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मंगलवार, 8 मई 2012

आखिर कब तक भारत विकासशील कि कतार मे खड़ा रहेगा

भारत की सपंन्नता की चकाचौध से सारा विश्र्व ईष्या करता है अगर इतिहास के पन्ने पलट कर मनन करे तो हम ये सोचने को मजबूर हो जायेगे की भारत के तथाकथित डालर प्रेमी अंग्रेजो के चाटुकार भ्रष्ट राजनीति पनारे के कृमि भारत को विकासशील देशो की पंक्ति मे क्यो खड़ा कर अपनी संपन्नता को धुंधला कर रहे है आखिर भारत विकासशील
देशो की कतार मे कब तक
खड़ा रहेगा क्या नही है मेरे देश मेँ
श्रम शक्ति अपार खनिज
संपदा की भरमार प्राकृतित
संपदा अपार गंगा यमुना की शीतल
जल धाराये संदृण हमारी सेनाये
सोना उगलती वंसुधरा वेदो का उच्चतम
ज्ञान पृथ्वी अग्नि जैसे आयुध चरक ओर सुश्रत का चिकित्सा विज्ञान आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ और सबसे
खास बात हम भारतीयो मे अपने देश के
स्वाभिमान को बचाने के लिये मर
मिटने
का संकल्प...क्या इतना काफी नही एक
विकसित राष्ट्र के लिये भारत की वो संपन्नता कहाँ गई जिसके सम्मोहन मे संमदर पार से सिँकदर, मुगल साम्राज्य और 300 साल से भी अधिक भारतीय संपदा का दोहन करने वाले डच पुर्तगाल फ्रांसिसी और ब्रिटिश भारत का तन मन धन लूटते रहे लेकिन भारत की संपन्नता मे फिर भी कमी न आई लेकिन अंग्रेजो की शिक्षा व्यवहार और संस्कृति भारतीयो को लाचर जरूर बना गई और ये लाचारी ही भारत की दुर्दशा का मुख्य कारण है भले 15 अगस्त 1947 को देश की सत्ता का हंस्तातरण कर के चले गये किँतु भारत को मानसिक गुलाम बना कर छोड़ गये और भारत सिर्फ एक कोरा कागज बन गया जिस पर जैसा चाहो लिख डालो भारत की संपन्नता अभी भी उतनी ही है जो पहले थी बस उसको सहेजने और सदुपयोग की आवशकता है भारत को विकसित भले न हम बना पाये किँतु भ्रष्टाचार कुपोषण जातिवाद प्राँतवाद सामाजिक बुराईया अशिक्षा सेकुलरवाद नक्सलवाद आंतकवाद जैसी राक्षसी प्रवृत्ति को मिटाने का कारगार उपाय करेगे तो भारत का विकास पथ खुद ही बन जायेगा...सड़को पर चिल्लाने या संसद मे हंगामा करने से विकसित नही हो सकते अगर देश और समाज यृँ ही निद्राग्रस्त रहा तो मुमकिन हो कोई सिँकदर या मुगल या अंग्रेज भारत पर आंखे गड़ाये बैठा है....वंदे मातरम