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सोमवार, 7 मई 2012

राष्ट्र धर्म और संस्कृति

राष्ट्रवाद का जन्म धर्म और संस्कृति के मिलन से होता है इसका एक अर्थ यह भी कह सकते है राष्ट्र अगर शरीर है तो धर्म उसकी आत्मा और संस्कृति उस्की वेँ तंत्रिकाये है जो संचालित करती है राष्ट्र धर्म और संस्कृति का समभाव ही किसी भी राष्ट् की उन्नती और विकास की नीँव है किँतु सेकुलरवाद इस सिँद्धात को नकारता है क्योकी सेकुलर धर्म विहिन और संस्कृति मे विकृति पैदा कर के राष्ट्रवाद का मिथ्या रूप बना कर प्रस्तुत करते है और राष्ट्र धर्म ओर संस्कृति को खंडित करते रहते है ताकि सत्ता को अपनी मुठ्ठी मेँ जकड़ कर रख सके आजादी के उपरांत सेकुलरवादियो एंव कम्नुयटो के कुचक्र ने राष्ट धर्म और संस्कृति को विँकलाग कर रखा है जब राष्ट धर्म और संस्कृति का ये हाल होगा तो जनक्रांति कैसे संभव होगी क्योकी जनमानस के पटल पर राष्ट्र धर्म और संस्कृति कि परिभाषाये भिन्न भिन्न लिख डाली है इंडिया इंडिया चिल्लाने वाला भला भारतीय धर्म और संस्कृति को क्या जानेगा जिनक रोम रोम मे रोम बसा हो वो राम को क्या जानेगा जब राम को नही जानेगा तो राम राज्य कैसे होगा जब राम को नही जानेगा तो बुराइयो का संहार कैसे होगा जब राम को नही जानेगा तो फिर समाज मे समता का भाव कैसे आयेगा राम को धर्म की रीढ कहना सर्वथा उचित है और धर्म की मजबूती राष्ट्र की मजबूती है और अगर राष्ट मजबूत होगा तो कोई भी पर संस्कृति और मैकालेवाद हमारी संस्कृति पर वज्रपात नही कर सकती जो अपने राष्ट्र संस्कृति को अपनी संपत्ती की तरह रखते है उसका अवमूल्यन नही होने देते वे कभी राष्ट्रद्रोही नही बनते चाहे वो किसी भी पंथ का अनुसरण करते हो भारत मे श्री एपीजे कलाम जैसा वयक्तितव एक ठोस उदाहरण है जो राष्ट्र धर्म और संस्कृति मे पूर्णता आस्था रखते है जो सेकुलवादियो के मुँह पर तमाचा हैँ....जय माँ भारती