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रविवार, 30 दिसंबर 2012

प्रदूषित शिक्षा से ग्रस्त युवा समाज


क्या कभी किसी ने ईश्वचंद्र
विद्यासागर राजाराम मोहनराय
सावित्री बाई फुले अहिल्या बाई
होलकर के पदचिन्हो का अनुसरण
किया है
मै दावे से कह सकता हुँ न इनहोने
मोमबत्ती जलाई होगी न प्रंशसा के
पदक की कामना की होगी और
ना ही लंबी चोड़ी आहे भरी होगी
लेकिन ये समाज मैँ फैली कुरितीयो और
नारी के अधीकार और सम्मान के लिये
चेतना का दिया अवश्य जला गये
और शायद हमे इनका जन्म मरण दिन
भी याद न हो क्योकी हम
मोमबत्तियाँ जलाते है जो रो रो कर
जलती है
भारतीय शिक्षा मेँ जब से मैकालेवाद और कांनवेट शिक्षा का मिश्रण हुआ है तभी से नैतिक और चारित्रीक पतन की शुरुआत हुई है मैकालेवादी शिक्षा ने भारतीयो के उस साहस को रौँद दिया जो कभी शिवाजी गुरुगोबिँद जी राणा प्रताप के रुप मे विद्ममान था और रही सही कसर कांग्रेस ने गांधीवाद थोप कर पूरी कर दी वही दूसरी और कांन्वेट शिक्षा ने बाल सुलम मन मे हिँदुतत्व संस्कृति भाषा का भय ये कह कर बैठा दिया की ये दोयम दर्जे की बातेँ है अंग्रेजी पढो हेलो हाय बोलो छुरी कांटे से खाओ पाश्चायत का अनुसरण करो सेकुलर बनो माता पिता को जीते जी मरा कहो मतलब आप स्वाभिमान को सूली पर टांग दो चरित्र को टांग दो फिर आप सभ्य लोगो की श्रेणि मे आयेँगे
क्या आप ऐसी शिक्षा पद्धति से कोई समाज सुधारक कोई शुद्ध राजनैतिज्ञ या भगतसिँह आजाद सुभाष जैसे देशभक्त गढ पायेँगे ऐसी शिक्षा तो नाजुक कूल डूड ही पैदा होँगे जो केवल तख्ती लटका कर न्याय की भीख मांग कर अपने यौवन को शर्मिदा करेँगे आज हम आधुनिक पथ पर पश्चिम की और बेहताशा दोड़े जा रहे है लेकिन आप याद रंखे जो आधुनिक रेतिला पथ आपने चुना है उस पर आपके पैरो के निशान भी नही मिलेँगे जब आप वापस लौटना चाहेगे
इसलिये ठहर जाइये मनन किजीये की आप पीछे क्या छोड़ आये है
जय राष्ट्रवाद
जय हिँदू
जय अखंड भारत