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शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

दम तोड़ती अखाड़ा संस्कृति

आधुनिक भारत जो पश्चिम की लाठी पकड़े अपनी संस्कृति का तिरस्कार करते हुये भाग रहा है उन कथित छद्मरूपी अंधेरो की और जो विकास का दिया भर टिमटिमा रहे है या यू कहे मानव को मशीनी मानव बनाने पर तुले है और हम अपना शरीर मशीनो की भेट चढा कर अपने को बलवान समझ रहे है कभी कुशती और पहलवानी आला दर्जे की कला समझी जाती थी लेकिन आज कुशती एक खेल और कमाऊ साधन बन गया है आज कसरती बदन नही सिक्स पैक बना करते है दंड पेलुओ की घोर कमी है भारत मे लाल मिट्टी का अखाड़ा और व्यायाम शालाऐ ध्वस्त है और जिम रूपी मशीनी दानव पैसा और शरीर दोनो खा रहे है कभी अखाड़े के पठ्ठे लगोँट धारी हुआ करते थे और पूर्ण ब्रहमचारी लेकिन अब जिम मे वजन ढोते ट्रेक सूट पहने हम्माल नजर आते है और शरीर बनाने के साथ बेहया और बदचलन भी बन जाते है अखाड़ा संस्कृती को मिटाकर हमने अपना हित नही सर्वनाश कर लिया क्योकी अखाड़ा संस्कृति के कारण ही हिँदु संगठित और संस्कारवान होता था और अखाड़ा संस्कृति को मिटाने वाले वे सेकुलर है जिँनहोने अखाड़ा और व्यायाम शालाओ को धर्म के साथ जोड़ा लेकिन अखाड़े को संस्कृति का दर्जा नही मिला और सरकार की उदासीनता की भेट अखाड़े चढते गये अब केवल चुँनिदा बचे है अगर हम अब भी यू ही अपनी संस्कूति से भागते रहे तो एक दिन हिँदुतत्व भी मिट जायेगा

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