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बुधवार, 31 अगस्त 2011

मैँ जब भी अखबार पढता हूँ एक बात मुझे कचोटती है जब सेक्स विज्ञापन देखता हुँ की आज हम किस दिशा मे जा रहै है पूरे अखबार मे मसाज पार्लर एसर्काट सर्विस फोन सेक्स और न जाने क्या क्या बेहूदे विज्ञापन बड़ा अफसोस है तकनीकि का हम दुरपयोग कर रहे है हद तो तब है हमारा समाज चुप बेठा है और सरकार इस पर कोई प्रतिक्रिया नही करती और ना हि इनके चंगुल मे फसाँ कोई शर्म के
कहते है गौ माता मे 36 करोड़ देवता विराजते है यह सही है क्यो की गौ माता आस्था ही नहि समध्धी का भी प्रतिक है पर आज ये हमारी माता का अस्तितव अपने बूढे माँ बाप जैसा हो गया है घर मे रखना तो चहाते है पर सेवा नही गाँवो मे तो गौ माता का सम्मान बरकरार है लेकिन शहरी क्षेत्रो मे दयनीय स्थिती है यहाँ गौ माता व्यपार की मशीन हो ग ई है खूब दूध बेचो माल कमाओ इतना ठीक है लेकिन मरियल को कत्लखाने बेचो ये कौन सा सदाचार है गौ हत्या मे सने इन हाथो को कानून क्यो नही काटता लेकिन हम गाय पर क्या राजनीति करे ये अधिकार तो धर्म के ठेकेदारो का है आप रोज रोटी बनाते है लेकिन पहला ग्रास गाय को देना चाहिये इसके विपरित आप पहला निवाला अपने प्रिय विदेशी कुत्ते को बड़े प्यार से खिलाते है जब आप ऐसा करेगे तो आपके विचार भी कुत्ते जैसे ही होगे आप अपने को आधुनिक कहते हो लेकिन इस आधुनिकरण का क्या लाभ जब हम अपनी आस्था ही ना बचा पाये देश मे क ई गौमाता के भक्त छाति पीट रहे है क ई तो ईमानदार है और कुछ लालची कागजो मे गौशाला बनवा कर चारा खा रहे है और अपने को हिँदु कह कर हिँदु मर्याता को कंलकित कर रहे है अब तो हर भारतिय को ये सोचना होगा क्या हम सही कर रहे है