अभिनव भारत के महान क्रांतिकार
हिँदुतत्व के उजियारे महात्मा वीर
दामोदर विनायक सावरक के अतुल्य
बलिदान को सेकुलर भले याद न रखे
लेकिन अंखड भारत हिँदू राष्ट्र
प्रेमि सदा प्रयत्नशील रहेगे .....वीर
सावरकर अमर रहे हिँदुतत्व विचारक
को उनकी जन्म तिथी पर मेरा शत शत
नमन —
रविवार, 27 मई 2012
शनिवार, 19 मई 2012
महात्मा गोड़से जंयती
महान हिँदुतत्व वादी भारत माता के सपूत राष्ट्रवादी महात्मा नाथूराम विनायक गोड़से के अवतरण दिवस पर ये शपथ ले की अंखड भारत के निमार्ण हेतु हम संकल्पित हो और जिस इतिहास ने गोड़से वादी विचार धारा का कभी विस्तार न होने दिया उस विचार धारा को नई पीढी मेँ इतना कूट कूट कर भर दे की उनमे हिँदुतत्व का ऐसा प्रचंड विस्फोट हो जो सेकुलरी इमारत को चकना चूर कर दे और अंखड भारत निमार्ण के लिये सामने आये ..अब सोने का वक्त नही है खुद जागो और अपने अंदर सोये हिँदुतत्व को जगाओ....वंदेमातरम
सोमवार, 14 मई 2012
जातिवाद की बदलो परिभाषा
भारत भूमि मे जातिवाद की भूमि सिर्फ बंजर है जिस पर केवल कुरितियो की खरपतवार उगा करती है जिसे पानी देने का काम जातिगत राजनिती करती है बसपा सपा गोगपा मुस्लिम लीग दलित पेँथर सर्वण समाज पार्टी ऐसे कई जाति आधारित राजनैतिक मंच है जो भारत मे अपनी जाति की उपेक्षा का ढोल बजाते हुये अपना उल्लू सीधा करते है और लोकतंत्र को जातितंत्र मे बदलकर रख दिया है तब क्या ऐसे मे भारत को विश्वगुरू बनना संभव है भारत मे अंखड भारत की नीँव रखी जा सकती है अगर भारत को अपने सर्वण युग की और पुन: अग्रसर करना है तो हमे पहले कट्टर भारतीय बनना होगा ब्राहमणवाद क्षत्रियवाद वैश्यवाद दलित वाद अंल्पसंखयकवाद की परिभाषा बदलनी होगी भारत मेँ ब्राहमण वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ ब्राहमण ऐसा भी हो जो चाणक्य जैसी दूरदर्शता का पारखी है भारत मेँ क्षत्रिय वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ क्षत्रिय राणा प्रताप ऐसा भी हो जो मातृभूमि का स्वाभिमान कभी लुटने न दे भारत मे वैश्य वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ वैश्य जो मातृभूमि के लिये अपना सर्वत्र धन लुटा सके भारत मे दलित वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ दलित होना चाहिये जो आरक्षण की बैसाखी पर न टिका हो भारत मे अल्पसंख्यक वाद नही होना चाहिये लेकिन एक श्रेष्ठ अल्पसंख्यक ऐसा भी हो जो वंदेमारम जय घोष को धर्म विरोधी न मानता हो....जरा सोचिये विचार किजीये....जय माँ भारती
मंगलवार, 8 मई 2012
आखिर कब तक भारत विकासशील कि कतार मे खड़ा रहेगा
भारत की सपंन्नता की चकाचौध से सारा विश्र्व ईष्या करता है अगर इतिहास के पन्ने पलट कर मनन करे तो हम ये सोचने को मजबूर हो जायेगे की भारत के तथाकथित डालर प्रेमी अंग्रेजो के चाटुकार भ्रष्ट राजनीति पनारे के कृमि भारत को विकासशील देशो की पंक्ति मे क्यो खड़ा कर अपनी संपन्नता को धुंधला कर रहे है आखिर भारत विकासशील
