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रविवार, 18 सितंबर 2011

भिखारी

भूत तो हम भूल चुके है भविष्य की हम सोचे क्यो जीना है अभी पूरी जिँदगी फिर दुखो से निराश क्यो चाहे हालात हमे बेबस कर दे या मातम को घर मे धर दे लाचारी से भले पड़े पाला चाहे किस्मत पर लगा हो ताला हम तो रहते फिर भी मस्त मौला ना हमारा ठौर ठिकाना सारे जग को अपना घर जाना निर्भीक निडर रहते हरदम कभी दावत कभी फाँके पड़ना नही शिकायत उस दाता से डर लगता है धन दौलत कि बातो से क्षण भंगुर सा जीवन अपना काम हमारा मानवता की माला जपना हाथ कटोरा लेकर घूमे फक्कड़ता के मद मे झूमे जग कहे पागल और भिखारी दूर रखे सब रिश्तेदारी कहने को हम है एक भिक्षुक खुले रखे हे अपने चक्षु खाली आये खाली जायेगे केवल दाता के गुण गायेगे हमे देख कर तुम जीना सीखो अपने सदगुण जीवन मे लिखो