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रविवार, 30 अक्टूबर 2011

गोड़से गांधी और गुलाम मानसिकता


आइये हम अपनी आंखो पर चढे सेकुलरवादी चशमे की जरा धूल साफ करे और यह देखे गांधी गोड़से से बड़े कैसे हो गये जब्की गांधी ने तो हमेशा ये कहा पिटते रहो अपने अधिकारो कि भीख माँगते रहो स्वाभिमान और अनुशासन का पाठ तो एक स्वंयसेवक ही पढा सकता है कोई राजनैतिक ठग( गांधी) नही लेकिन ये हमारी अंधता थी जिसने गोड़से जी को इतिहास को बदरंगी स्हाई से ऐसा लिखा की इतिहास पुरूष कि जगह प्रथम आंतकवादी का तमगा मिला और गांधी को महात्मा का एक ऐसा महात्मा जो सेकुलरी पर्दे की ओट कर हिँदुत्तव और अंखड भारत विचार धारा की जड़े खोद रहा था ओर मुस्लिम तुष्टीकरण का पौधा रौप रहा था जिसके छाँव तले नेहरू खानदान की रोटी चलती रहै गोड़से जी काग्रेस का अनुभव कर चुके थे और गांधीवाद का सम्मोहन तोड़ चुके थे इसलिये गोड़से जी द्वारा गांधी कि हत्या एक अभिशाप नही वरदान था भारत के लिये पहला ये कि भारत को तोड़ने की किमत सिर्फ मौत है चाहे राष्ट्रपिता ही क्यो ना हो दूसरा मुस्लिम को एहसास हो जाये अंखड भारत का मिशन जारी है लेकिन उस जमाने के इतिहास कारो और पत्रकारो ने संघ को कमजोर कड़ी माना और संघ पर ज्यादा टीका टिप्पणी नही की कांग्रेस को इतना महिमामंडित किया गया की गरीब आदमी कि दोनो आंखो मे कांग्रेस और गांधी के सिवाय कुछ दिखता नही था तो अंखड भारत क्या समझता उसी प्रकार गोड़से जी की जीवनी कार्य एंव हिँदुत्तव इतिहास कारो ने दबा दिया और वो लिखा जो सेकुलर चहाते थे और स्थिति ये है अब गोड़से आंतकवादी ओर गांधी हीरो आज का युवा यही समझता है अंखड भारत क्या है इसका अर्थ भी इनको मालूम ना होगा अब गोड़सेवादी पाठ्यक्रम लाना ही होगा अपने मन मे दबे हिँदुत्तव को जगाना होगा

गुरुवार, 27 अक्टूबर 2011

ये कैसा मेरा भारत महान

मेरा भारत महान ये सच है लेकिन सिर्फ मन
कि भावनाओ मे यथार्थ धुंधला और बदसूरत
है ये समाज भी जानता है और
समाजवादी भी समाज
को रोटी कि चिँता है
समाजवादी को रोटी छिनने की और ये
समाजवादी कुनबा और कोई नही लोकतंत्र
का जना सपूत है जो कपूतता पर उतर
आया और कानून प्रशासन को घर की रखैल
बना कर रख लिये सीधे शब्दो मे बेटा बाप
को बेटा कहने लगा और बाप आंदोलन
की लाठी से धमकाने की कोशिश मे खुद
पिटने लगा ये मेरा भारत है जहाँ गरीब
कानून के जूते से डरता है लेकिन यही कानून
सफेदपोश नेताजी के जूते भी साफ करता है
कभी दूध की नदियाँ उफान पर
होती थी पर अब सिर्फ कुपोषण के दलदल
ही है जिसमे गरीबो के दुँधमुहे बच्चे
ही गिरा करते है कोठीयो के लाट साहब
नही एम्स जैसे अस्पताल भले आई एस ओ
प्रमाण पत्र धारी हो लेकिन गरीबो के
लिये मुर्दाघर ही है(वी सी राय केस )
लेकिन नेता समाज के लिये एक आरामदायक
जगह क्या ये वही सोने कि चिड़िया है
जहाँ दिन भर कंधे पर मिट्टी ढोने के बाद
सिर्फ रोटी ही मिलती है
बच्चो का भविष्य नही मिलेगा भी कैसे
फामूर्ला वन रेस जैसे पूँजीपतीयो
की जी हूजूरी आयोजन करने वालो को इनसे
क्या वास्ता मूलभूत सुविधाये टेढी खीर है
ये आम आदमी समझ चुका है ओर चुप चाप सहन
कर तमाशा देख रहा है फिर चुनाव
आयेगा और मत डाल आयेगा और
सो जायेगा यही नियति है मेरे भारत
महान की