देशो की कतार मे कब तक
खड़ा रहेगा क्या नही है मेरे देश मेँ
श्रम शक्ति अपार खनिज
संपदा की भरमार प्राकृतित
संपदा अपार गंगा यमुना की शीतल
जल धाराये संदृण हमारी सेनाये
सोना उगलती वंसुधरा वेदो का उच्चतम
ज्ञान पृथ्वी अग्नि जैसे आयुध चरक ओर सुश्रत का चिकित्सा विज्ञान आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ और सबसे
खास बात हम भारतीयो मे अपने देश के
स्वाभिमान को बचाने के लिये मर
मिटने
का संकल्प...क्या इतना काफी नही एक
विकसित राष्ट्र के लिये भारत की वो संपन्नता कहाँ गई जिसके सम्मोहन मे संमदर पार से सिँकदर, मुगल साम्राज्य और 300 साल से भी अधिक भारतीय संपदा का दोहन करने वाले डच पुर्तगाल फ्रांसिसी और ब्रिटिश भारत का तन मन धन लूटते रहे लेकिन भारत की संपन्नता मे फिर भी कमी न आई लेकिन अंग्रेजो की शिक्षा व्यवहार और संस्कृति भारतीयो को लाचर जरूर बना गई और ये लाचारी ही भारत की दुर्दशा का मुख्य कारण है भले 15 अगस्त 1947 को देश की सत्ता का हंस्तातरण कर के चले गये किँतु भारत को मानसिक गुलाम बना कर छोड़ गये और भारत सिर्फ एक कोरा कागज बन गया जिस पर जैसा चाहो लिख डालो भारत की संपन्नता अभी भी उतनी ही है जो पहले थी बस उसको सहेजने और सदुपयोग की आवशकता है भारत को विकसित भले न हम बना पाये किँतु भ्रष्टाचार कुपोषण जातिवाद प्राँतवाद सामाजिक बुराईया अशिक्षा सेकुलरवाद नक्सलवाद आंतकवाद जैसी राक्षसी प्रवृत्ति को मिटाने का कारगार उपाय करेगे तो भारत का विकास पथ खुद ही बन जायेगा...सड़को पर चिल्लाने या संसद मे हंगामा करने से विकसित नही हो सकते अगर देश और समाज यृँ ही निद्राग्रस्त रहा तो मुमकिन हो कोई सिँकदर या मुगल या अंग्रेज भारत पर आंखे गड़ाये बैठा है....वंदे मातरम
देशो की कतार मे कब तक
खड़ा रहेगा क्या नही है मेरे देश मेँ
श्रम शक्ति अपार खनिज
संपदा की भरमार प्राकृतित
संपदा अपार गंगा यमुना की शीतल
जल धाराये संदृण हमारी सेनाये
सोना उगलती वंसुधरा वेदो का उच्चतम
ज्ञान पृथ्वी अग्नि जैसे आयुध चरक ओर सुश्रत का चिकित्सा विज्ञान आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ और सबसे
खास बात हम भारतीयो मे अपने देश के
स्वाभिमान को बचाने के लिये मर
मिटने
का संकल्प...क्या इतना काफी नही एक
