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शनिवार, 27 अगस्त 2011

आजकल युवा वर्ग को लोकतँत्र कि बहुत चिँता है और अन्नाटीम के आँदोलन मे युवा बहूसख्या मे जनता कि भागीदारी देख कर लगता है ये लोकतंत्र के मसीहा है अब प्रशन ये है क्या जनता सच मे लोकतंत्र का मतलब समझती है या सिर्फ एक भेड़चाल है अगर संविधान की माने तो वह लोकतंत्र रूपी ढांचे को जन कानून सरकार और मीडिया रूपी खंबो पर टिका मानता है और यही कारण है विश्व मे हमारी लोकतंत्र प्रणाली का कोई सानी नही लेकिन आज लोकतंत्र के ये चारो खंबे जीर्णता की कगार पर खड़े दिखते है क्योकी जनता कानून सरकार और मीडिया अपने को होड़वादी मानने लगे है आज देश की जो परिस्थितीया है उस पर इन चारो को गंभीर होना चाहिये भारतिय जन मानस को सिर्फ दो काम ही आते है समर्थन करना या विरोध करना और इसके बाद वह यह समझता है अपना काम हो गया अब कानून को करना चाहिये कानून नौकरशाही और रिशवत खोरी के दलदल मे इस कदर फँसा है की स्वंम को एक मजबूत नया कानूनी रस्सी चाहिये तीसरा खंबा है सरकार इसका स्तर तो काफी गिर चुका है नित नये घोटाले और जन हित नीतियाँ उस पर से विश्वास उठा रही है और विपक्ष सहित ज7अ का आक्रोश झेल रही है इसे सबसे ज्यादा कमजोर कह सकते है अब मीडिया का पक्ष देखे तो वह उतनी दोषी नही जितना कानून और सरकार लेकिन मीडिया आज समाज का सेतु कम अपनी साख बनाने मे ज्यादा जागरूक है आज वो पत्रकारिता नही ब्रेकिग न्युज मे विश्वास करती है समस्या सुलझाने कि बजाये उसे तब तक थामे रखती है जब तक उसे भरपूर टी आर पी ना मिले क्या पत्रकारिता का यही कर्तव्य है अगर देश मे ये चारो खंबो को मजबूत नही किया गया तो हमारी अगली पीढी लोकतंत्र मे कैसे विश्वास कर पायेगी अगर जनता जाग जाये तो ये तीनो कभी सो नही सकते जय भारत