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शनिवार, 9 अप्रैल 2011

एक गाँधी हार गया

आज हम एक आन्दोलन में फिर जीत गए,  लेकिन एक  क्रांति की  चिंगारी  जो अन्ना
ने भारतीयों के दिलो में  जगाई अब ठंडी हो गई, शायद हम सब कुछ दिन बाद भूल जायेगे अन्ना कौन  थे?  क्रांति तो सब कहते है लेकिन उसका मूल्य कौन चुकाए इस पर हम भारतीयों की बोलती बंद हो जाती है  अन्ना को क्या पड़ी थी की वो अनशन करे अन्ना का अनशन क्या हुआ हम भी भेड-चाल  की तरह पीछे हो लिए  क्या हम अपनी सोच नहीं बदल सकते क्यूँ  एक नए गाँधी और भगतसिंह को खोजते है क्या हम सन सतावन को भूल  गए है जो एक इतिहस बन कर रह गया |