हम भारतीयों को शर्म आनी चाहिए हम बाबा राम देव और अन्ना के आन्दोलन के साथ जुड़े लेकिन न हम सरकार को झुका सके न अपने आन्दोलन को सफल बना सके क्या जनशक्ति इतनी निर्बल हो गई है की हम अपने हक के लिए सरकार से भीख मांगनी पढ़ रही है हम एकजुट होने का क्यों ढोंग करते है जबकि हम जल्दी बिखर भी जाते है हाल ही में हमे ये परिणाम भी देखने को मिला वह यहाँ संकेत दे रहे है अब हमें फ्हिर से सवतंत्रता का बिगुल फुकना च्चाहिए रामलीला मैदान पर जो बर्बरता पूर्ण घटना घटी उसकी अगर विवेचना की जाये तो उसके लिए हम ही दोषी है हम दो धुरियो में बट चुके थे कुछ अन्ना के साथ थे तो कुछ बाबा रामदेव के साथ जबकि दोनों का लक्ष्य और आन्दोलन का तरीका भी एक ही था अगर अन्ना और बाबा एक मंच पर होते तो यह घटना नहीं घटती इस बिखराव का सरकार ने खूब फायदा उठाया और उसने आन्दोलन को दबा दिया सरकार की कूटनीति की में प्रशसा करता हु जो उसने बाबा पर ही बेमानी का आरोप लगा दिया कांग्रेस का दमन देशद्रोही यों ने थाम रखा है ये बात हम को जान लेना चाहिए किन्तु हम कोंग्रेस को एक इमानदार दल मानते आ रहे है उसके समोहन में इस कदर जकड़े है की आज फिर एक जे पि जैसे नायक की क्रांति चाहिये अब भारतीय राजनीती का नव उदय होना चाहिये और कांग्रेस को उखड फेकना और बाबा और अन्ना जैसे विचारो वाले नेताओ को सत्ता पर बैठना चाहिये तभी भारत का नवुदय हो पायेगा