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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

कुछ पक्तियाँ देश की दशा पर

भारत मे भुखमरी है मरते किसान है
पुलिस के मजबूत डंडे है काला धन कमाने
के हथकंडे है धर्म बंधक है
सेकुलरी तहखाने मेँ संस्कृति के सुहाग
चिन्ह तोड़े जा रहे है
पश्चिमि जनाना खाने मे गुरु अब
घंटाल हो गये कांनवेटी दड़वे
मालामाल हो गये नारीयो के चीर
अब बिकने लगे है मेरी आजादी की आड़
मेँ लज्जा त्याग मर्यादा झोँक
दी आधुनिक भाड़ मे अपनी भाषा से मुँह
मेँ छाले हो गये माखन प्रसाद
दिनकरो के काव्य मे लाले हो गये
श्रंगार की दुकानो बूढी भी बालायेँ
हो गई आज बहुँ भी सास से
सयानी हो गई दहेज न लाई
जला दी गई जो पैदा होते कोख मे
मारी गई वो बेगानी हो गई
सन्नि लियोन टी आर
पी की कहानी हो गई शराब स्टेटस
सिँबल बन गई दूध देने वाली गाय
दुर्बल बन गई देश मे आंतकवाद
अलगावबाद और दंगे है क्योकी कुछ
वोट के भिखमंगे हमाम(संसद) मे नंगे है
वो कहते है मैँ झूठ लिखता हुँ
तो तुमहारा सच मुझसे मुंह
क्यो छापाता है

रविवार, 30 दिसंबर 2012

प्रदूषित शिक्षा से ग्रस्त युवा समाज


क्या कभी किसी ने ईश्वचंद्र
विद्यासागर राजाराम मोहनराय
सावित्री बाई फुले अहिल्या बाई
होलकर के पदचिन्हो का अनुसरण
किया है
मै दावे से कह सकता हुँ न इनहोने
मोमबत्ती जलाई होगी न प्रंशसा के
पदक की कामना की होगी और
ना ही लंबी चोड़ी आहे भरी होगी
लेकिन ये समाज मैँ फैली कुरितीयो और
नारी के अधीकार और सम्मान के लिये
चेतना का दिया अवश्य जला गये
और शायद हमे इनका जन्म मरण दिन
भी याद न हो क्योकी हम
मोमबत्तियाँ जलाते है जो रो रो कर
जलती है
भारतीय शिक्षा मेँ जब से मैकालेवाद और कांनवेट शिक्षा का मिश्रण हुआ है तभी से नैतिक और चारित्रीक पतन की शुरुआत हुई है मैकालेवादी शिक्षा ने भारतीयो के उस साहस को रौँद दिया जो कभी शिवाजी गुरुगोबिँद जी राणा प्रताप के रुप मे विद्ममान था और रही सही कसर कांग्रेस ने गांधीवाद थोप कर पूरी कर दी वही दूसरी और कांन्वेट शिक्षा ने बाल सुलम मन मे हिँदुतत्व संस्कृति भाषा का भय ये कह कर बैठा दिया की ये दोयम दर्जे की बातेँ है अंग्रेजी पढो हेलो हाय बोलो छुरी कांटे से खाओ पाश्चायत का अनुसरण करो सेकुलर बनो माता पिता को जीते जी मरा कहो मतलब आप स्वाभिमान को सूली पर टांग दो चरित्र को टांग दो फिर आप सभ्य लोगो की श्रेणि मे आयेँगे
क्या आप ऐसी शिक्षा पद्धति से कोई समाज सुधारक कोई शुद्ध राजनैतिज्ञ या भगतसिँह आजाद सुभाष जैसे देशभक्त गढ पायेँगे ऐसी शिक्षा तो नाजुक कूल डूड ही पैदा होँगे जो केवल तख्ती लटका कर न्याय की भीख मांग कर अपने यौवन को शर्मिदा करेँगे आज हम आधुनिक पथ पर पश्चिम की और बेहताशा दोड़े जा रहे है लेकिन आप याद रंखे जो आधुनिक रेतिला पथ आपने चुना है उस पर आपके पैरो के निशान भी नही मिलेँगे जब आप वापस लौटना चाहेगे
इसलिये ठहर जाइये मनन किजीये की आप पीछे क्या छोड़ आये है
जय राष्ट्रवाद
जय हिँदू
जय अखंड भारत

