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सोमवार, 26 सितंबर 2011

उजाले की ओर

उजाले की ओर
चला हूँ आतीत के अंधेरे भी साथ है रात
तो काली है पर तारे मेरे साथ है कोई
भले कहे कुछ रोशनी ले लो पर मुझे
मालूम है कल पूनम की रात है
डरता नही हुँ विपत्तियो के प्रेतो से
मेरा संकल्प अब भी मेरे साथ ह छोड़ने को आतुर है मेरा अनुभव साथी किस्मत की अब ये औकात मेरे मानस को आँख दिखाती पूजता था अब तलक जिन पत्थरो को वो पत्थर ही बने रहे लेकिन सौतन श्रद्धा अब भी मन से नही जाती कुछ हँस रहे है देख कर जो वासना के पति है माया जिनके खोखले दिलो मे बरसो से डटी है मैरे साथ हो लो जीवन का रस मिलेगा पर याद रख आखिर दोजख मे ही जलना पड़ेगा ये देख कर ही आँख मेरी बंद है और चला जा रहा हुँ नये उदय की और कहीँ मिली मानवता तो कहुगा ढूँढ ले नया ठौर