन इन धूर्तो के हथंकडे नही अपना सका तो मनोरंजन प्रेमीयो ने दुतकार दिया मुझे केबल पर गर्व है जिसने हमारे समाज और खबर जगत एंव जन जीवन मे एसा क्रूर बदलाव किया की हमलोग एक अकेले जीवन जीने वाले हो गये अब जीवन का रस उल्टा पुल्टा हो गया सास बहु सर्कस का खेल दिखाने लगी और घर की बुनियाद एसी कमजोर हुई की अब हम नुक्कङ पर आ गये अब हर परिवार मे महाभारत होती है अब हमे फुरसत नही की कुछ देर की अपने बाप के पैर छुये क्योकी ना हमने रामायण का वो युग नही देखा जिसमे जीवन थामने वाला घंटे भर का संन्नाटा था लेकिन फिर भी जीवन कितना रंगोली सा सुंन्दर था हमारी सास बहु बेटा बेटी एक साथ चित्रहार देखते जीवन मे रंग भर रहे थे उफ रोना आ गया उसे याद करते हुँये मै उस दूरदर्शन को तलाश रहा हुँ जिसे हमने बिग बोस और संयमवर जैसे अशलील अंधेरो मे खो दिया ओर सास बहु की सीरियलो कुटिल चाल मे आकर अपना पर परिवार को एकल कर लिया अब भी ये उम्मीद लगाये बैठा हु भले हम दूरदर्शन को भूल जाय पंरतु उसने जो हमे दिखाया उसे हम अपने जीवन मेँ ले आये धन्यवाद अगर ये लेख पंसद आये तो टिप्पणि अवश्य करे .