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

कूलडूड वादियो का आंदोलन

पिछले दिनो चलती बस मे गैँगरेप घटना ने देश के समाज को झकझोर कर रख दिया कूल डूड प्रजाति के बंदरो से लेकर देह प्रर्दशन से रोजी रोटी कमाने वाले मी वी वांट जस्टिस्ट की तख्तीयाँ लटकाये मोमबत्ती जलाये फांसी फांसी चिल्ला रहे है बलात्कार जैसे कृत्य के लिये कठोर दंड का मैँ भी समर्थन करता हुँ लेकिन न्याय मिले इसके लिये गूंगी बहरी सरकार के आगे गिड़गिड़ाना नही चहाता किँतु उनकी इस व्याकुलता और रोष के पीछे भेड़चाल और मीडिया मे एक झलक पाने की चाहत भर है मैँने आंदोलन कारीयो के झुंड मे उन अनपढो को भी देखा जो वी वांट जस्टिस्ट का मतलब नही जानते मैँने उन बच्चो को भी देखा जिन्हे गैँगरेप का अर्थ भी नही मालूम निसंदेह दिल्ली मे जमा भीड़ आंदोलन के बहाने अपना अवकाश मना रही थी और इस बात का फायदा सरकार ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर किया सरकार ने आंदोलन को ढहा दिया क्योकी अंग्रेजी खून जिनकी रगो मेँ दौड़ रहा हो वो क्रांति क्या करेगे
लुटा पिटा कूल डूड आंदोलन मर गया आज दिल्ली मेँ शांति है
युवा भी न्युइयर 2013 की पार्टी के विचारो मे उलझ चुका है भारत को आज कूल डूड मोमबत्ती जलाने वाले नही बलकी मंगल पांडे चाहिये अगर मंगल पांडे जैसा साहस नही तो जेपी को ही अपने अंदर पैदा कर लो तभी भारत की दिशा और समाज की दशा बदलेँगी

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

दामिनी के बहाने आओ संस्कृति की और लौट आये


दिल्ली मेँ चलती बस मे गैँगरेप और यातना की जितनी निँदा की जाये कम है जिनहोने ये कृत्य किया है वे मानवता के चोले का त्याग कर चुके है आत्मा पिशाच बन चुकी है उन छ लोगो की चरित्र की इस गिरावट पर चिँता होनी चाहिये हमारे समाज को जो खुद को पुरुष प्रधान कह कर पीठ ठोँकता है 

गुरुवार, 7 जून 2012

हिँदूतत्व पर चोट करत अंबेडकरवादी हथौड़ा

*सवैँधानिक चेतावनी * यह लेख मेरे
निजि विचार है अगर
आपकी भावना को ठेस
पहुँची हो तो आप मुझे ब्लाक कर सकते
है ........,..VANDEMATRM
अगर हम वेद की माने तो उसमे जाति जैसा घृणित शब्द है ही नही कर्म अनुसार वर्ण वयवस्था है मैँने कभी इतिहास मेँ नही पढा की किसी दलित ने क्षत्रिय या ब्राहमणो के विरूद्ध विद्रोह नही किया लेकिन जब मुस्लिम आंक्राताओ ने भारत मे अपना साम्राजय फैलाया तो उनहोने हिँदू धर्म से विमुख करने हेतु नीच कार्य शूद्रो से करने लगे और तब से ये शूद्र दलित हो गये अंग्रेजो के आगमन के बाद भी इन दलितो की स्थिति मे सुधार के लिये कोई रूचि नही दिखाई लेकि महात्मा फुले सावित्रि फूले शाहू
जी महाराज ईशवर चंद विद्यासागर
आदी समाज सुधारको ने दलितो के
उत्थान के लिये
ईमानदारी कर्मठता दिखाई और
कभी भी हिँदुतत्व का निरादर
नही किया और न ही वे धर्म परिवर्त
की और गये लेकिन अंबेडकर
जी जिनकी मानसिकता पर अंग्रेज
सवार हो चुके थे उसी अंबेडकर ने बौद्ध
पंथ की आड़ लेकर दलित को हिँदुतत्व
विरोधी बना दिया जबकी बौद्ध
धर्म हिँदुतत्व वृक्ष पर खिला पुष्प
ही है किँतु अंबेडकर के कुटिल दिमाग ने
दलित दशा सुधारने की बजाये उन्हे
नास्तिक बना दिया और दलित
कभी भी हिँदुतत्व की और न लौटे
सदा नास्तिक तिमिर मे भटकते रहे
यह सौच कर ही संविधान मे आरक्षण
का मीठा जहर घोल दिया...

