गुरुवार, 24 नवंबर 2011
एक थप्पड़ की चोट संसद हिला सकती हे
अहिँसा के देश मे हिँसा उचित नही और हिँसा को मानवता राक्षसी प्रवृत्ती मानती और इस बात पर हर धर्म प्रमाणिकरण का ठप्पा लगता है और मैँ भी हिँसा का समर्थन नही करता पर मै आत्म रक्षा मे उठे हाथ को रोकने का विरोध भी नही कर सकता और ना ही उस थप्पड़ का विरोध करता हु जो देश को समस्याओ मे उलझाये हुये है क्यो की आत्म रक्षा और देशरक्षा एक दृसरे के समांनातर है इस लिये थप्पड़ की गूँज जरूरी है चाहे थप्पड़ हाथ से पड़े या वाणी से ओर चाहे कलम कटारी से द्रेशद्रोहीयो को शाररीक तो नही आत्मिक घाव तो कर ही सकते है और आज एक थप्पड़ की गूँज संसद हिला सकती है जो इस थप्पड़ का विरोध कर रहे है वो नँपुसक दैव दैव आलसी पुकारा प्रवृत्ति रखते है अपने को सदाचारी कंबल मे ढँके हुये है क्योकी गांधीवाद का ज्वर से पीड़ित है और क्रांती के कुनैन से परहेज करते है ये गांधीवाद की बिमारी के विषाणु से बीमार राजनैतिक समाज को एक भरपूर चांटे का डोज चाहीये लेकिन राजनैतिक टट्टृ पर सवार सर्मथको का विरोध प्रदर्शन के मायने है की ये भी चाँटे खाने लायक है अब देश मेँ जूता थप्पड़ ही राजनैतिक पंगुता को सुधार सकता है और सिर्फ नेता को ही थप्पड़ मारने से काम नही चलेगा थप्पड़ के अधिकार मीडिया प्रशासन और वे बुद्धिजीबी जो समाजवादी रंगे सियार है थप्पड़ की गूँज हर उसको सुनाओ जो देश के अहितैषी है क्योकी लोकतंत्र के पास वोट का अधिकार भी है और चोट का भी पर अब आपको तर करना देश की दशा देख कर क्या आप तैयार है समस्याओ के जन्म दाताओ को थप्पड़ मारने के लिये या चुपचाप थप्पड़ खाने के लिये फैसला आपका क्योकी गाल आपका है .....जय राष्ट्रवाद
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