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गुरुवार, 3 नवंबर 2011

तमाशा आदमी

जिँदगी एक तमाशा फिर भी जो देखे ताली ना बजाये कभी हंस कर कभी रो कर मन को बहलाये किस्मत के आगे रोये वो सदा कोशिश की चाबी कही रख कर भूल जाये जलता रहे वो बिना आग के जो खुशिया पड़ोसी पल भर देख आये कभी छीन लेता गुलाबो की महक को फिर भी वो दामन मे काँटे ही भर लाये दिये सा जला वो दुसरो के लिये पर दोस्ती की थी आंधी से पल भर मे बुझा जाये खरीदता था बाजार मे गम बहुत लेकिन मोल खुशी का वो ना चुका पाये ताँकता रहा दरिया को प्यास से बैचेन हवस का मारा प्यास भी ना बुझा पाये