रविवार, 27 मई 2012

अभिनव भारत के महान क्रांतिकार
हिँदुतत्व के उजियारे महात्मा वीर
दामोदर विनायक सावरक के अतुल्य
बलिदान को सेकुलर भले याद न रखे
लेकिन अंखड भारत हिँदू राष्ट्र
प्रेमि सदा प्रयत्नशील रहेगे .....वीर
सावरकर अमर रहे हिँदुतत्व विचारक
को उनकी जन्म तिथी पर मेरा शत शत
नमन —

शनिवार, 19 मई 2012

महात्मा गोड़से जंयती

महान हिँदुतत्व वादी भारत माता के सपूत राष्ट्रवादी महात्मा नाथूराम विनायक गोड़से के अवतरण दिवस पर ये शपथ ले की अंखड भारत के निमार्ण हेतु हम संकल्पित हो और जिस इतिहास ने गोड़से वादी विचार धारा का कभी विस्तार न होने दिया उस विचार धारा को नई पीढी मेँ इतना कूट कूट कर भर दे की उनमे हिँदुतत्व का ऐसा प्रचंड विस्फोट हो जो सेकुलरी इमारत को चकना चूर कर दे और अंखड भारत निमार्ण के लिये सामने आये ..अब सोने का वक्त नही है खुद जागो और अपने अंदर सोये हिँदुतत्व को जगाओ....वंदेमातरम

सोमवार, 14 मई 2012

जातिवाद की बदलो परिभाषा

भारत भूमि मे जातिवाद की भूमि सिर्फ बंजर है जिस पर केवल कुरितियो की खरपतवार उगा करती है जिसे पानी देने का काम जातिगत राजनिती करती है बसपा सपा गोगपा मुस्लिम लीग दलित पेँथर सर्वण समाज पार्टी ऐसे कई जाति आधारित राजनैतिक मंच है जो भारत मे अपनी जाति की उपेक्षा का ढोल बजाते हुये अपना उल्लू सीधा करते है और लोकतंत्र को जातितंत्र मे बदलकर रख दिया है तब क्या ऐसे मे भारत को विश्वगुरू बनना संभव है भारत मे अंखड भारत की नीँव रखी जा सकती है अगर भारत को अपने सर्वण युग की और पुन: अग्रसर करना है तो हमे पहले कट्टर भारतीय बनना होगा ब्राहमणवाद क्षत्रियवाद वैश्यवाद दलित वाद अंल्पसंखयकवाद की परिभाषा बदलनी होगी भारत मेँ ब्राहमण वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ ब्राहमण ऐसा भी हो जो चाणक्य जैसी दूरदर्शता का पारखी है भारत मेँ क्षत्रिय वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ क्षत्रिय राणा प्रताप ऐसा भी हो जो मातृभूमि का स्वाभिमान कभी लुटने न दे भारत मे वैश्य वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ वैश्य जो मातृभूमि के लिये अपना सर्वत्र धन लुटा सके भारत मे दलित वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ दलित होना चाहिये जो आरक्षण की बैसाखी पर न टिका हो भारत मे अल्पसंख्यक वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ अल्पसंख्यक ऐसा भी हो जो वंदेमारम जय घोष को धर्म विरोधी न मानता हो....जरा सोचिये विचार किजीये....जय माँ भारती

मंगलवार, 8 मई 2012

आखिर कब तक भारत विकासशील कि कतार मे खड़ा रहेगा

भारत की सपंन्नता की चकाचौध से सारा विश्र्व ईष्या करता है अगर इतिहास के पन्ने पलट कर मनन करे तो हम ये सोचने को मजबूर हो जायेगे की भारत के तथाकथित डालर प्रेमी अंग्रेजो के चाटुकार भ्रष्ट राजनीति पनारे के कृमि भारत को विकासशील देशो की पंक्ति मे क्यो खड़ा कर अपनी संपन्नता को धुंधला कर रहे है आखिर भारत विकासशील
देशो की कतार मे कब तक
खड़ा रहेगा क्या नही है मेरे देश मेँ
श्रम शक्ति अपार खनिज
संपदा की भरमार प्राकृतित
संपदा अपार गंगा यमुना की शीतल
जल धाराये संदृण हमारी सेनाये
सोना उगलती वंसुधरा वेदो का उच्चतम
ज्ञान पृथ्वी अग्नि जैसे आयुध चरक ओर सुश्रत का चिकित्सा विज्ञान आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ और सबसे
खास बात हम भारतीयो मे अपने देश के
स्वाभिमान को बचाने के लिये मर
मिटने
का संकल्प...क्या इतना काफी नही एक
विकसित राष्ट्र के लिये भारत की वो संपन्नता कहाँ गई जिसके सम्मोहन मे संमदर पार से सिँकदर, मुगल साम्राज्य और 300 साल से भी अधिक भारतीय संपदा का दोहन करने वाले डच पुर्तगाल फ्रांसिसी और ब्रिटिश भारत का तन मन धन लूटते रहे लेकिन भारत की संपन्नता मे फिर भी कमी न आई लेकिन अंग्रेजो की शिक्षा व्यवहार और संस्कृति भारतीयो को लाचर जरूर बना गई और ये लाचारी ही भारत की दुर्दशा का मुख्य कारण है भले 15 अगस्त 1947 को देश की सत्ता का हंस्तातरण कर के चले गये किँतु भारत को मानसिक गुलाम बना कर छोड़ गये और भारत सिर्फ एक कोरा कागज बन गया जिस पर जैसा चाहो लिख डालो भारत की संपन्नता अभी भी उतनी ही है जो पहले थी बस उसको सहेजने और सदुपयोग की आवशकता है भारत को विकसित भले न हम बना पाये किँतु भ्रष्टाचार कुपोषण जातिवाद प्राँतवाद सामाजिक बुराईया अशिक्षा सेकुलरवाद नक्सलवाद आंतकवाद जैसी राक्षसी प्रवृत्ति को मिटाने का कारगार उपाय करेगे तो भारत का विकास पथ खुद ही बन जायेगा...सड़को पर चिल्लाने या संसद मे हंगामा करने से विकसित नही हो सकते अगर देश और समाज यृँ ही निद्राग्रस्त रहा तो मुमकिन हो कोई सिँकदर या मुगल या अंग्रेज भारत पर आंखे गड़ाये बैठा है....वंदे मातरम

