गुरुवार, 19 जनवरी 2012
विश्वगुरु हमारा भारत
आज के आधुनिक युग के उदय के प्रकाश कि तीखी किरणो से अपने को जलाते हम उस परिष्कृत ज्ञान के पीछे भाग रहे है जो हमे पश्चिमी देशो से मिल रहा है आखिर भारतीय निर्लजता का पीछा कब छोड़ेगे और कब तक अपने वैदिक ज्ञान और सनातन संस्कृति पर कुठाराघात करते हुये आक्सफोर्ड कि ये अन्य विदेशी शिक्षा की वैभवता भर अट्टलिकाओ कि सीढियाँ चढते रहेगे आखिर उन्हे कौन याद दिलायेगा कि भारत विश्वगुरु है जहाँ से हर कला का उद्भव और विकास हुआ है शून्य से लेकर कामसूत्र तक हमारे पूर्वजो कि देन है शल्यक्रिया और चिकित्सा और गणित की उलझने भी हमने ही सुलझाई है दुनिया को ही हमने तक्षशिला और नालंदा दिये और आर्यभट्ट वराहमिहिर चाणक्य जैसे शिक्षाविद तब सारी दुनिया के लिये कौतुहुल बन गये थे हम फहायान और कई विदेशी विद्वान नांलदा और तक्षशिला कि सीढियो पर नाक रगड़ते थे और अपने देश जाकर भारत की महिमा का गुणगान करते नही थकते थे अंजता ऐलोरा कोणार्क कि वैभवता और कला के मुरीद हो कर मन ही मन ईष्या करते होँगे पश्चिम भले क ई अविष्कार कर ले कितना हि चिकित्सा कि गहराई मे उतरजाये लेकिन चरक और सुश्रत पैदा नही कर सकते चाहे कठिन से कठिन शल्य कर पर उसका आधार नही बन सकते ये कला पूर्णत भारत कि है लेकिन ये धीरे धीरे लूट रहे है या यू कहे वे भारत का आर्थिक राजनैतिक शोषण छोड़ कर कलात्मक शोषण कर रहे है और नये रूप मे वापस हमे बेच रहे है और हम मूर्खता कि सारी हदे पार कर अपने ही ज्ञान और कला कि उपेक्षा कर इगलिस्तान के जूते चमकाने मे लगे है ताकी अपना भविष्य बना सके छी छी ऐसे भारतीयो पर लानत है जो अपने ही ज्ञान और संस्कृति को रौँद कर विकास पथ पर बढना चहाते है ये विश्रवगुरू भारत को विश्रव का मोहताज बनाने पर तुले है आज फिर एक क्राँति कि आवशयकता है आज फिर सनातन संस्कृति कि आवषकता है आज फिर चाणक्य कि अवशयकता है आज फिर अंखड भारत कि अवशकता है युवाओ जागो जागो भारत विश्वगुरू है बस तुम एक बार संस्कृति और वेदो कि और लौट आओ ..जय राष्ट्रवाद
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