बुधवार, 28 दिसंबर 2011
क्या दलित हिँदू है ?
दलित शब्द का अर्थ चाहे जो भी हो लेकिन सत्य ये है दलित अपने आप को हिँदुतत्व पर लगा पैँबद मानते है और उनकी मंशा अपने को श्रेष्ठ दिखाने की लगती है पर सत्य ये है दलित भी पूर्ण ब्राहमण का ही रूप है सिर्फ फर्क ये है की वो उच्च कुल मेँ पैदा नही हुआ संस्कार विहिन रहते हुये खुद को दलित घोषित कर लिया जिसे ब्राहमण वादियो को शोषण का अधिकार मिल गया और दलितो की स्थिति बदत्तर हो गई ये हिँदुतत्व के लिये दुभाग्यपूर्ण बात थी और हिँदुतत्व का दलित वर्ग अपने सम्मान के लिये धर्मान्तरण की ओर चल पड़ा जिसका बौद्ध इस्लाम और ईसाईयो ने प्रलोभनो से स्वागत किया लेकिन जिन दलितो की आत्मा मे हिँदुतत्व का मोह शेष था वो बौद्ध बन गये क्योकी वे अपना स्थान खोना नही चहाते थे और जो प्रलोभन के झांसे मे आये वो या तो मुस्लमान बन गये या ईसाई ये सब हिँदुतत्व के ठेकेदारो के सामने हुआ और अब भी निँरतर हो रहा है दलित ही धर्मातंरण कि ओर जा रहा है ये शोचनिय स्थिती हर हिँदु संगठन सिर्फ देख रहा है कोई कदम नही उठाता आज भी अदिवासी और दलित बस्तियो मे हिँदुतत्व आचरण नही है आज भी केवल अंधविश्वास का घोर अंधेरा है जिसका लाभा ईसाई मिशनरी उठा रहे है आज दलित उत्थान की सख्त आवशयकता है ज्योतिबा फुले ठक्कर बाप्पा और जैसे विचारक ही दलितो को हिँदुतत्व की और लौटा सकते है आरक्षण की खीर से दलितो का भला नही हो सकता जब तक सम्मान कि मिठास ना घोली जाये अपने को दलितो का मसीहा कहने वाले राजनैतिक दल केवल दलितो के वोट कि दरकार रखते है दलित के उत्थान को आगे नही रखते दलितो को अगर सम्मान चाहिये तो हर दलित को अपने को पहले अपने आप को हिँदू बनाना हो गा अगर दलित ऐसे ही धर्मातरण करते रहे तो निशचित हिँदुतत्व का चौथा स्तंभ शूद्र कहते है ध्वस्त हो जायेगा ...जय राष्ट्रवाद
सोमवार, 26 दिसंबर 2011
रे मानव रे
जग के झंझावात और समय लगाता घात मानव निष्ठुर बैठा देखे दिन और रात . वासना के ओढ लबादा लालच का कुंभ लिये अपने को दाबा खुद को मानव बतलाने वाला क्यो दिखता मुझको दानव . समय पर होकर सवार जो घोड़ा बिन लगाम का लगा है आज मानव साधने देखे क्या होता अंजाम . विद्यापति बन बैठा पर अज्ञानता का अंधेरा लादे रहा किस्मत तो वजीर निकली वो प्यादा बना रहा . जीवन को ठिठोली समझ जीता रहा बेकर्म . काल के द्वार पँहुचा निकले मन से मर्म .तर्क देना आदत थी क्योकी खुद को मानव समझता था ईश्वर की सत्ता को एक आपदा समझता था. मर कर मानव समझ पाया की ईश्वर होता है जीवन वर्यथ गया ये सोच कर हर मानव मानव के लिये रोता है .
