सोमवार, 3 अक्टूबर 2011
मैँ निकला हूँ
आज जिँदगी को जानने निकला हुँ आज मैँ को पहचानने निकला है अनुभवो का आइना साथ लिया है लोगो को आज यथार्थ दिखाने निकला हुँ पाप मेरे पुण्य मेरे बोझ बन गये कर्म और धर्म साथ मेरे हो गये तकदीर को फैसला सुनाने निकला हुँ रास्ते के कंट कंकड़ मोह माया बन गये ज्ञान का ले बुहारा फेरने निकला हू अब डरू क्यो मैँ मैँ से हम को मैने पहचान लिया अंह की लाश लेकर दफनाने निकला हू हँस रहे है लोग वो जो रोते नही कभी कछुये से जी रहे है आदमी वो आदमी को इंसान बनाने निकला हु गर आदमी इंसान बन जाये फिर खुदा का क्यो ले नाम भीड़ मे गुम उस भगवान को ढूँढने निकला हूँ
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