गुरुवार, 1 सितंबर 2011
आज मैँ आपको लिये चलता हु आधुनिक साहित्य के उस युग मेँ जहाँ बेतरबीर का आलम है और कितने लेखको ने बुकर जैसे क ई नामी पुरूस्कार लेकर अंग्रेजो के लिचरेचरी दरवाजे पर भीखारी बन कर नाम कमा रहे है हमे शर्म भी नहि आती हमारे साहित्यिक पूर्वज प्रेँमचंद भारतेंदु और जयशंकर जी जैसे स्वाभिमानी लेखक थे जो समाज के लिये हि लिखते थे कोई बुकर के लिये नही ये कैसा न्याय है मातृभाषा के प्रति जहाँ हिँदी साहित्य का विकास नही हो पा रहा और आप अंग्रेजी मे कलम घिस कर धन और प्रसिद्धी के पीछे भाग रहे हो अरूधती राय विक्रम सेठ चेतन भगत ये अब हमारे नये साहित्यिक अवतार है इन लोगो का जीवन विलासता पूर्ण है ये क्या भारतीय समाज मे अच्छा साहित्य दे पायेगे अंग्रेजी अच्छी भाषा है लेकिन जन भाषा के प्रति उदासीनता ठीक नही क्यो की आप लोग युवा है आपके विचार युवाओ को अच्छे लगते है इसलिये आपको इन्हे अच्छा साहित्य देना होगा और आज भारत का अच्छा साहित्य हिँदी मे ही लिखा जा सकता है आज क ई युवा तो हिँदी साहित्यकार को भूल ही चुके है और तो और उनकि कालजयी रचनाऐ उन्हे बासी लगती है लेकिन उनको आपके नाम और रचनाऍ सहित पूरा वयक्तिव पता है आप जैसे भारतिय अंग्रेजी साहित्य कार साहित्य गोष्ठीयो मे कम फैशन शो ऑर फिल्मी दुनिया मे ज्यादा नजर आते है ऐसे आधुनिक अंग्रेजी बंदर क्या हिँदी की सेवा कर पायेगे आप लिखो खूब लिखो लेकिन हिँदी को अंग्रेजी के सम्मुख छोटा मत करो अगर आप हिँदी साहित्य को विश्व मे वो सम्मान दिला सको जो आज अंग्रेजी का है तो आपका लिखना धन्य है आगे आपकी मर्जी जय हिँद
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