शुक्रवार, 5 अगस्त 2011
देश के ये विज्ञापन
bkमेनेजमेँट गुरूओ का जमाना है विज्ञापन का जमाना है कहते है एक अच्छा विज्ञापन हि किसी वस्तु के गुण धर्म का निरधारण करता है पर आज विज्ञापन लीली भौँडी और विकृत हो चुकी है की जैसे कोई C ग्रेड फिल्म है भारतिय साँस्कृति को रौँदने का काम करते इन विज्ञापनो के बीच कुछ ऐसे चुँनिदा विज्ञापन भी है जिन्होने देश के हित मे अपना योग दान किया टाटा चाय का विज्ञापन आज के भ्रष्टाचार को मिटाने को कहता है क्या तर्क है इस ने जो हमे भ्रष्टाचार से लड़ने को प्रेरित किया लेकिन हमने इसके उद्देशय को ना समझा और इसे साधारण विज्ञापन मान लिया एक विज्ञापन मोबाईल सेवा प्रदाता का है जो बताती है की एकता क्या है ये मात्र अपना सामान बेचना चाहते है जब आज कल चड्डी बनियान और ना जाने कौन कोन से विज्ञापनो मे नारी को नग्न पेश कर अपना मुनाफा बढा रहे है इस माहौल मे यह सिद्ध होता है की आज भी हमारे औद्धोगिक घरानो मे देशप्रेम जिवीत है लेकिन हमारे देश के राजनीति चाटुकारो को ये बात साबित करना होगा की उनमे देश हित का उन्माद कितना है अगर इन विज्ञापनो मे छिपे संदेशो को हमारे नेतगण और हमारे अबोध युवा समझ लेते तो आज भारत भ्रष्टाचार जातीवाद और साँप्रदायिकता के घेरे से बाहर निकल चुका होता आइये हम मनन करे जय भारत .
लोकपाल यानी सरकारी पिँजरा
bkलोकपाल बिल पेश हो चुका है सरकार की मोहर लगना शेष रह गया है अगर लोकपाल का प्रारुप जो सरकार के बुद्धिजिवीयो ने बनाया है वो एक सरकार मुक्त ना होकर सीबीआइ जैसा सरकारी पिँजरा बन कर रह जायेगा लोकपाल का उद्देशय भ्रष्टाचार पर नकेल कसना है लेकिन इसका प्रारूप ऐसा बनाया गया है जैसे सरकारी पिँजरा आज भ्रष्टाचार की जड़े हर विभाग मे मौजूद है और नौकर शाह और अफसरी जमात उसे भरपूर पानी दे रही है अगर लोकपाल का स्वरुप ना बदला गया तो देश मे भ्रष्टाचार एक जन्मसिद्ध अधिकार हो जायेगा भारत मे अगर सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार ओर कुवयव्सथा हमार पुलिस विभाग और राज्सव विभाग जिसमे अगर राजा हरिशचंद्र भी घुस जाये तो बिना घूस दिये काम करा ही नही सकता चपरासी से लेकर अफसर सभी घूसखोरी कालिख मे पुते है तो क्या ऐसा लोकपाल सक्षम है भ्रष्टाचार रोकने को जो खुद भ्रष्टाचारी सरकार की बैसाखी पर चलता हो क्या हमारी संसद मे बैठे लोग ये नही जानते या जो इस सरकारी लोकपाल का समर्थन करते हुये इतरा रहे है वे खुद भ्रष्ट है बड़ी दुखद बात है हम लोकतँत्र की बड़ी बड़ी बाते करते है और जूठा आँदोलन करते है अगर हम सचमुच गंभीर होते तो क्या हम एक अरब लोगो मे इतनी क्षमता नही की लोकपाल जैसी वयवस्था को अपने अनूरूप बना सके आज हम0एक अन्नाजी जैसे देश भक्तो की जरूरत के अलावा और ऐसे कई अन्ना केजरीवाल जैसे आंदोलन कारी चाहिये अगर हमारी आत्मा मे देश प्रेम की भावना जागृत है तो मेरे इस लेख पर अपनी राय दे जय भारत
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