सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
शनिवार, 18 फ़रवरी 2012
दम तोड़ती अखाड़ा संस्कृति
आधुनिक भारत जो पश्चिम की लाठी पकड़े अपनी संस्कृति का तिरस्कार करते हुये भाग रहा है उन कथित छद्मरूपी अंधेरो की और जो विकास का दिया भर टिमटिमा रहे है या यू कहे मानव को मशीनी मानव बनाने पर तुले है और हम अपना शरीर मशीनो की भेट चढा कर अपने को बलवान समझ रहे है कभी कुशती और पहलवानी आला दर्जे की कला समझी जाती थी लेकिन आज कुशती एक खेल और कमाऊ साधन बन गया है आज कसरती बदन नही सिक्स पैक बना करते है दंड पेलुओ की घोर कमी है भारत मे लाल मिट्टी का अखाड़ा और व्यायाम शालाऐ ध्वस्त है और जिम रूपी मशीनी दानव पैसा और शरीर दोनो खा रहे है कभी अखाड़े के पठ्ठे लगोँट धारी हुआ करते थे और पूर्ण ब्रहमचारी लेकिन अब जिम मे वजन ढोते ट्रेक सूट पहने हम्माल नजर आते है और शरीर बनाने के साथ बेहया और बदचलन भी बन जाते है अखाड़ा संस्कृती को मिटाकर हमने अपना हित नही सर्वनाश कर लिया क्योकी अखाड़ा संस्कृति के कारण ही हिँदु संगठित और संस्कारवान होता था और अखाड़ा संस्कृति को मिटाने वाले वे सेकुलर है जिँनहोने अखाड़ा और व्यायाम शालाओ को धर्म के साथ जोड़ा लेकिन अखाड़े को संस्कृति का दर्जा नही मिला और सरकार की उदासीनता की भेट अखाड़े चढते गये अब केवल चुँनिदा बचे है अगर हम अब भी यू ही अपनी संस्कूति से भागते रहे तो एक दिन हिँदुतत्व भी मिट जायेगा
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012
मैँ ऐसा क्यो हो गया
मैँ भारत की संस्कृती को तुच्छ समझता हु क्योकी मेरी भारतीय आत्मा मर चुकी है और अब मेरे शरीर मे पश्चिम का पिशाच प्रवेश कर चुका है मेरी माँ अब मोम हो चुकी है मेरे पिता चलते फिरते मृत(डैड) हो चुके है मेरी जुबान से हिन्दी फिसल चुकी है और मे कटुक और भद्दी भाषा इंगरेजी का गुलाम बन चुका हुँ माता पिता को प्रणाम नही करता हुँ क्योकी माय सेल्फ मे विश्वास रखता हुँ सुबह देर तक सोना रात को जगना ही मेरी आदत है योग व्ययाम ये मूर्खो के काम मानता हुँ मैँ जिम और ट्रेक सूट धारण करने मे विश्वास रखता हुँ मैँ त्यौहार कम डे ज्यादा मनाता हुँ और गर्लफ्रेँड बना कर धन बल और समय गवाता हुँ मुझको प्रेम की परिभाषा नही पता मै पढ लिख कर किसी अंग्रेज की गुलामी करना चहाता हु यही मेरा लक्ष्य है क्यो की भारतीय संस्कति पश्चिम के सामने बौनी लगती है मै इतना हरामखोर हूँ की मै अपने संस्कारो को जला कर हाथ ताप लेता हु ये सब देख कर मेरे आधुनिक मित्र मेरी बहुत इज्जत करते है और मुझे हाई क्लास की पदवी देते है और मुझे शराब जुआ और व्याभिचार के र्स्वग(नर्क) मे ढकेलते है और खुद भी गिरते है यही मेरी दिनचर्या है लेकिन मैँ कभी कभी ये सोच कर रो लेता हुँ आखिर मुझ मे ये दुगुर्ण देने वाला कौन है किसने मेरी भारतीय आत्मा को मार दिया अंग्रेजो को तो खदेड़ दिया था लेकिन उनकी परछाई(संस्कृति) को न खदेड़ सके अगर ये विषैली पश्चिमी संस्कृति यूँ ही हम युवाओ के सिर पर सवार होती रही तो एक दिन भारत इंडिया बन जायेगा और मैँ गुलाम
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