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

आओ यूँ दीपावली मनाये

आओ दीपावली मनाये और उस तिमिर का सर्वनाश करे जो देश को अंधेरो मे धकेल कर अपना अधिकार जमाने कि कोशिश मे लगे है आज इतना प्रकाश कर दे आंतकवाद नक्सलवाद जातिवाद नस्लवाद अपनी परछाई तक ना पहचान पाये आओ ऐसी दीवाली मनाऐ आओ दरिद्रनारायण को भी याद करे और उसके घर का पता हम लक्ष्मी को बताये जो हमारी तिजोरियो मे बंद है ताकि वो भी विदुयत की लड़िया भले ना सजा सके किँतु एक दिया तो जला सके हम बेशक पकवानो का भोग ले लेकिन उसे भी दीपावली पर दो जून कि रोटी के लिये सघर्ष ना करना पड़े आओ ऐसी दीवाली मनाये आंतकवाद को जड़ से उखाड़ फेंके नक्सलवाद का सर फोड़ दे जातिवाद को फाँसी पर चढा दे मंहगाई का गला घोँट दे राजनैतिक लुटेरो की वैभवता लूट ले ओर आपसी वैमनस्य कि होली जला दे आओ ऐसी दिवाली मनाये अंधेरे जहाँ दम तोड़ दे अभिमान अपना रूप छोड़ दे आओ ऐसी दीवाली मनाये हर घर पर भगवा पताका हो सनातन धर्म का आश्रय हो युवाओ मे संस्कार हो अंखड भारत का संकल्प हो आओ ऐसी दीवाली मनाये हर तरफ प्रकाश हो रास हो उल्हास हो जंयचदो का सर्वनाश हो राम राज्य का राज हो सुरक्षित और संपन्न समाज हो आओ ऐसी दिवाली मनाये अमावस्य हो भले आत्मा प्रकाशमान हो आओ ऐसी दीवाली मनाये .....इति श्री..,... किशना जी एंव मैँ देश द्रोही ब्लाग की और से आप सभी इष्ट मित्रो एंव परिवार जनो कुंटुब को दीपपर्व की कोटि कोटि शुभकामानायेँ आपका जीवन निँरतर सूर्य सा प्रकाशित हो .......जय राष्ट्रवाद