विकसित राष्ट्र के लिये भारत की वो संपन्नता कहाँ गई जिसके सम्मोहन मे संमदर पार से सिँकदर, मुगल साम्राज्य और 300 साल से भी अधिक भारतीय संपदा का दोहन करने वाले डच पुर्तगाल फ्रांसिसी और ब्रिटिश भारत का तन मन धन लूटते रहे लेकिन भारत की संपन्नता मे फिर भी कमी न आई लेकिन अंग्रेजो की शिक्षा व्यवहार और संस्कृति भारतीयो को लाचर जरूर बना गई और ये लाचारी ही भारत की दुर्दशा का मुख्य कारण है भले 15 अगस्त 1947 को देश की सत्ता का हंस्तातरण कर के चले गये किँतु भारत को मानसिक गुलाम बना कर छोड़ गये और भारत सिर्फ एक कोरा कागज बन गया जिस पर जैसा चाहो लिख डालो भारत की संपन्नता अभी भी उतनी ही है जो पहले थी बस उसको सहेजने और सदुपयोग की आवशकता है भारत को विकसित भले न हम बना पाये किँतु भ्रष्टाचार कुपोषण जातिवाद प्राँतवाद सामाजिक बुराईया अशिक्षा सेकुलरवाद नक्सलवाद आंतकवाद जैसी राक्षसी प्रवृत्ति को मिटाने का कारगार उपाय करेगे तो भारत का विकास पथ खुद ही बन जायेगा...सड़को पर चिल्लाने या संसद मे हंगामा करने से विकसित नही हो सकते अगर देश और समाज यृँ ही निद्राग्रस्त रहा तो मुमकिन हो कोई सिँकदर या मुगल या अंग्रेज भारत पर आंखे गड़ाये बैठा है....वंदे मातरम
सोमवार, 7 मई 2012
राष्ट्र धर्म और संस्कृति
राष्ट्रवाद का जन्म धर्म और संस्कृति के मिलन से होता है इसका एक अर्थ यह भी कह सकते है राष्ट्र अगर शरीर है तो धर्म उसकी आत्मा और संस्कृति उस्की वेँ तंत्रिकाये है जो संचालित करती है राष्ट्र धर्म और संस्कृति का समभाव ही किसी भी राष्ट् की उन्नती और विकास की नीँव है किँतु सेकुलरवाद इस सिँद्धात को नकारता है क्योकी सेकुलर धर्म विहिन और संस्कृति मे विकृति पैदा कर के राष्ट्रवाद का मिथ्या रूप बना कर प्रस्तुत करते है और राष्ट्र धर्म ओर संस्कृति को खंडित करते रहते है ताकि सत्ता को अपनी मुठ्ठी मेँ जकड़ कर रख सके आजादी के उपरांत सेकुलरवादियो एंव कम्नुयटो के कुचक्र ने राष्ट धर्म और संस्कृति को विँकलाग कर रखा है जब राष्ट धर्म और संस्कृति का ये हाल होगा तो जनक्रांति कैसे संभव होगी क्योकी जनमानस के पटल पर राष्ट्र धर्म और संस्कृति कि परिभाषाये भिन्न भिन्न लिख डाली है इंडिया इंडिया चिल्लाने वाला भला भारतीय धर्म और संस्कृति को क्या जानेगा जिनक रोम रोम मे रोम बसा हो वो राम को क्या जानेगा जब राम को नही जानेगा तो राम राज्य कैसे होगा जब राम को नही जानेगा तो बुराइयो का संहार कैसे होगा जब राम को नही जानेगा तो फिर समाज मे समता का भाव कैसे आयेगा राम को धर्म की रीढ कहना सर्वथा उचित है और धर्म की मजबूती राष्ट्र की मजबूती है और अगर राष्ट मजबूत होगा तो कोई भी पर संस्कृति और मैकालेवाद हमारी संस्कृति पर वज्रपात नही कर सकती जो अपने राष्ट्र संस्कृति को अपनी संपत्ती की तरह रखते है उसका अवमूल्यन नही होने देते वे कभी राष्ट्रद्रोही नही बनते चाहे वो किसी भी पंथ का अनुसरण करते हो भारत मे श्री एपीजे कलाम जैसा वयक्तितव एक ठोस उदाहरण है जो राष्ट्र धर्म और संस्कृति मे पूर्णता आस्था रखते है जो सेकुलवादियो के मुँह पर तमाचा हैँ....जय माँ भारती
सदस्यता लें
संदेश (Atom)