हिँदुतत्व ही श्रेष्ठ है
सेकुलरवादी कायरो से क्या डरना जो खुद अपने को धर्मनिरपेक्ष कहते है और अपने ही धर्म की जय कहने से डरते है ये अपने को हिँदू कहलवाने मे संकोच करते है ऐसे हिँदुवादियो को क्या पता की हिँदुतत्व की व्याख्या क्या है ये तो गोल टोपी धार शून्य को मानने वाले लोगो को ही सच्चा धार्मिक और 1400 साल पुराने धर्म जिसकी नीँव का पता नही जात का पता नही उसे ही सच्चा धर्म मानते है हिँदू तो एक मारने काटने वाली कौम है और मुस्लिम भाईचारा फैलाते है और मुस्लिम तो यह मानते है गैर हिँदू या तो अल्लाह को माने नही तो उसे मिटा दो इसके उलट हिँदुतत्व कहता है वसुधैव कुंटुबकम इस्लाम कहता है जकात का हकदार सिर्फ गरिब मुस्लमान है और हिँदुतत्व कहता है अगर दांये हाथ से दान करो तो बाये को पता नही चलना चाहिये मतलब मानव सेवा सर्वोपरि है हिँदुतत्व कर्म प्रधान है बुरे कर्म की सजा अवशय मिलती है जबकी इस्लाम कहता है अल्लाह से तौबा कर लो सारे गुनाह माफ हिँदुतत्व के सिद्धानत प्राकृतिक और सरल है जबकी मुस्लिम एक दिमागी उपज और सार हीन सा लगता है जिसमे महिमा मंडन के अलावा कुछ भी नही हिँदुतत्व मे ऐकेशवर वाद है जिसे आस्था ने अपने अनुसार विभक्त किया है इस्लाम मे अल्लाह और पैँगबर को ही प्रचारित किया है हिँदुतत्व पशुबलि का समर्थन नही करता ना ही वेद इसकी आज्ञा देते है इस्लाम मेँ कुर्बानी का आदेश दिया गया है सबसे बड़ी बात इस्लाम मे अपने परिवार मे ही विवाह और संभोग करना पाप नही लेकिन हिँदुतत्व मे ये गौ हत्या से कम नही हिँदुततव के इन विशिष्ट गुणो के कारण ही श्रेष्ठ हैँ..
मंगलवार, 20 दिसंबर 2011
श्रीमद गीता पर विवाद क्यो
हिँदुतत्व का मूल है वेद जो कब लिखे गये ये अज्ञात है जिसे ईशवरिय रचना कहा जाये तो सत्य ही होगा और वेद वाणी प्राकृतिक और वैज्ञानिक रुप प्रमाणित है भले मुस्लिम या ईसाई वेदो पर विश्वास न करे लेकिन सत्य यही है वेद ही कुरान बाईबिल आदि धर्मग्रंथो का पितामह है और वैसा ही गीता के बारे मे कहा जाता है वेद अगर जीवन का सिँद्धान्त बताते है तो गीता कर्म धर्म और मोक्ष प्राप्ति की और ले जाती है ये बात पूर्ण सत्य है क्योकी गीता के शब्दो की काट कोई अन्य धर्म नही कर पाया शायद यहि कारण है की ईसाई और मुस्लिम हिँदुतत्व से घृणा करते है और ईष्या भी करते क्यो की वे अपने धर्म मे प्रमाणिकता नही पाते और बौखला कर हिँदुतत्व को झूठा साबित करने की कोशिश करते है अभी हाल ही मेँ रूस मे जो गीता को लेकर विवाद हुआ वह यही सिद्ध करता है ओर गीता ज्ञान को आंतक का ज्ञान बतलाने वाला एक ईसाई ही है जिसने गीता को अदालत मे घसीटा गीता पर कोई उंगली उठाये ये कैसे हो सकता है क्योकी गीता तो मानव को धर्म ओर कर्म की ओर ले जाती है हिँसा और मानव विरोधी कार्य तो ज्यादा तर मुस्लिम और ईसाइ कर रहे है लेकिन कोई इन पर उंगली नही उठाता आंतकवाद और धर्मातरण जैसे अमानवीय कृत्य के वावजूद ये विश्रव मे सम्मानित है और ये हिँदुतत्व पर लगातार चोट किये जा रहे है कभी देवताओ का अपमान तो कभी गुरूओ का कभी पंरपराओ का अब तो ये इतने निर्भिक हो गये की हमारी प्रेरणा श्रीमद गीता पर भी टिपप्णी करने लगे आखिर ये मुस्लिम और इसाई क्या अपना समूल नाश चहाते है क्योकी हिँदुतत्व अब जाग चुका है
