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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

समय मानव और कर्म

कल
का भरोसा जो करे समझो वो काल से
डरे वर्तमान की लाठी पकड़ जो चले
काल उससे डरे मत उलझ तू जीवन के जंजाल मे एक धोखा है ये जीवन मृत्यु अटल है जोड़ा बहुत तोड़ा बहुत अब तो संभल जा तेरे लिये इक कफन ही बहूत है पुण्य के सलिल मे पाप का आज तर्पण कर दो दिनो के यौवन के बाद बाट जोहता तेरा जर संभल कर चल कौन जाने कैसा होगा तेरा कल साथ तेरे जो खड़े वे तो पुतले छाया के लोभी लालची वर है तेरी माया के दीन दुखियो मे ढूंढ जरा नारायण को जो लिया था चुका दे उस सृष्टि कर्ता के ऋण को भाग मत उस तिमिर से जो विषमता से बना आग कि लपटो मे सिक स्वर्ण कुंदन बना लड़ ले आज समय से जीत जा ये रण जाग जा वरना मृत्यु कर लेगी वरण