*सवैँधानिक चेतावनी * यह लेख मेरे
निजि विचार है अगर
आपकी भावना को ठेस
पहुँची हो तो आप मुझे ब्लाक कर सकते
है ........,..VANDEMATRM
अगर हम वेद की माने तो उसमे जाति जैसा घृणित शब्द है ही नही कर्म अनुसार वर्ण वयवस्था है मैँने कभी इतिहास मेँ नही पढा की किसी दलित ने क्षत्रिय या ब्राहमणो के विरूद्ध विद्रोह नही किया लेकिन जब मुस्लिम आंक्राताओ ने भारत मे अपना साम्राजय फैलाया तो उनहोने हिँदू धर्म से विमुख करने हेतु नीच कार्य शूद्रो से करने लगे और तब से ये शूद्र दलित हो गये अंग्रेजो के आगमन के बाद भी इन दलितो की स्थिति मे सुधार के लिये कोई रूचि नही दिखाई लेकि महात्मा फुले सावित्रि फूले शाहू
जी महाराज ईशवर चंद विद्यासागर
आदी समाज सुधारको ने दलितो के
उत्थान के लिये
ईमानदारी कर्मठता दिखाई और
कभी भी हिँदुतत्व का निरादर
नही किया और न ही वे धर्म परिवर्त
की और गये लेकिन अंबेडकर
जी जिनकी मानसिकता पर अंग्रेज
सवार हो चुके थे उसी अंबेडकर ने बौद्ध
पंथ की आड़ लेकर दलित को हिँदुतत्व
विरोधी बना दिया जबकी बौद्ध
धर्म हिँदुतत्व वृक्ष पर खिला पुष्प
ही है किँतु अंबेडकर के कुटिल दिमाग ने
दलित दशा सुधारने की बजाये उन्हे
नास्तिक बना दिया और दलित
कभी भी हिँदुतत्व की और न लौटे
सदा नास्तिक तिमिर मे भटकते रहे
यह सौच कर ही संविधान मे आरक्षण
का मीठा जहर घोल दिया...