शांतिकुँज हरिद्वार के गायत्री परिवार के आयोजन मे मृत आत्माओ को श्रद्धाजंली
आस्था एक ऐसी भावना है जो हर दिमागदार प्राणी मे होती है ओर आस्था निष्ठावान और अंधी भी हो जाती है और अगर आस्था निष्ठावान है तो ईशवर को ज्यादा देर नही लगेगी इशवर खुद आपकी आस्था के प्रति नतमस्तक हो जायेगे किँतु अगर आप अंधी आस्था का बोझ लेकर भक्ति मार्ग पर जायेगे तो यम भी तैयार है इसका उदाहरण हम धार्मिक स्थलो मे हुई भगदड़ मे काल के ग्रास बने लोगो को देख कर तो यही स्द्धि होता है अब आप बताये क्या ईशवर को विषेश पर्व या तिथी ता दिन मे ही याद किया जाये जो आस्था आपको 365 दिन इशवर मे होनी चाहिये वो आप एक ही दिन उड़ेल देते है जबकी ये आस्था नही होड़ बाजी है पहले नमबर पर आने की कौन पहले दर्शन करेगा कौन पहले प्रसाद लेगा यही भावनाऐ भगदड़ अफवाहे और अवयवस्था को जन्म देती है आयोजक भी जानते है ऐसी स्थिती बनेगी फिर भी कोई ठोस कदम नही उठाते और अंधी आस्था के आगे प्रशासन भी असहाय पड़ जाता है चाहे शबरीमाला मंदिर मे मौतो का खेल हुआ हो या कृपालू महाराज के आयोजन मे अंधी आस्था ओर अफवाहो ने सैकड़ो लोगो को लील लिया कपड़े बर्तन भोजन बाँटने जैसे सामाजिक कार्य भी इस भगदड़ को निमंत्रण देते है लेकिन इस भगदड़ की नैतिक जिम्मेदारी ना तो आयोजक लेते है और ना ही प्रशासन और जाँच ऐँजेसी बिठा दि जाती है लेकिन इसके वावजूद ऐसी दुखद घटनाये हो ही जाति है और आरोप किस पर लगाये प्रशन अधूरा रह जाये हिँदु संगठनो को इसके लिये आगे आना चाहिये और वयवस्था संवसेवको के हाथो मे देना चाहिये संघ और बँजरग दल जैसे संगठनो को ऐसे आयोजनो मेँ भागीदारी करना चाहिये ताकी आगे से ये घटनाये ना हो और भक्तो को भी होड़बाज छोड़ कर नियमनुसार आयोजन मे रहना चाहिये आईये एक अंखड भारत का निमार्ण करे और अपने मन मे सोये हिँदुतत्व और सनातन आत्मा को जगाये .