भारत मे भुखमरी है मरते किसान है
पुलिस के मजबूत डंडे है काला धन कमाने
के हथकंडे है धर्म बंधक है
सेकुलरी तहखाने मेँ संस्कृति के सुहाग
चिन्ह तोड़े जा रहे है
पश्चिमि जनाना खाने मे गुरु अब
घंटाल हो गये कांनवेटी दड़वे
मालामाल हो गये नारीयो के चीर
अब बिकने लगे है मेरी आजादी की आड़
मेँ लज्जा त्याग मर्यादा झोँक
दी आधुनिक भाड़ मे अपनी भाषा से मुँह
मेँ छाले हो गये माखन प्रसाद
दिनकरो के काव्य मे लाले हो गये
श्रंगार की दुकानो बूढी भी बालायेँ
हो गई आज बहुँ भी सास से
सयानी हो गई दहेज न लाई
जला दी गई जो पैदा होते कोख मे
मारी गई वो बेगानी हो गई
सन्नि लियोन टी आर
पी की कहानी हो गई शराब स्टेटस
सिँबल बन गई दूध देने वाली गाय
दुर्बल बन गई देश मे आंतकवाद
अलगावबाद और दंगे है क्योकी कुछ
वोट के भिखमंगे हमाम(संसद) मे नंगे है
वो कहते है मैँ झूठ लिखता हुँ
तो तुमहारा सच मुझसे मुंह
क्यो छापाता है
सोमवार, 31 दिसंबर 2012
रविवार, 30 दिसंबर 2012
प्रदूषित शिक्षा से ग्रस्त युवा समाज
क्या कभी किसी ने ईश्वचंद्र
विद्यासागर राजाराम मोहनराय
सावित्री बाई फुले अहिल्या बाई
होलकर के पदचिन्हो का अनुसरण
किया है
मै दावे से कह सकता हुँ न इनहोने
मोमबत्ती जलाई होगी न प्रंशसा के
पदक की कामना की होगी और
ना ही लंबी चोड़ी आहे भरी होगी
लेकिन ये समाज मैँ फैली कुरितीयो और
नारी के अधीकार और सम्मान के लिये
चेतना का दिया अवश्य जला गये
और शायद हमे इनका जन्म मरण दिन
भी याद न हो क्योकी हम
मोमबत्तियाँ जलाते है जो रो रो कर
जलती है
भारतीय शिक्षा मेँ जब से मैकालेवाद और कांनवेट शिक्षा का मिश्रण हुआ है तभी से नैतिक और चारित्रीक पतन की शुरुआत हुई है मैकालेवादी शिक्षा ने भारतीयो के उस साहस को रौँद दिया जो कभी शिवाजी गुरुगोबिँद जी राणा प्रताप के रुप मे विद्ममान था और रही सही कसर कांग्रेस ने गांधीवाद थोप कर पूरी कर दी वही दूसरी और कांन्वेट शिक्षा ने बाल सुलम मन मे हिँदुतत्व संस्कृति भाषा का भय ये कह कर बैठा दिया की ये दोयम दर्जे की बातेँ है अंग्रेजी पढो हेलो हाय बोलो छुरी कांटे से खाओ पाश्चायत का अनुसरण करो सेकुलर बनो माता पिता को जीते जी मरा कहो मतलब आप स्वाभिमान को सूली पर टांग दो चरित्र को टांग दो फिर आप सभ्य लोगो की श्रेणि मे आयेँगे
क्या आप ऐसी शिक्षा पद्धति से कोई समाज सुधारक कोई शुद्ध राजनैतिज्ञ या भगतसिँह आजाद सुभाष जैसे देशभक्त गढ पायेँगे ऐसी शिक्षा तो नाजुक कूल डूड ही पैदा होँगे जो केवल तख्ती लटका कर न्याय की भीख मांग कर अपने यौवन को शर्मिदा करेँगे आज हम आधुनिक पथ पर पश्चिम की और बेहताशा दोड़े जा रहे है लेकिन आप याद रंखे जो आधुनिक रेतिला पथ आपने चुना है उस पर आपके पैरो के निशान भी नही मिलेँगे जब आप वापस लौटना चाहेगे
इसलिये ठहर जाइये मनन किजीये की आप पीछे क्या छोड़ आये है
जय राष्ट्रवाद
जय हिँदू
जय अखंड भारत
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012
कूलडूड वादियो का आंदोलन
पिछले दिनो चलती बस मे गैँगरेप घटना ने देश के समाज को झकझोर कर रख दिया कूल डूड प्रजाति के बंदरो से लेकर देह प्रर्दशन से रोजी रोटी कमाने वाले मी वी वांट जस्टिस्ट की तख्तीयाँ लटकाये मोमबत्ती जलाये फांसी फांसी चिल्ला रहे है बलात्कार जैसे कृत्य के लिये कठोर दंड का मैँ भी समर्थन करता हुँ लेकिन न्याय मिले इसके लिये गूंगी बहरी सरकार के आगे गिड़गिड़ाना नही चहाता किँतु उनकी इस व्याकुलता और रोष के पीछे भेड़चाल और मीडिया मे एक झलक पाने की चाहत भर है मैँने आंदोलन कारीयो के झुंड मे उन अनपढो को भी देखा जो वी वांट जस्टिस्ट का मतलब नही जानते मैँने उन बच्चो को भी देखा जिन्हे गैँगरेप का अर्थ भी नही मालूम निसंदेह दिल्ली मे जमा भीड़ आंदोलन के बहाने अपना अवकाश मना रही थी और इस बात का फायदा सरकार ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर किया सरकार ने आंदोलन को ढहा दिया क्योकी अंग्रेजी खून जिनकी रगो मेँ दौड़ रहा हो वो क्रांति क्या करेगे
लुटा पिटा कूल डूड आंदोलन मर गया आज दिल्ली मेँ शांति है
युवा भी न्युइयर 2013 की पार्टी के विचारो मे उलझ चुका है भारत को आज कूल डूड मोमबत्ती जलाने वाले नही बलकी मंगल पांडे चाहिये अगर मंगल पांडे जैसा साहस नही तो जेपी को ही अपने अंदर पैदा कर लो तभी भारत की दिशा और समाज की दशा बदलेँगी
लुटा पिटा कूल डूड आंदोलन मर गया आज दिल्ली मेँ शांति है
युवा भी न्युइयर 2013 की पार्टी के विचारो मे उलझ चुका है भारत को आज कूल डूड मोमबत्ती जलाने वाले नही बलकी मंगल पांडे चाहिये अगर मंगल पांडे जैसा साहस नही तो जेपी को ही अपने अंदर पैदा कर लो तभी भारत की दिशा और समाज की दशा बदलेँगी
गुरुवार, 27 दिसंबर 2012
दामिनी के बहाने आओ संस्कृति की और लौट आये
दिल्ली मेँ चलती बस मे गैँगरेप और यातना की जितनी निँदा की जाये कम है जिनहोने ये कृत्य किया है वे मानवता के चोले का त्याग कर चुके है आत्मा पिशाच बन चुकी है उन छ लोगो की चरित्र की इस गिरावट पर चिँता होनी चाहिये हमारे समाज को जो खुद को पुरुष प्रधान कह कर पीठ ठोँकता है
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