सोमवार, 7 मई 2012

राष्ट्र धर्म और संस्कृति

राष्ट्रवाद का जन्म धर्म और संस्कृति के मिलन से होता है इसका एक अर्थ यह भी कह सकते है राष्ट्र अगर शरीर है तो धर्म उसकी आत्मा और संस्कृति उस्की वेँ तंत्रिकाये है जो संचालित करती है राष्ट्र धर्म और संस्कृति का समभाव ही किसी भी राष्ट् की उन्नती और विकास की नीँव है किँतु सेकुलरवाद इस सिँद्धात को नकारता है क्योकी सेकुलर धर्म विहिन और संस्कृति मे विकृति पैदा कर के राष्ट्रवाद का मिथ्या रूप बना कर प्रस्तुत करते है और राष्ट्र धर्म ओर संस्कृति को खंडित करते रहते है ताकि सत्ता को अपनी मुठ्ठी मेँ जकड़ कर रख सके आजादी के उपरांत सेकुलरवादियो एंव कम्नुयटो के कुचक्र ने राष्ट धर्म और संस्कृति को विँकलाग कर रखा है जब राष्ट धर्म और संस्कृति का ये हाल होगा तो जनक्रांति कैसे संभव होगी क्योकी जनमानस के पटल पर राष्ट्र धर्म और संस्कृति कि परिभाषाये भिन्न भिन्न लिख डाली है इंडिया इंडिया चिल्लाने वाला भला भारतीय धर्म और संस्कृति को क्या जानेगा जिनक रोम रोम मे रोम बसा हो वो राम को क्या जानेगा जब राम को नही जानेगा तो राम राज्य कैसे होगा जब राम को नही जानेगा तो बुराइयो का संहार कैसे होगा जब राम को नही जानेगा तो फिर समाज मे समता का भाव कैसे आयेगा राम को धर्म की रीढ कहना सर्वथा उचित है और धर्म की मजबूती राष्ट्र की मजबूती है और अगर राष्ट मजबूत होगा तो कोई भी पर संस्कृति और मैकालेवाद हमारी संस्कृति पर वज्रपात नही कर सकती जो अपने राष्ट्र संस्कृति को अपनी संपत्ती की तरह रखते है उसका अवमूल्यन नही होने देते वे कभी राष्ट्रद्रोही नही बनते चाहे वो किसी भी पंथ का अनुसरण करते हो भारत मे श्री एपीजे कलाम जैसा वयक्तितव एक ठोस उदाहरण है जो राष्ट्र धर्म और संस्कृति मे पूर्णता आस्था रखते है जो सेकुलवादियो के मुँह पर तमाचा हैँ....जय माँ भारती