बुधवार, 14 दिसंबर 2011
धर्मातरण का विषैला माहौल और अंखड भारत की कल्पना
भारत को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहने वाली सेकुलरी बिरादरी धर्मान्तरण जैसी गंदी और मलिन गंदगी को साफ करने की वकालत कभी नही करती क्योकी ज्यादा तर धर्मातरण हिँदु का ही होता है कभी मुस्लिम या ईसाई को हिँदुतत्व का दामन थामे नही देखा ये बात सेकुलरवादी जानते है और दुख इस बात का है अपने को सेकुलर बताने वाले हिँदु ही है और मुस्लिम और ईसाई कट्टर धार्मिक होने पर भी अपने को राष्ट्रभक्त और मानवता वादी सिद्ध करते है और सम्मानजनक स्थान पाते है और अगर जागरूक हिँदू इन छदमवेशीयो पर उंगली उठाता है तो उसे सांप्रदायिक घोषित करने का प्रयोग शुरू हो जाता है और उन्हे साप्रदायिक कहने वाला अधिकांश हिँदू ही होता है जो अपने को हिँदू नही बल्की हिँदू से भी श्रेष्ठ जाति(सेकुलर) बताता है और वह राष्ट्रभक्त बन जाता है और जागरूक हिँदू राजनैतिक षंडयत्र का शिकार हो जाता है ओर उसकी आवाज काले करागार मे गुम हो जाती है धर्मातंरण का विष फैलाने वाले पहले प्रलोभन की रेवड़ी बाटते है फिर धर्मातारण का विष एक ना एक दिन समुचे हिँदुतत्व का नाश कर देगा और जो धर्मातरण करने वालो के साथ दे रहे है एक दिन स्वम इस विष के प्रभाव से बच नही पायेगे ...संविधान का मखौल उड़ाते मुल्ला और ईसाई निर्भिकता से धर्मातरण किये जा रहे है और सरकार या कोई हिँदु संगठन चुप बैठा देख रहा है संसद मे कभी धर्मातरण पर कोई ठोस कानून या बहस क्यो नही हुई ये शर्मनाक है देश मे बहुसंख्यक हिँदुओ की भावनाऐ संसद के पटल पर नही रखी जाती क्योकी ये हिँदुओ को भारतिय कम हिँसाकरने वाली जाति मानते है और इनका उद्देश हिँदुतत्व का मटिया मेट कर भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना दिखता है और ये सच है क्योकी इन्हे हिँदु संस्कृति की हर बात देश विरोधी लगती है और अल्पसख्यको की सुविधा हेतु कानून बनाना देशहित कार्य लगता है ये दोमुंही नागनाथो को मार डालना ही उचित है क्योकी अंखड भारत हिँदु राष्ट्र का निमार्ण तब ही संभव है जब हर हिँदु राष्ट्रवादी हो और हर राष्ट्रवादी हिँदू ....जय राष्ट्रवाद
शनिवार, 10 दिसंबर 2011
हिँदुतत्व और बाबागीरि का जलवा
इस लेख का उद्देशय आस्था को चोट पँहुचाना नही है और ना ही किसी व्यक्ती पर टिपप्णी फिर भी अगर आपको ठेस लगे तो क्षमा करे....... हिँदू धर्म कि नींव वेदो और ऋषि मुनियो के ज्ञान से उत्पन्न पुराणो और ग्रंथो पर टिकी है लेकिन ये आज के आधुनिक हिँदुतत्व धारी जो अपने को मानवतावादी और सेकुलर वादी कहलाने वाली जमात अंधी हो कर हिँदुतत्व को टटोलने के लिये यहाँ वहाँ प्रेतो की तरह भटकरही है आज खुद को टीका लगा कर हिँदू कहलाने वाले ज्ञान प्राप्ति के लिये बाबाओ की दुकान पर भीड़ लगाये रहते है ये हिँदुतत्व के लिये शर्मनाक बात है अभी कुछ सालो मे बाबाओ के प्रति जो लोगो कि आस्था उमड़ी है अगर रज भर भी पौराणिक और सनातन संस्कृति कि और विचार करते तो आज हिँदूतत्व यूँ अकेला ना पड़ता लेकिन आज तो हम लोगो को बाबागिरी से फुरसत नही है भले हमे गायत्री मंत्र अपने बच्चो को ना सिका पाये लेकिन फँला फँला बाबा के दरबार मे जरूर ले जाते है निर्मल बाबा आशाराम बापू