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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

रे मानव रे

जग के झंझावात और समय लगाता घात मानव निष्ठुर बैठा देखे दिन और रात . वासना के ओढ लबादा लालच का कुंभ लिये अपने को दाबा खुद को मानव बतलाने वाला क्यो दिखता मुझको दानव . समय पर होकर सवार जो घोड़ा बिन लगाम का लगा है आज मानव साधने देखे क्या होता अंजाम . विद्यापति बन बैठा पर अज्ञानता का अंधेरा लादे रहा किस्मत तो वजीर निकली वो प्यादा बना रहा . जीवन को ठिठोली समझ जीता रहा बेकर्म . काल के द्वार पँहुचा निकले मन से मर्म .तर्क देना आदत थी क्योकी खुद को मानव समझता था ईश्वर की सत्ता को एक आपदा समझता था. मर कर मानव समझ पाया की ईश्वर होता है जीवन वर्यथ गया ये सोच कर हर मानव मानव के लिये रोता है .

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