शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011
आधुनिक भारत नही स्वाबलंबन भारत बनाओ
आधुनिक जीवन शैली मे हम विलासिता के आदी हो गये या यूँ कहे गुलाम हो गये स्वांलबन से आलसी हो गये अब हम कर्म प्रधान न हो कर केवल कर्महीन पशु हो गये घर से लेकर दफ्तर तक एक गिलास पानी के लिये मोहताज हो गये घर मे बूढी माँ से पानी मांगते है और दफ्तर मे चपरासी से अपने कपड़े खुद नही धोते अपने सारे छोटे बड़े काम अर्दलीयो से करबाते है ये क्या हो गया मनुपुत्रो को जो मानवीय गुणो को पश्चित की दमक मे जला बैठा क्या ये वही नर प्रजाति है जो आदिकाल मेँ देवताओ सा श्रेष्ठ था जिसके लिये स्वंम गंगा अवतरित हुई क्या ये वही मानव है जिसको नारायण के श्रीमुख से गीतामृत मिला क्या ये वही मानव है जिसे करूणा और दया के वरदान मिले भारत की पावन भूमि का मानव अब पैशाचिकता पर उतर आया देर तक सोना गरिष्ठ भोजन आत्याधिक भोग विलास माता पिता की अवज्ञा परस्त्री गमन आदि कुकर्म करने वाला मानव अपने को जब भारतीय कहता है तो लगता है वह माँ का चरित्र हनन कर रहा हो आज की यही स्थिती है जो आधुनिकता की च्युंगम चबाये जा रहे है क्या भारत को इन पर भरोसा करना चाहिये आधुनिक कठपुतलो से सनातन संस्कृति की उत्थान की आपेक्षा करना मतलब विष को दूध समझ कर पीना क्योकी आधुनिकता के पुजारीयो मेँ केवल भांड संस्कृति ही जन्म ले सकती है और उनकी नारिया वेश्या और नचनिया जिनके होनहार कपूत सैकड़ो कुरीतियो को अंगीकार करते हुये नर्क के द्वार खटखटा रहे है उन्हे नर्क का रास्ता बताने वाले स्वंम उनके पालक है जो कभी सनातन आर्य थे अपने बच्चो को आप किस दिशा मे ढकेल रहे है आधुनिकता के जंजाल से निकल कर भारतिय संस्कृति को अपनाइये भारत को इंडिया नही अंखड भारत बनाईये अपने आप को स्वाबलबन किजिये क्योकी हम दुसरो के बोझ उठाते है खुद बोझ नही बनते .....जय राष्ट्रवाद
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