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

हिँदुत्तव विकृति दूर करो

विकृति कैसी भी हो बुरी ही लगती है चाहै वयक्ति सर्वगुण संपन्न ही क्यो ना हो अगर उसमे शारिरिक या मानसिक विकृति आ गई तो दूसरे के मन मे उसके गुण नही विकृति दोष ही नजर आयेगे लेकिन उस विकृति के निवारण की जिम्मेदारी किसकी है उस वयक्ति की जिस मे वो विकृति है या उस समाज की जो उससे सहानुभूति भर रखता है ये प्रशन आपके और मेरे लिये नही है वरन आज की हिँदुत्तव के लिये है जिसे हिँदू समाज ने विकृत कर दिया और ये विकृति कई वर्षो से चमगादड़ कि तरह चिपकी हिँदुत्तव का खून चूस रही है वर्षो से अंधविश्रवास जातिप्रथा वैश्णव शैव एंव धार्मिकता पर ब्राहमणो का एकाधिकार वेदो को बांध कर रखना और एक दूसरे मे अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने जैसी भयावाह विकृतिया अब भी हिँदुत्तव पर कब्जा किये है और हिँदू एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने मे ही लगा है और यही कारण है हिँदुत्तव पर सेकुलरवादी हावी हो रहे है आज भी अंधिकाश हिँदू वेदो के नाम ही जानता है धर्मग्रंथो को खंगालना कोई नही चहाता जातिवाद की खाई जिसके एक और दलित खड़ा है अदिवासी खड़ा है और दूसरी और खुद को र्स्वण कहने वाले जो उन्हे अपनी ओर बुलाने मेँ हिचक रहे है तो दूसरी और मिशनरी और इस्लाम के नुंमाइदे करूणा का अमृत समान जहर बाँट रहे है और हम हंस रहे अंधविश्रवास की पट्टी बाँध कर धर्म की खिल्ली उड़ा कर इन धर्मपरिर्वतन कारियो का मनोबल बढा रहे है अगर आप हिँदुत्तव विकृति को दूर करना चहाते है तो पहले सनातन संस्कृति को अंगीकार करना होगा सनातन धर्म ही हिँदुत्तव का मूलाधार है और हर एक के जीवन का आधार भी यही बने तब ही हिँदुत्तव की विकृति दूर होगी और अंखड भारत का निमार्ण होगा जय राष्ट्रवाद जय सनातन धर्म

मंगलवार, 18 अक्टूबर 2011

लोकतंत्र का मत हथियार

भारत लोकतांत्रिक देश है जहा मत एक हथियार है जिसके सहारे हि राजनैतिक युद्ध मे विजय पाई जा सकती है और ये हथियार छुप कर ही आघात करता है कौन कटेगा ये मत का अधिकार वाला भी नही जानता बस चला भर देता है अब किसका ठिकरा फूटे ये किसे सत्ता सुंदरी का सुख उसके कर्मो और दंबगता तय करती है मत हथियार अचूक और पीड़ादाई है और अंधा भी जो रंक को भी राजा बना देता है लेकिन अब मत को आप हथियार नही कह सकते इसे मजबूरी कहे तो ठीक होगा क्योकी ये अब गांधी छाप नोटो की हवा से बहक जाता है सस्ती दारू मे घुलनशील है संसद के दलालो की कठपुतली बन जाता है लोकतंत्र का छिनालापन हर कोई देखता है ओर मुँह फेर कर सो जाता है मँहगाई के जमाने मे मत आम जरूरत की चीजो से सस्ता है हर गरीब के पास मिलता है फर्जी भी मिलता है सस्ता भी मिलता है बशर्ते लुभावने वादे होना चाहिये मत एक बार ही पड़ता है लेकिन दंश पाँच साल सहना पड़ता है पाँच साल मे कितने ही मतो की फसल तैयार हो जाती है अगर पुरानो ने मत नही दिया तो क्या नये लौँडे तो बहक ही जायेगे ओर फिर पाँच साल देश को खायेगे तुम जियो या मरो हम तो अपनी तोँद बढायेगे तुम्हारे बच्चे कुपोषण से मरे हमारे बच्चे तो पिज्जा ही खायेगे आप साल दर साल यूँ ही मत डालते जायेगे और हम भरोसा तोड़ते जायेगे- जय राष्ट्रवाद