पडोखर सरकार सत्य सांई जैसे क्षदमवेशी अपने को ईशवर कि भाँति प्रसारित कर रहे है इनका धर्म के प्रति कोई उदारता नही है लाखो रूपये का दान लेकर भी ये हिँदूतत्व का कुछ भला नही कर पाये केवल भ्रम ही फैला रहे है लेकिन कुछ बाबा और ट्रस्ट पूरी इमानदारी से हिँदुतत्व और मानवसेवा कर रहे है बाबा रामदेव जैसे योगि से कुछ सीख लेना चाहिये लेकिन ये बात हम अंधभक्तो को नही सुहाती क्योकी बाबा रामदेव धन वृद्धी उपाय या कोई चमत्कार नही दिखाते आज हिँदुत्तव को बाबा नही क्रांति संत चाहीये मेरा उन सभी बाबाओ से जो अपनी दुकान चला रहे है अनुरोध है कृपया आप वेद और सनातन संस्कृति का प्रचार करे तो हिँदुतत्व और समाज का कल्याण हो गा आईये अपनी आखे खोल कर आत्मा की आवाज सुने जो कह रही है तुम हिँदु हो कर्म प्रधान बनो क्यो की कर्म ही जीवन की दिशा और दशा तय करते है कोई बाबा आपका भविष्यतय नही करते.....जय अंखड भारत
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011
आधुनिक भारत नही स्वाबलंबन भारत बनाओ
आधुनिक जीवन शैली मे हम विलासिता के आदी हो गये या यूँ कहे गुलाम हो गये स्वांलबन से आलसी हो गये अब हम कर्म प्रधान न हो कर केवल कर्महीन पशु हो गये घर से लेकर दफ्तर तक एक गिलास पानी के लिये मोहताज हो गये घर मे बूढी माँ से पानी मांगते है और दफ्तर मे चपरासी से अपने कपड़े खुद नही धोते अपने सारे छोटे बड़े काम अर्दलीयो से करबाते है ये क्या हो गया मनुपुत्रो को जो मानवीय गुणो को पश्चित की दमक मे जला बैठा क्या ये वही नर प्रजाति है जो आदिकाल मेँ देवताओ सा श्रेष्ठ था जिसके लिये स्वंम गंगा अवतरित हुई क्या ये वही मानव है जिसको नारायण के श्रीमुख से गीतामृत मिला क्या ये वही मानव है जिसे करूणा और दया के वरदान मिले भारत की पावन भूमि का मानव अब पैशाचिकता पर उतर आया देर तक सोना गरिष्ठ भोजन आत्याधिक भोग विलास माता पिता की अवज्ञा परस्त्री गमन आदि कुकर्म करने वाला मानव अपने को जब भारतीय कहता है तो लगता है वह माँ का चरित्र हनन कर रहा हो आज की यही स्थिती है जो आधुनिकता की च्युंगम चबाये जा रहे है क्या भारत को इन पर भरोसा करना चाहिये आधुनिक कठपुतलो से सनातन संस्कृति की उत्थान की आपेक्षा करना मतलब विष को दूध समझ कर पीना क्योकी आधुनिकता के पुजारीयो मेँ केवल भांड संस्कृति ही जन्म ले सकती है और उनकी नारिया वेश्या और नचनिया जिनके होनहार कपूत सैकड़ो कुरीतियो को अंगीकार करते हुये नर्क के द्वार खटखटा रहे है उन्हे नर्क का रास्ता बताने वाले स्वंम उनके पालक है जो कभी सनातन आर्य थे अपने बच्चो को आप किस दिशा मे ढकेल रहे है आधुनिकता के जंजाल से निकल कर भारतिय संस्कृति को अपनाइये भारत को इंडिया नही अंखड भारत बनाईये अपने आप को स्वाबलबन किजिये क्योकी हम दुसरो के बोझ उठाते है खुद बोझ नही बनते .....जय राष्ट्रवाद
आरक्षण की खीर मत बाँटो