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

तुम ऐसा करना

विचार भले ना मिले हमारे.पर देश राह पर मिल जाना .अगर भटक जाऊ पथ से दीपक तुम दिखला देना.साथ मेरे बस साहस है तुम उर्जा मेरी बन जाना. भारत के भाल पर जो निशान बैरी ने दागे है .धरा स्वर्ग पर जिसने बहाये रक्त पनाले है .खड़ग उठा तुम उन भीरू के शीश भूमि पर चढा देना.धर्म आँच पर आये तो सिँहनाद तुम कर देना. कुरुक्षेत्र और गीता का मन मे सुमरन कर लेना.मर जाना रण मे पर पाप हरण तुम कर लेना.मोह अगर रोके तुमको तो मातृभूमि को याद करो.विचलित हो मन तो सत्य की टंकार करो .वीर प्रसूता के रक्त ऋण को आज चुका देना.रंगे सियार और कुत्ते घात लगाये बैठे है सत्ता के मद मे कर्णधार देश के ऐँठे है.आज उन्हे देश प्रेम का पाठ पढा देना.विरोधियो के हाथ उठे है देश की पंरपराओ पर अंधकार पश्चिम का छाय आर्य संतानो पर .वेद प्रकाश की ज्योति से उस तिमिर का अंत कर देना. महाशक्ति हो भारत विश्व की बस संकल्प यही हो .राष्ट्रवाद ही जागे समाज मे लक्षय यही हो .भारत को फिर से तुम वैदिक पथ पर ले जाना..,.वंदेमातरम

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

गांधी महात्मा नही थे

इतिहास ने गांधी का जिस तरह
महिमा मंडन किया ऐसा प्रतित
होता है वो इतिहास को लिखने वाले
भारतिय नही अंग्रेजो के दलाल रहे
होगे मोहन दास करमचंद गांधी वैसे
तो स्वदेशी की बात करते थे
लेकिन आजादी के बाद भी नंपुसक
की भाँति जिये और मुस्लिम
तुष्टीकरण करते रहे क्या ये
महात्मा के लक्षण है जब सारा देश
गांधी का भक्त था तो पाकिस्तान
क्यो बना क्या गांधी एक कमजोर
लाचार बूढा बन कर रह गया था गांधी वैसे तो गौ हत्या शराबबंदी और हिँदी पर जोर देते नही थकते थे किँतु जैसे है आजादी मिली(सत्ता हंस्तान्तरण) हुआ गांधी मुस्लिम लीग और जिन्ना की चापलूस करने लगे जबकी जिन्ना के पक्ष मे कुछ गद्दार धंमाध मुसलमान थे और गांधी के साथ पूरा देश खड़ा था फिर भी गांधी असहाय क्या एक महात्मा का यही सिँधात है अंहिसा का फटा ढोल पीटने वाले गांधी को हिँदुओ पर हुये अत्याचार कभी नही दिखे उसके लिये अल्पसंखयक ही भगवान थे ऐसे महात्मा को मार दिया गया तो क्या गलत हुआ

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

हिँदू धर्म मे कोई दलित नही

दलित या शूद्र अपना रोना रोते है
अपने को दीन हीन बताने बाला ये
तबका कभी अपना इतिहास उठा कर
नही देखता सतयुग द्वापुर एंव
त्रेतायुग कालो मे राम या कृष्ण के युग
मे दलितो के अत्याचार का कोई
वर्णन नही मिलता और तो और हम
अगर 5000 ईसा पूर्व जाये
तो इतिहास मे दलित अत्याचार
का वर्णन नही है क्योकी तब दलित
भी सम्माननिय जीवन
जीता था लेकिन नये धर्मो के उदय एंव
आक्रमण कारी यो द्वार भारत पर
कब्जा जमाने के बाद दलित अत्याचार
शुरू हुय

हिँदू धर्म को पहचानो

हिँदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है
जिसमे कई पंथ सप्रदाय होने के बाद
भी मतभेद नही है हर त्रिदेवो मे
आस्था रखते है इसके विपरित इस्लाम
मे शिया सुन्नि विवाद ईसाई धर्म मे
कैथोलिक एंव प्रोटेटस विवाद बौद्ध
महायान हीनयान जैन दिँगबर
शेवतामबर ...आखिर इन धर्म मे
विवाद पैदा क्यो और किसने किया ये
सोचने की बजाय मुस्लिम एंव ईसाई
हिँदू धर्म पर उँगली उठाते है ऐसे धर्म
मानवीय नही बल्की भ्रष्ट
दिमागी सोच भर है ...जय माँ भारती