हिँदू संगठनो का संकीर्ण दायरा

संकीर्ण दायरो मे हिँदू संगठन - भारत आदिकाल से सनातन संस्कृति और आर्यो की भूमि रही है आज जिन्हे हिँदू कहते है वे आर्य ही है जो वेद वाक्य और आस्था को सर्वोपरि मानते है लेकिन जब जब आर्यभूमी पर विदेशी हमलावर और उनकी संस्कृति ने धावा बोला तब तब सनातन धर्म खंडित हुआ और नये पंथ का विकास और हिँदू बंट गये चाण्क्य ने अंखड भारत का जो स्वपन देखा वो पूरा भी हुआ लेकिन फिर भी विदेशी संस्कृति के आक्रमण नही रूके उस समय के हिँदू और आज के हिँदू मे आज भी समानता है तब भी सोया था अब भी सोया है यूँ तो भारत मे कई हिँदु संगठन मौजूद है लेकिन कई हिँदुऔ की आंख कि किरकिरी बने है ऐसा क्यो इस पर कोई विचार नही करता इसका मुख्य कारण है हिँदू संगठनो का संकीर्ण होना हिँदू संगठन ज्यादातर राम जन्म भूमि अंखड भारत वेलेनटाईन डे का विरोध तक ही सीमित रह गया है संघ तो अपनी पूरी शक्ति के साथ सामाजिक कार्य एंव देश कार्य मे पूरी तरह इमानदार होने वावजूद आज भी हाई सोसाईटी के बुद्धी जीवी अपने बच्चो को संघ से दूर रखते है ओर ना कोई आज किसी को बंजरगी बनना है ना शिव सैनिक ये स्थति पैदा किसने की ये हमारे सामने प्रशन है और इसका उत्तर है चेतना अब हिँदू संगठनो को अपना कार्यक्षेत्र विस्तृत करना होगा और हिँदुतत्व की बुनियादी बाते हर हिँदू परिवार को समझानी होगी वेद एंव सनातन संस्कृति को समाज मे स्थापित करना होगा इसके लिये हर हिँदू संगठन हर साप्ताह सार्वजनिक रूप से हिँदू संस्कृति पर व्याखयान और संगठन का उद्देश और कार्य शैली सरलता से समझाये और युवाओ से जुड़ने को प्रोत्साहित करे और जो लोग हिँदू संगठनो मे राजनीति प्रयोग के लिये शामिल होते है उनको सदमार्ग पर लाये आज अगर हिँदू संगठन अपना जनाधार नही बढायेगे तो अंखड भारत का निमार्ण कैसे होगा आइये हम एक अंखड भारत के निमार्ण के लिये संकल्प बद्ध हो जर राष्ट्रवाद

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

अब कोई प्रंशात भूषण ना बने

आज कुछ कड़वा लिँखूगा हो सकता है लोग मुझे फासीवादी कहे लेकिन फिर भी लिँखूगा क्यो की लिखने कि आजादी मिलि है मैँ आज सेकुलरी रंगे सियारो पर शब्दो के तीर चलाउगा कल एक देशभक्त ने एक देश द्रोही को पीटा मीडिया और कुछ राजनीति के दल्लो को बैठे ठाले अपने को समाजवादी चोला पहन कर गांधीवाद का प्रचार करने का मौका मिल गया मुझे लगता है कशमीर को भारत नही मानते सेकुलरवादी जब प्रँशात भूषण ने कशमीर पर बयान दिया तो ना मीडिया ने उसे गलत कहा और ना ही कोई राजनैतिक विचार धारा ने विरोध किया और ना हिँ अन्ना के अंध भक्तो न कुल मिला कर ये क्या माने क्योकि मौन का अर्थ मन से स्वीकृति ही होती है मैँ फेसबुक पर जुड़े एक साल भी नही हुआ लेकिन मैँने इस मंच पर जो देशभक्ति देखी वो असल मे वो गुबार है युवाओ का जो भारत के देशद्रोही पर फूट पढता है कल प्रंशात भूषण को पीटने वाले तेजेन्दर बगघा विष्णु गुप्ता एक राम सेना के कार्यकर्ता थे और फेसबुक पर भी काफी सक्रिय और क्राँतिकार विचार रखते है उन्हे गुंडा कहना देशभक्ति का अपमान करना है क्यो की प्रंशात जी का बयान अल्पसंख्यको खुशी देने वाला थे क्यो की अन्ना टीम को अल्पसख्यको का हमदर्द बनना है लेकिन किसी ने भी प्रँशात जी का विरोध नही किया ओर परिणाम आपके सामने है अब कोई भी ऐसा बयान देने से पहले विचार करेगा

