जी रहे है उस आस मे जब अंधेरा साथ छोड़ देगा जब चलेगे उजाले की और जमाना साथ छोड़ देगा मंजिलो की तलाश मे दूर बहुत निकल आया हुँ मै करता नही कभी कशति पर भरोसा क्योकी किनारा साथ छोड़ देगा अब शिकायत क्या करे हम वो खुद गुनाहागार थे दिखा कर रोशनी मोहबब्त की फिर अंधेरो मे छोड़ देगा गम की दहलीज पर रख कदम वक्त से लड़ने लगे आज भले वो साथ मेरे कल भँवर मे छोड़ देगा लड़ रहे थे दो मुसाफिर बस एक इमान पर जो कराता था सुलह इनमे खुद घरौँदे तोड़ देगा