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

दम तोड़ती अखाड़ा संस्कृति

आधुनिक भारत जो पश्चिम की लाठी पकड़े अपनी संस्कृति का तिरस्कार करते हुये भाग रहा है उन कथित छद्मरूपी अंधेरो की और जो विकास का दिया भर टिमटिमा रहे है या यू कहे मानव को मशीनी मानव बनाने पर तुले है और हम अपना शरीर मशीनो की भेट चढा कर अपने को बलवान समझ रहे है कभी कुशती और पहलवानी आला दर्जे की कला समझी जाती थी लेकिन आज कुशती एक खेल और कमाऊ साधन बन गया है आज कसरती बदन नही सिक्स पैक बना करते है दंड पेलुओ की घोर कमी है भारत मे लाल मिट्टी का अखाड़ा और व्यायाम शालाऐ ध्वस्त है और जिम रूपी मशीनी दानव पैसा और शरीर दोनो खा रहे है कभी अखाड़े के पठ्ठे लगोँट धारी हुआ करते थे और पूर्ण ब्रहमचारी लेकिन अब जिम मे वजन ढोते ट्रेक सूट पहने हम्माल नजर आते है और शरीर बनाने के साथ बेहया और बदचलन भी बन जाते है अखाड़ा संस्कृती को मिटाकर हमने अपना हित नही सर्वनाश कर लिया क्योकी अखाड़ा संस्कृति के कारण ही हिँदु संगठित और संस्कारवान होता था और अखाड़ा संस्कृति को मिटाने वाले वे सेकुलर है जिँनहोने अखाड़ा और व्यायाम शालाओ को धर्म के साथ जोड़ा लेकिन अखाड़े को संस्कृति का दर्जा नही मिला और सरकार की उदासीनता की भेट अखाड़े चढते गये अब केवल चुँनिदा बचे है अगर हम अब भी यू ही अपनी संस्कूति से भागते रहे तो एक दिन हिँदुतत्व भी मिट जायेगा

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

मैँ ऐसा क्यो हो गया

मैँ भारत की संस्कृती को तुच्छ समझता हु क्योकी मेरी भारतीय आत्मा मर चुकी है और अब मेरे शरीर मे पश्चिम का पिशाच प्रवेश कर चुका है मेरी माँ अब मोम हो चुकी है मेरे पिता चलते फिरते मृत(डैड) हो चुके है मेरी जुबान से हिन्दी फिसल चुकी है और मे कटुक और भद्दी भाषा इंगरेजी का गुलाम बन चुका हुँ माता पिता को प्रणाम नही करता हुँ क्योकी माय सेल्फ मे विश्वास रखता हुँ सुबह देर तक सोना रात को जगना ही मेरी आदत है योग व्ययाम ये मूर्खो के काम मानता हुँ मैँ जिम और ट्रेक सूट धारण करने मे विश्वास रखता हुँ मैँ त्यौहार कम डे ज्यादा मनाता हुँ और गर्लफ्रेँड बना कर धन बल और समय गवाता हुँ मुझको प्रेम की परिभाषा नही पता मै पढ लिख कर किसी अंग्रेज की गुलामी करना चहाता हु यही मेरा लक्ष्य है क्यो की भारतीय संस्कति पश्चिम के सामने बौनी लगती है मै इतना हरामखोर हूँ की मै अपने संस्कारो को जला कर हाथ ताप लेता हु ये सब देख कर मेरे आधुनिक मित्र मेरी बहुत इज्जत करते है और मुझे हाई क्लास की पदवी देते है और मुझे शराब जुआ और व्याभिचार के र्स्वग(नर्क) मे ढकेलते है और खुद भी गिरते है यही मेरी दिनचर्या है लेकिन मैँ कभी कभी ये सोच कर रो लेता हुँ आखिर मुझ मे ये दुगुर्ण देने वाला कौन है किसने मेरी भारतीय आत्मा को मार दिया अंग्रेजो को तो खदेड़ दिया था लेकिन उनकी परछाई(संस्कृति) को न खदेड़ सके अगर ये विषैली पश्चिमी संस्कृति यूँ ही हम युवाओ के सिर पर सवार होती रही तो एक दिन भारत इंडिया बन जायेगा और मैँ गुलाम

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

आजादी की भीख मांगते गांधी के पीछे चलने वाले आखिर आजाद हो गये लेकिन अंग्रेजि मानसिकता की बेड़ियो मे जकड़ा भारत आज भी अपने को आजाद करना चहाता है लेकिन पश्चिम की र्दुगंध मे जीता युवा केवल भेड़चाल और मीडिया की सुर्खि ता अंग्रेजी कंपनी के जूते साफ कर ते हुये ही अपना जीवन का लक्ष्य समझता है आज मुठ्ठी भर युवा ही होँगे जो अंखड भारत हिँदू राष्ट्रका सपना देखते है बाकी सेकुलर की मदिरा पीकर अधर्म के गंदे नाले मे पड़े है आज अपने को आजाद कहने वाले दीमागी तौर पर गुलाम हो कर जैसा पश्चिम कहता है वैसा कर रहे है पथभ्रष्ट होकर अपनी संस्कृति को नष्ट करने और पश्चिमि संस्कृति से सहवास कर रहा है