सोमवार, 10 अक्टूबर 2011


आंख नम है उस शख्स के लिये जिसे गजल जहाँ का सूरज कहना गलत ना होगा और ये याद आया चिट्ठि ना कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गये एक दर्द मे मिठास घोलने की कला जगजीत जी की आवाज मे बखूबी थी एक और उनकी गजल ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी लेलो भले छीन लो मुझसे मेरी मगर मुझको लौटा दो वो कागज कि कशति वो बारिष का पानी इस गीत मे जब इनके सुर पड़े तो ये जीँवत हो उठा और हर एक को अपना बचपन याद आ गया जँहा फिल्म लाइन दिखावटी समझी जाती रही है वहाँ इस शख्स ने यथार्थ गढ दिया और देश ही नही अपितु विदेशियो को भी भारतिय संगीत का गुलाम बना दिया ये कभी भुलाया ना जायेगा उस गीत की तरह होँठो से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो क्या हिँदू क्या मुसलमान क्या सिख क्या धर्म सबको सम्मान ही दिया हे राम भी गाया और सतनाम श्री वाहे गुरू भी और तो और उसने वो बात भी कही जो उसकी देशभक्ति उजागर करती है जगजीत जी ने एक बार कहा था पाकिस्तानी गायको को भारत नही आना चाहीये लेकिन दरियादिली भी क्या खूब आड़े वक्त मे भी गजलकारो का साथ दिया ऐसे दरियादिल गजल सम्राट को मेरा कोटी कोटी नमन आशा करता हु विधाता से अगला जन्म भी भारत भूमि पर ही हो देश को इंतेजार रहेगा अलविदा संगीत के सूर्य

शनिवार, 8 अक्टूबर 2011

हम आर्यवीर


लिये पताका भगवा रंग की आर्यवीर हम आये है भारत माँ सोये सपूतो तुम्हे जगाने आये है सोये मन मे वीर शिवा और राणा प्रताप अगड़ाइ ले ऐसा रण रच डालो देशद्रोही दुहाइ दे ये पथ पथरीला और कंट से पटा हुआ रौँद डालो जयचंदो का सिर जिनकी करनी से शीश हिँदुतत्व का झुका हुआ खंड खंड ना हो पाये भारत अंखड दीप ही जलता रहे माँ भारती की गोदी मे सदा सदभाव पलता रहे तेज करो तलवारे अपनी पर सिर अपनो का ना कटने पाये आंख उठे जिसकी देश धर्म पे जिवित वो ना बच पाये सत्य अंहिसा हो मन मे तन से तेजोमय बने रहो हो संस्काय सनातन वाले ना धर्म की कभी अवज्ञा हो राष्ट्र सर्व है हिँदुत्तव सर्वत्र यही कामना करता चल पंथ नही हिँदुत्तव देश का जीवन पद्धति ऐसा सबको बतलाता चल सेकुलर के नाग विषैले जब जहर समाज मे घोले हिँदु को आंतकी कहते आओ इनका सिर तोड़े अब तो जीवन अर्पण कर दो हे समय की माँग यही भारत के झंडे तले फिर सिँधु बहे

सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

मैँ निकला हूँ

आज जिँदगी को जानने निकला हुँ आज मैँ को पहचानने निकला है अनुभवो का आइना साथ लिया है लोगो को आज यथार्थ दिखाने निकला हुँ पाप मेरे पुण्य मेरे बोझ बन गये कर्म और धर्म साथ मेरे हो गये तकदीर को फैसला सुनाने निकला हुँ रास्ते के कंट कंकड़ मोह माया बन गये ज्ञान का ले बुहारा फेरने निकला हू अब डरू क्यो मैँ मैँ से हम को मैने पहचान लिया अंह की लाश लेकर दफनाने निकला हू हँस रहे है लोग वो जो रोते नही कभी कछुये से जी रहे है आदमी वो आदमी को इंसान बनाने निकला हु गर आदमी इंसान बन जाये फिर खुदा का क्यो ले नाम भीड़ मे गुम उस भगवान को ढूँढने निकला हूँ