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मंगलवार, 10 जनवरी 2012

हिँदू कौन

भारत की संस्कृति और धर्म कि व्याख्या करना मतलब सूर्य को दिया दिखाने के समान है हिँदू धर्म अपने आप मे संपूर्ण और पवित्र है और सभी धर्मो मतो और पंथो संप्रदाय का जनक भी लेकिन हम हिँदुतत्व को भूल कर मत और संप्रदाय पंथो मे अपने को उलझाये हुये है और यही विंड़बना सेकुलरी सोच वालो को हिँदुतत्व की जड़े हिलाने के लिये शक्ति दे रही है और इस दशा का फायदा मुस्लिम और मिशनरी भरपूर उठा रहे है और धर्मातरण करवाते जा रहै और हम सिर्फ ये करते है मैँ ब्रहामण हुँ मै जैन हुँ मैँ बौद्द हुँ मै पारसी हु मै कबीर पंथी हुँ मैँ सिख हु बस मै यही हु लेकिन ये नही कहते मैँ एक हिँदू हुँ जबकी हिँदुतत्व ही महावीर नानक गौतम बुद्ध कबीर आदी महापुरषो का धर्म और स्त्रोत रहा है और वे सभी पूजनीय है और उन सभी महा पुरूषो को त्रिदेव का अंश ही मानते आ रहे है लेकिन हमारे कुछ भाई जैन बोद्ध आदी अपने आप को हिँदू कहलाने मे शर्म महसूस करते है आखिर ऐसा क्यो ये आपसी विरोधाभास का न तो कोई ठोस कारण दिखता है और न कोई प्रशन तो फिर आप सेकुलरी भाषा क्यो बोलते है गर्व से क्यो नही कहते की मै हिँदू हुँ ..,सेकुलरी सोच रखने वाला हि हमारे बीच जंयचंद का काम कर रहा है उसे मुझे हिँदू कहते हुये शर्म आती है ऐसे भीरू हिँदुओ के कारण ही भारत की ये दुर्गति हुई है अगर हिँदू एक न हुआ तो भारत बचेगा नही और न बचेगी वैदिक संस्कृति और न बचगे महावीर गौतम नानक कबीर के आदर्श और वाणी ओर अगली पीढी या तो इस्लाम धर्म कि होगी या ईसाई