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

विश्वगुरु हमारा भारत

आज के आधुनिक युग के उदय के प्रकाश कि तीखी किरणो से अपने को जलाते हम उस परिष्कृत ज्ञान के पीछे भाग रहे है जो हमे पश्चिमी देशो से मिल रहा है आखिर भारतीय निर्लजता का पीछा कब छोड़ेगे और कब तक अपने वैदिक ज्ञान और सनातन संस्कृति पर कुठाराघात करते हुये आक्सफोर्ड कि ये अन्य विदेशी शिक्षा की वैभवता भर अट्टलिकाओ कि सीढियाँ चढते रहेगे आखिर उन्हे कौन याद दिलायेगा कि भारत विश्वगुरु है जहाँ से हर कला का उद्भव और विकास हुआ है शून्य से लेकर कामसूत्र तक हमारे पूर्वजो कि देन है शल्यक्रिया और चिकित्सा और गणित की उलझने भी हमने ही सुलझाई है दुनिया को ही हमने तक्षशिला और नालंदा दिये और आर्यभट्ट वराहमिहिर चाणक्य जैसे शिक्षाविद तब सारी दुनिया के लिये कौतुहुल बन गये थे हम फहायान और कई विदेशी विद्वान नांलदा और तक्षशिला कि सीढियो पर नाक रगड़ते थे और अपने देश जाकर भारत की महिमा का गुणगान करते नही थकते थे अंजता ऐलोरा कोणार्क कि वैभवता और कला के मुरीद हो कर मन ही मन ईष्या करते होँगे पश्चिम भले क ई अविष्कार कर ले कितना हि चिकित्सा कि गहराई मे उतरजाये लेकिन चरक और सुश्रत पैदा नही कर सकते चाहे कठिन से कठिन शल्य कर पर उसका आधार नही बन सकते ये कला पूर्णत भारत कि है लेकिन ये धीरे धीरे लूट रहे है या यू कहे वे भारत का आर्थिक राजनैतिक शोषण छोड़ कर कलात्मक शोषण कर रहे है और नये रूप मे वापस हमे बेच रहे है और हम मूर्खता कि सारी हदे पार कर अपने ही ज्ञान और कला कि उपेक्षा कर इगलिस्तान के जूते चमकाने मे लगे है ताकी अपना भविष्य बना सके छी छी ऐसे भारतीयो पर लानत है जो अपने ही ज्ञान और संस्कृति को रौँद कर विकास पथ पर बढना चहाते है ये विश्रवगुरू भारत को विश्रव का मोहताज बनाने पर तुले है आज फिर एक क्राँति कि आवशयकता है आज फिर सनातन संस्कृति कि आवषकता है आज फिर चाणक्य कि अवशयकता है आज फिर अंखड भारत कि अवशकता है युवाओ जागो जागो भारत विश्वगुरू है बस तुम एक बार संस्कृति और वेदो कि और लौट आओ ..जय राष्ट्रवाद

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

सोशल वर्क नही समाज सेवा किजिये

भारत मे सेवा को एक तरह पूजा माना गया है और दरिद्र नारायण कि सेवा की जाय तो नारायण तक पहुचना सरल हो जाता है लेकिन आज के समय मे समाज सेवा फोकटियो का काम है आधुनिक विचारधारी टाई पतलून मे अपने को छुपाये सोशल वर्क करना पंसद करते है और मैग्सेस कि याचना मे लगे रहते है और अपनी गोरी मेमो के साथ संगष्ठियो मे वाह वाह तालियाँ बटोरते है सोशल वर्क और समाज सेवा मे फर्क ये है कि सोशल के साथ वर्क है और काम करने का मूल्य निर्धारित होता है और समाज के साथ सेवा जुड़ा है जिसे ये बेगारी समझते है बाबा आमटे जैसे लोग ही समाज सेवा करते है ओर ऐसा ज्जबा स्टेटस सिँबल के परदे मे रहने वाले नही रख सकते कुष्ठ पिड़ित दीनहीन कुपोषण से पीड़ित या सिलोचन सूंघते बच्चे पन्नी कचरा बीनते बच्चे भीख मागते बच्चे इनमे छुपा भगवान मार दिया गया है उनके द्धारा जो अपने को हाई क्लास बताते है जो एन जी ओ तो बनाते है केवल प्रसिद्धि के लिये और उनकी गोरी मेमे किटी पार्टी मे ठिठोली करती है और ये समाज सेवा नही सोशल वर्क करती है और सोशल वर्क और समाज सेवा मे वैसा ही फर्क होता है जैसा की नीले और पीले परमिट मे आज सोशल वर्क कि नही समाज सेवा कि जरूरत है आज भी कंधे पर बीमार बच्चा लटकाये भीख माँगते दरिद्रो के उत्थान कि जरूरत है पाने पेचकस के बीच बचपन अपने सपनो को बुनते को सपना दिखाने कि जरूरत है ऐसा तब होगा जब समाज सेवा जीवित होगी सोशल वर्क के पेज थ्री से निकल कर ही संभव है.....जय राष्ट्रवाद

