सोमवार, 14 नवंबर 2011
कामगार बच्चे और बालदिवस
आज बालदिवस है केवल उनके लिये जो मंहगे अंग्रेजी स्कूल मे पढते है साफ और मंहगी पतलून टाई पहनते है आज उनका बालदिवस है जो पिज्जा बर्गर कोला पीते है जिनके घरो मे खिलौने दो घड़ी जिवित रहते है और नये आ जाते है बाल दिवस कुछ के लिये काला दिवस भी है लेकिन ये बात वो नही समझते जो योजनाओ के दिये जलाते है और तेल डालना भूल जाते है कुपोषण से दुर्बल बचपन मे बालदिवस खोजने की कोशिश नही की कभी पटाखो की बारूदी हवा मे सर्घष बचपन पर चढी धूल झाड़ने की कोशिश नही की मिटटी गारे मे सने बालपन को जरा करीब से देखो उसके मन मे भी लालसाये जीवित है शिक्षा के अधिकार क्या है ये दो जून की रोटी की जुगाड़ मे ही वयस्त है इनका गुड डे मील सूखी रोटी है योजनाओ की थाली भले सरकार सजा लेँ किँतु योजन पकवान को भोगने का अधिकार इन कामकार बाल मजदूरो का अधिकार नही बन सका ये योजना आयोग की विफलता है और कुछ समाजवादी समाज सेवको की जो अपनी झूठी समाज सेवा कर प्रतिष्ठा की चाह रखते हुये कार्य करते है आज भी हमे सड़को पर बूट पालिश या गुब्बारा बेचते मासूमो की आँखो मे यही प्रशन दिखता है की टाईधारी मे और हम मे क्या फर्क है आखिर योजनाऐ हमारे पास क्यो नही आती भारत निमार्ण विज्ञापन और यथार्थ मेँ बड़ा फर्क है ये राजनेताओ और समाजसेवियो को समझना चाहिये बच्चो को बेशक हम देश का भविष्य कहे लेकिन इस भविष्य को अंधेरे मे जाते हुये देखते रहते है एन जी ओ एंव नागरिको को कामकार बच्चो का स्तर सुधारने मे तत्परता से आगे आना चाहिये ताकी वे भी बालदिवस मना सके तभी अंखड भारत का निर्माण संभव है
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक जरुरी पोस्ट, आँखें खोलने में सक्षम आपका आभार.....
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट.... विचारणीय बातें लिए ....
जवाब देंहटाएंये दल्ले और उनके चेल्ले चिल्लाते हैं....कुत्तों को केक खिलाते गर्व होता है और बच्चो को जरायम पेशा में लगा होने पर दोष उनके माथे मद जाते हैं| राष्ट्र की उन्नति बच्चन हो रही है या उसके खानदान से... इन बच्चों को बाल दिवस के ही दिन सिर्फ औपचारिकताओं के लिए भी किसी ने सुधि ली नही| और राष्ट्रिय और निजी किसी भी चैनल पर इस तरह का प्रसारण नही आया बहुत ही दुःख की बात है की इस संसार में कुत्तों जैसी मानसिकता वाले लोग हमारा नेतिर्त्व कर रहे हैं... और हम उनका अनुसरण...
जवाब देंहटाएं