संविधान रचेयता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर द्वारा संविधान मे वर्णित आरक्षण नीती का उद्देश उन दबे कुचले दलित समाज के उत्थान के लिये था ना कि आरक्षण को खीर बाँटना लेकिन राजनेताओ न आरक्षण को वोट तक पहुँचने की सीढी मान लिया ये भारत के लिये शर्मसार करने वाली बात है क्योकी आरक्षण का लाभ अब भी दलितो की झोली मे नही है अभी भी दलित नरकीय और अशिक्षा के अंधेरो मे भटक रहे है आज भी दलितो के बच्चे न शिक्षा पा रहे है और ना रोजगार न बीपीएल कार्ड है और न जाति का प्रमाण ऐसे मे इनके लिये आरक्षण ढोपर शंख है लेकिन सरकार अंधी हो गई है अभी यूपी मे मायावती ने मुस्लिमो को आरक्षण की बात कही और केन्द्रिय मंत्रि सलमान खुर्शीद भी मुस्लिम के आरक्षण के पक्ष मे बयान दे रहे है एक वर्ग के प्रति आस्था दिखाने का मतलब साफ है पिछड़ी दलित अदिवासी या फिर कोई गैर हिँदू गरीब से उँचा मुस्लिम समाज है और कोई नही ये मुस्लिम तुष्टिकरण का संकेत है जो कांग्रेस राजनीति युद्ध मे ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल करती है और हिँदूतत्व की भावनाऐ आहत करती है और जब गुर्जर आंदोलन की बात आती है तो उसे दबा दिया जाता है यहाँ तक की बरसो से 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल संसद मे लंबित है ये बाते उठाना शायद मूर्खता पूर्ण लगती है कांग्रेस राज मे आज भारत मे आरक्षण उस खीर की तरह हो गई है बाँट दो भले ही फीकि क्यो ना हो भारत मे अब आरक्षण नीति मे भारी फेरबदल की अवशयकता है जाति गत और धार्मिक आरक्षण देश की अंखडता को चकनाचूर कर सकती है अगर आरक्षण देना ही है तो उसे मिलना चाहिये जिसे आवशयक हो चाहे दलित हो या ब्रहामण क्योकी देश को आरक्षण मे रंगे धूर्त सियार नही बल्कि सफेद हंस चाहिये जो भारत को विश्व मे पहचान दे सके...जय भारत जय राष्ट्रवाद
बुधवार, 7 दिसंबर 2011
फेसबुक खतरनाक या दिग्गी
लोकतंत्र को अपना बाप कहने वाले नेता खुद लोकतंत्र पर तमाचा जड़ रहे है लिखने की स्वतंत्रा पर लगाम लगाने कि कवायद शुरू की जा रही है मीडिया को गुलाम बना ही चुके है अब सामाजिक नेटवर्क पर जो इनकी पोल पट्टी खोल रहे है उनकी बारी है कपिल सिब्बल को राजनेताओ के सड़े फेस की चिँता नही है चिँता तो फेसबुक पर उन पोस्ट की है जिसमे सिर्फ इमानदारी है मीडिया की चापलूसता नही है फेसबुक पर जो भी लिखा जाता है वो भड़ास है उस वयवस्था पर जो मन मे पीड़ा भर देती है भले कुछ मनचलो के लिये फेसबुक प्रेम का अड्डा हो लेकिन बुद्धिजीवियो की भी कमी नही है बस ये आपकी इच्छा है आप फेसबुक का किस तरह उपयोग करेगे फेसबुक मंच पर हम बेझिझक वो बात कह देते है जो हमारे मन मे दबी होती है हमारी बात मे कितनी सार्थकता है ये पंसद और टिपप्णी के जरिये तुंरत पता चल जाती है लेकिन ये बात कपिल सिब्बल को खटक रही है की सारे के सारे कांग्रेस राहुल और सोनिया की छिछालेदार कर रहे है और हम तमाशा देख रहै है शायद यही सोच कर कपिल सिब्बल ने ये कदम उठाया होगा लेकिन शायद कपिल भूल गये दिगविजय जैसा घाघ आदमी के कंमेट के सामने हम फेसबुकिये छोटे है लेकिन पढे लिखे कपिल जानते है देखन मे छोटे लगे घांव कर गंभीर इस कारण फेसबुक पर लगाम लगाने की तैयारी कर ली अब मुद्दा फेसबुक बन गया मंहगाई जाय भाड़ मे कालाधन जाय चूल्हे मे लोकपाल बहाओ गटर मे संसद तो तुम्हारी बपौति है कांग्रेस बेवजह नये नये विवाद जन्म देकर मूल मुद्दो को ध्यान से हटाने का प्रयास कर रही है फेसबुक के पीछे पड़ने से अच्छा है दिगविजय को कंट्रोल करो क्यो की फेसबुक से ज्यादा वो घातक है
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