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

हिँदू कौन

भारत की संस्कृति और धर्म कि व्याख्या करना मतलब सूर्य को दिया दिखाने के समान है हिँदू धर्म अपने आप मे संपूर्ण और पवित्र है और सभी धर्मो मतो और पंथो संप्रदाय का जनक भी लेकिन हम हिँदुतत्व को भूल कर मत और संप्रदाय पंथो मे अपने को उलझाये हुये है और यही विंड़बना सेकुलरी सोच वालो को हिँदुतत्व की जड़े हिलाने के लिये शक्ति दे रही है और इस दशा का फायदा मुस्लिम और मिशनरी भरपूर उठा रहे है और धर्मातरण करवाते जा रहै और हम सिर्फ ये करते है मैँ ब्रहामण हुँ मै जैन हुँ मैँ बौद्द हुँ मै पारसी हु मै कबीर पंथी हुँ मैँ सिख हु बस मै यही हु लेकिन ये नही कहते मैँ एक हिँदू हुँ जबकी हिँदुतत्व ही महावीर नानक गौतम बुद्ध कबीर आदी महापुरषो का धर्म और स्त्रोत रहा है और वे सभी पूजनीय है और उन सभी महा पुरूषो को त्रिदेव का अंश ही मानते आ रहे है लेकिन हमारे कुछ भाई जैन बोद्ध आदी अपने आप को हिँदू कहलाने मे शर्म महसूस करते है आखिर ऐसा क्यो ये आपसी विरोधाभास का न तो कोई ठोस कारण दिखता है और न कोई प्रशन तो फिर आप सेकुलरी भाषा क्यो बोलते है गर्व से क्यो नही कहते की मै हिँदू हुँ ..,सेकुलरी सोच रखने वाला हि हमारे बीच जंयचंद का काम कर रहा है उसे मुझे हिँदू कहते हुये शर्म आती है ऐसे भीरू हिँदुओ के कारण ही भारत की ये दुर्गति हुई है अगर हिँदू एक न हुआ तो भारत बचेगा नही और न बचेगी वैदिक संस्कृति और न बचगे महावीर गौतम नानक कबीर के आदर्श और वाणी ओर अगली पीढी या तो इस्लाम धर्म कि होगी या ईसाई

रविवार, 1 जनवरी 2012

हिँदुतत्व पर आघात करता सेकुलर वाद

जब कोई भाई हिँदुतत्व की बात करता है सनातन संस्कृति की बात करता है तो सेकुलरवादी उसे मानव धर्म की परिभाषा समझाने लगते है जबकी सच ये है त्याग करूणा प्रेम आदर ये हिँदुतत्व के वे अनमोल फल है जो वैदिक संस्कृति की शाखाओ पर ही शोभायमान है लेकिन सेकुलर वादियो को हिँदुतत्व का कल्प वृक्ष नागफनी सा दिखता है इसलिये दूर रहते है और ये सेकुलर धर्म के वो लोग है जो आधुनिकरण और पश्चिम का समर्थन करते है वे विकास भी अंग्रेजी दवाईयो की तरह चहाते है जो तुंरत असर करे भले परिणाम अनुकूल ना हो सेकुलरवादीयो की सोच धर्म रहित होती है सिर्फ वे मानवता को ही धर्म मानते है लेकिन खुद कितने मानवता वादी है ये मनन का विषय है क्योकी अंधिकाश सेकुलरवादी धार्मिक भेदभाव करते है ये बात सत्य है और भारत मे बहुसंख्यक ही सेकुलरवाद की तुरीह बजाते मिलेगे मुस्लिम और ईसाई पूर्ण धार्मिक है उन्हे सेकुलर से कोई वास्ता नही और सेकुलरवादी इनको निरिह बकरी मानते है और इनके प्रति सहानभूति रखते है लेकिन सत्य ये है मिशनरी ओर मुस्लिम दोनो ही अपने धर्म को बल प्रदान कर रहे है और सेकुलर वादी हिँदुतत्व को आँतकवाद की परिभाषा दे रहे है इनका ये दोहरा चरित्र एक दिन भारत को एक और पाकिस्ताना बना देगा या फिर वही अंग्रेजी राज ले आयेगा इसलिये आज एक क्राँति की आवाज चाहिये देश को हिँदुतत्व चाहिये .....जय राष्ट्रवाद